Shayari: 'गिला भी तुझसे बहुत है मगर मुहब्बत भी...'
Shayari: उर्दू शायरी (Urdu Shayari) इश्क़ से लबरेज़ कलाम है. इसमें मुहब्बत की टीस महसूस होती है, तो ख़ुशी के तराने भी मिलते हैं. शायरों ने हर विषय पर क़लम उठाई है. फिर चाहें मुहब्बत (Love) की बात हो, वफ़ा का जिक्र हो या फिर इससे जुदा कोई जज़्बात (Emotion) ही क्यों न हो. शायरी में बहुत ही ख़ूबसूरती के साथ इश्क़ और आशिक़ी की बात की गई है. इसमें दर्द, ख़ुशी, मायूसी, इकरार और इंकार और वफ़ा से लबरेज़ हर जज़्बात को ख़ूबसूरती के साथ पेश किया गया है. इसी तरह शायरी में शिकवे-शिकायतों की अपनी एक जगह और अपना एक अलग लुत्फ़ है. आज हम शायरों के ऐसे ही बेशक़ीमती कलाम से चंद अशआर आपके लिए 'रेख़्ता' के साभार से लेकर हाजिर हुए हैं. आज की इस कड़ी में पेश है 'शिकवे-शिकायतों' पर शायरों का नज़रिया और उनके कलाम के चंद रंग. आप भी इसका लुत्फ़ उठाइए.
कैसे कहें कि तुझको भी हम से है वास्ता कोई
तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया
जौन एलिया
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
अहमद फ़राज़
दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते
अब कोई शिकवा हम नहीं करते
जौन एलिया
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कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी
मिर्ज़ा ग़ालिब
रात आ कर गुज़र भी जाती है
इक हमारी सहर नहीं होती
इब्न-ए-इंशा
बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा
वो मिन्नतों से कहें चुप रहो ख़ुदा के लिए
दाग़ देहलवी
क्यूं हिज्र के शिकवे करता है क्यूं दर्द के रोने रोता है
अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है
हफ़ीज़ जालंधरी
कहने देती नहीं कुछ मुंह से मुहब्बत मेरी
लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी
दाग़ देहलवी
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गिला भी तुझ से बहुत है मगर मुहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह
बासिर सुल्तान काज़मी
मुहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम
मुहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है
शकील बदायूंनी
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