Shayari: 'ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए', मौसम और शायरों का अंदाज़े-बयां

'हर मौसम बेदर्द मिला...' Image:Ir-Solyanaya/Pexels
Shayari: उर्दू शायरी (Urdu Shayari) में इश्क़ भरे जज़्बातों (Emotion) को जगह दी गई है, वहीं इसमें मौसम की ख़ुशगवारी का भी जिक्र मिलता है...
- News18Hindi
- Last Updated: February 24, 2021, 7:00 AM IST
Shayari: शायरी में जहां इश्क़ भरे जज़्बातों (Emotion) को जगह दी गई है, वहीं इसमें मौसम की ख़ुशगवारी का भी जिक्र मिलता है. शायरों ने अपने अलग अलग अंदाज़ में मौसम को ख़ूबसूरत अल्फ़ाज़ में पिरोया है. एक तरह से कहें तो शायरी बेक़रार दिल से निकली आह है, चाह है और सदा है, जिसे हर शायर (Poet) ने अपने जुदा अंदाज़ में पेश किया है. आज हम शायरों के ऐसे ही बेशक़ीमती कलाम से चंद अशआर आपके लिए लेकर हाजिर हुए हैं. आज की इस कड़ी में पेश हैं गर्मी की धूप और सर्द आहों के साथ मुहब्बत भरे दिल की आवाज़. आप भी देखिए इस बेशक़ीमती कलाम के चंद रंग और इसका लुत्फ़ उठाइए.
सर्दी में दिन सर्द मिला
हर मौसम बेदर्द मिला
मुहम्मद अल्वीआती जाती है जा-ब-जा बदली
साक़िया जल्द आ हवा बदली
इमाम बख़्श नासिख़
ये भी पढ़ें - Meena Kumari ki Shayari: 'चांद तन्हा है आसमां तन्हा'
मेरे पास से उठ कर वो उस का जाना
सारी कैफ़ियत है गुज़रते मौसम सी
ज़ेब ग़ौरी
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए
राहत इंदौरी
गर्मी लगी तो ख़ुद से अलग हो के सो गए
सर्दी लगी तो ख़ुद को दोबारा पहन लिया
बेदिल हैदरी
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तेरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है
हसरत मोहानी
ये धूप तो हर रुख़ से परेशां करेगी
क्यूं ढूंंढ़ रहे हो किसी दीवार का साया
अतहर नफ़ीस
आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह
उस वक़्त तो इस गर्मी ने सब मात की गर्मी
नज़ीर अकबराबादी
ये सुब्ह की सफ़ेदियां ये दोपहर की ज़र्दियांं
अब आईने में देखता हूं मैं कहां चला गया
नासिर काज़मी
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूं अगर बुरा न लगे
क़ैसर-उल जाफ़री
ये भी पढ़ें - Shayari: 'दरमियां के फ़ासले का तय सफ़र कैसे करें', मुहब्बत से लबरेज़ शायरी
गर्मी से मुज़्तरिब था ज़माना ज़मीन पर
भुन जाता था जो गिरता था दाना ज़मीन पर
मीर अनीस (साभार/रेख़्ता)
सर्दी में दिन सर्द मिला
हर मौसम बेदर्द मिला
मुहम्मद अल्वीआती जाती है जा-ब-जा बदली
साक़िया जल्द आ हवा बदली
इमाम बख़्श नासिख़
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मेरे पास से उठ कर वो उस का जाना
सारी कैफ़ियत है गुज़रते मौसम सी
ज़ेब ग़ौरी
शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए
राहत इंदौरी
गर्मी लगी तो ख़ुद से अलग हो के सो गए
सर्दी लगी तो ख़ुद को दोबारा पहन लिया
बेदिल हैदरी
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तेरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है
हसरत मोहानी
ये धूप तो हर रुख़ से परेशां करेगी
क्यूं ढूंंढ़ रहे हो किसी दीवार का साया
अतहर नफ़ीस
आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह
उस वक़्त तो इस गर्मी ने सब मात की गर्मी
नज़ीर अकबराबादी
ये सुब्ह की सफ़ेदियां ये दोपहर की ज़र्दियांं
अब आईने में देखता हूं मैं कहां चला गया
नासिर काज़मी
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूं अगर बुरा न लगे
क़ैसर-उल जाफ़री
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गर्मी से मुज़्तरिब था ज़माना ज़मीन पर
भुन जाता था जो गिरता था दाना ज़मीन पर
मीर अनीस (साभार/रेख़्ता)