यहां सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक छोले-भटूरों का मजा ले सकते हैं.
Famous Food Joints of Delhi: (डॉ. रामेश्वर दयाल) दिल्ली के सदर बाजार (Sadar Bazar) इलाके को तो आप जानते ही होंगे. इसे एशिया का सबसे बड़ा थोक बाजार कहा जाता है, जहां आपको देसी-विदेशी हर सामान मिलेगा। आसपास के राज्यों के कारोबारी इस बाजार में खरीदारी के लिए आते हैं और सामान खरीदकर अपने राज्यों में बेचते हैं. अब इतने बड़े बाजार में आएंगे तो आपको भूख भी लगेगी और कुछ न कुछ खाने का मन तो करेगा ही. तो आज हम आपको सदर बाजार में छोले-भठूरे (Chole Bhature) खिलाते हैं. सालों पुरानी इन दो दुकानों की खासियत यह है कि यह डिश देसी घी में बनाई जाती है.
दिल्ली में शायद ही ऐसा कोई भठूरे वाला होगा जो देसी घी में उसे तैयार करता होगा. इनके भठूरे भी खास हैं तो पिंडी छोले ऐसे है कि खाते हुए आप अंगुली चाटने लगेंगे. दिल्ली वाले तो इस दुकान के दीवाने हैं ही, बाहर के जो कारोबारी भी इस बाजार में आते हैं, वे भी इस देसी घी में लटपट छोले-भठूरे जरूर खाते हैं. मजेदार बात यह है कि इनके स्वाद के जलवे हैं, लेकिन परोसने का अंदाज एकदम आम है.
बंटवारे से भी कम नहीं हुआ स्वाद
आपको बताते चलें कि सदर बाजार में छोटी-बड़ी करीब 80 मार्केट्स हैं. इन्हीं में से एक क्रॉकरी मार्केट की गली के नुक्कड़ पर अगल-बगल में दो दुकानें हैं. एक का नाम है‘नंद भठूरे वाले दी हट्टी’ और दूसरे का नाम ‘नंद दी हट्टी’ है. सालों पहले यहां पर छोले-भठूरे की एक ही दुकान थी, लेकिन परिवार में बंटवारा होने के बाद दो दुकानें हो गईं. लेकिन हम आपको बता दें कि परिवार में तो बंटवारा हो गया है लेकिन छोले-भठूरे के स्वाद में कोई बंटवारा नहीं हुआ है.
दोनों में से किसी भी दुकान पर चले जाइए, छोले-भठूरे का स्वाद एक जैसा ही शानदार और जानदार होगा, साथ में दिए जाने वाले अचार भी एक जैसे ही हैं और परोसने का अंदाज भी एक समान है. दोनों दुकानों पर देसी घी में छोले-भठूरे मिलते हैं जो आसपास खुशबू उड़ाते रहते हैं.
भठूरों में दाल की पिट्ठी और पिंडी छोले हैं लाजवाब
दिल्ली में किसी भी छोले-भठूरे की दुकान पर जाएंगे तो अमूमन आपको भठूरे में पनीर और मसालों का स्टफ मिलेगा, लेकिन यह ऐसी दुकान है जिसके भठूरों में मूंग की दाल की मसालेदार पिट्ठी भरी जाती है. भठूरों को देसी घी में फ्राई किया जाता है. यहां के छोलों का जवाब नहीं है दुकानदार इसे पिंडी छोले बताते हैं. उसमें भी देसी घी का तड़का लगा होता है.
अब इनका सर्व करने का तरीका देखिए. एक प्लेट में छोले रखे जाते हैं. छोलों के ऊपर फ्राई आलू का एक टुकड़ा भी रख दिया जाता है. साथ में ही हरी मिर्च, आंवले का अचार व हरी चटनी डाल दी जाती है. प्लेट के बगल में ही गरमा-गरम भठूरे रख दिए जाते हैं. सर्व करने का यह तरीका सालों से है. लोग आते हैं, छोले-भठूरे की प्लेट लेते हैँ और बगल में ही खड़े होकर खाते हैं.
खाते हुए लोगों के चेहरे पर आ रही संतुष्टि बताती है कि वे कुछ और ही स्वाद के छोले-भठूरे का आनंद ले रहे हैं. इसकी एक प्लेट 100 रुपये की है. इनके व्यजंन में लहसुन और प्याज का प्रयोग नहीं किया जाता है.
90 साल से बिक रहे हैं देसी घी के छोले-भठूरे
चूंकि देसी घी के भारी-भरकम छोले-भठूरे खाए हैं तो कुछ मीठा हो जाए तो मजा बढ़ जाए. दोनों दुकान में गर्मियों में मीठी लस्सी मिलती है, जिसकी कीमत 50 रुपये है. सर्दियों में वहां जाएंगे तो छोले-भठूरे के साथ गरमा-गरम गुलाब जामुन मिलेंगे. दो की कीमत 50 रुपये है. इस जगह पर छोले-भठूरे का यह काम साल 1948 से चल रहा है.
उस वक्त नंदलाल मक्कड़ ने रेहड़ी पर छोले-भठूरे बेचने शुरू किए थे. उनके बाद उनके बेटों सुरेंद्र प्रकाश, ओम प्रकाश, चंद्र प्रकाश व सुभाष ने दुकान संभाली. अब तीसरी पीढ़ी के लोग दोनों दुकानों को चला रहे हैं. दुकान पर हर रविवार को अवकाश रहता है.
सुबह 9 बजे काम शुरू हो जाता है और शाम 7 बजे तक दुकानदारी चलती है. आसपास मेट्रो स्टेशन पुल बंगश है. लेकिन वहां से भी रिक्शा लेना पड़ेगा. वैसे इतनी मशक्कत के बाद इस व्यंजन को खाएंगे तो आपके मुंह से एक बार वाह जरूर निकलेगा.
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