Shayari: 'उस वक़्त का हिसाब क्या दूं', शायरों के कलाम के कुछ रंग और...

शायरी: गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं...Image/shutterstock
Shayari: उर्दू शायरी (Urdu Shayari) में हर जज़्बात (Emotion) को दिलकश अल्फ़ाज़ में पिरोया गया है. फिर बात चाहे इश्क़ो-मुहब्बत (Love) की हो या इंसानी जिंदगी से जुड़े किसी और मसले पर क़लम उठाई गई हो.
- News18Hindi
- Last Updated: April 9, 2021, 7:41 AM IST
Shayari: शायरी में दिल की बात लबों पर आती है. या कहें कि शायरी हाले-दिल बयां करने का एक खूबसूरत ज़रिया है. शेरो-सुख़न (Shayari) की इस दुनिया में हर जज़्बात को बेहद ख़ूबसूरती के साथ काग़ज़ पर उकेरा गया है. बात चाहे इश्क़ो-मुहब्बत (Love) की हो या इंसानी जिंदगी से जुड़े किसी और मसले पर क़लम उठाई गई हो. शायरी में हर जज़्बात (Emotion) को ख़ूबसूरती के साथ तवज्जो मिली है. यहां दर्द को भी दिलकश अल्फ़ाज़ में पिरोया गया है, तो जुदाई के लम्हात को भी पूरी तवज्जो दी गई है और खूबसूरती से पेश किया गया है. यही वजह है कि शायरों के कलाम की कशिश दिलों को अपनी ओर खींचती रही है. आज हम शायरों के ऐसे ही बेशक़ीमती कलाम से चंद अशआर आपके लिए लेकर हाजिर हुए हैं. शायरों के ऐसे अशआर जिसमें बात 'वक़्त' की हो और हालात का जिक्र हो. आप भी इन बेशक़ीमती अशआर का लुत़्फ़ उठाइए...
सदा ऐश दौरां दिखाता नहीं
गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं
मीर हसनये भी पढ़ें - Shayari: 'इक मुहब्बत के लिए एक जवानी कम है', मुहब्बत से लबरेज़ कलाम
जब आ जाती है दुनिया घूम फिर कर अपने मरकज़ पर
तो वापस लौट कर गुज़रे ज़माने क्यूं नहीं आते
इबरत मछलीशहरी
इक साल गया इक साल नया है आने को
पर वक़्त का अब भी होश नहीं दीवाने को
इब्न-ए-इंशा
उनका ज़िक्र उनकी तमन्ना उन की याद
वक़्त कितना क़ीमती है आज कल
शकील बदायूंनी
ये मोहब्बत का फ़साना भी बदल जाएगा
वक़्त के साथ ज़माना भी बदल जाएगा
अज़हर लखनवी
सब कुछ तो है क्या ढूंढ़ती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूं नहीं जाता
निदा फ़ाज़ली
वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो
हौसले मुश्किलों में पलते हैं
महफूजुर्रहमान आदिल
वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर'
ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी
नासिर काज़मी
उस वक़्त का हिसाब क्या दूं
जो तेरे बग़ैर कट गया है
अहमद नदीम क़ासमी
ये भी पढ़ें - 'वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा', शायरों का है अंदाज़े-बयां कुछ और...
या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उनसे
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है
जिगर मुरादाबादी (साभार/रेख़्ता)
सदा ऐश दौरां दिखाता नहीं
गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं
मीर हसनये भी पढ़ें - Shayari: 'इक मुहब्बत के लिए एक जवानी कम है', मुहब्बत से लबरेज़ कलाम
तो वापस लौट कर गुज़रे ज़माने क्यूं नहीं आते
इबरत मछलीशहरी
इक साल गया इक साल नया है आने को
पर वक़्त का अब भी होश नहीं दीवाने को
इब्न-ए-इंशा
उनका ज़िक्र उनकी तमन्ना उन की याद
वक़्त कितना क़ीमती है आज कल
शकील बदायूंनी
ये मोहब्बत का फ़साना भी बदल जाएगा
वक़्त के साथ ज़माना भी बदल जाएगा
अज़हर लखनवी
सब कुछ तो है क्या ढूंढ़ती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूं नहीं जाता
निदा फ़ाज़ली
वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो
हौसले मुश्किलों में पलते हैं
महफूजुर्रहमान आदिल
वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर'
ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी
नासिर काज़मी
उस वक़्त का हिसाब क्या दूं
जो तेरे बग़ैर कट गया है
अहमद नदीम क़ासमी
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या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उनसे
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है
जिगर मुरादाबादी (साभार/रेख़्ता)