70 सालों से ज्यादा पुरानी इस दुकान की मिठाइयों का स्वाद आज भी लाजवाब है.
(डॉ. रामेश्वर दयाल) आजादी से पहले की बात है. लाहौर में हलवाई की एक मशहूर दुकान थी. उसकी देसी घी की मिठाइयां पूरे शहर को लुभाती. हलवाई की खासियत यह थी कि वह हर साल नई-नई मिठाइयां ईजाद करता. देसी घी में लिपटी इन मिठाइयों (Desi Ghee Sweets) को लेकर शहर के लोग जिज्ञासा बनाए रखते और हर त्योहार पर पूछते थे कि लाला, इस बार कौन सी नई मिठाई खाने को मिलेगी. लालाजी मुस्कराकर कहते त्योहार से दो दिन पहले आ जाना और मिठाई का मजा लूट ले जाना. सब कुछ ठीक-ठाक चल
रहा था.
लाला की मिठाई पूरे शहर में मिठास घोल रही थी, लेकिन अचानक बंटवारे की घोषणा हो गई. माहौल में मिठास की बजाए कड़वापन फैलने लगा. लालाजी ने थोड़ा बहुत सामान समेटा और दिल्ली आ गए. उन्हें हलवाईगिरी के अलावा कुछ काम नहीं आता था. सोचा, दिल्ली वालों को लाहौर का स्वाद मुंह लगवाया जाए. बस काम चल निकला और देसी घी की मशहूर यह दुकान आज भी समा बांध रही है. इतने बदलाव के बाद भी एक बदलाव नहीं हुआ. वह है ग्राहकों को रोज सुबह देसी घी की पंजाबी पूरी-सब्जी खिलाने की परंपरा का..
स्पेशल खीर मोहन का चखें स्वाद
अब इतनी उत्सुकता जगाने के बाद पूछा तो जाएगा ही कि यह हलवाई की दुकान कहां पर है. हम बताते हैं. आप पहाड़गंज चौक पहुंचेगे तो वहां से बाराटूटी सदर की ओर मुड़ेंगे तो बायीं ओर सदर थाने के बाद ‘मदनलाल हलवाई’ का बोर्ड दिख जाएगा. यही वह दुकान है जो सीधी लाहौर से यहां पहुंची है. जो मशहूर मिठाइयां है, वह इस दुकान पर मिलेगी लेकिन देसी घी में सराबोर. हां, ये जरूर है कि हर दो एक साल के बाद कोई नई मिठाई या उसका स्वाद बनाया जाता है. अगर हमसे पूछा जाएगा कि आजकल दुकान की कौन सी मिठाई जलवा दिखा रही है तो हम कहेंगे कि खीर मोहन खाकर देखिए.
ये बर्फी और गुलाब जामुन का संगम है. बस इसके अंदर काजू और पिश्ते को पीसकर उसकी गोली डाली जाती है. मुंह में डालिए, एकदम घुल जाएगी, फिर काजू-पिश्ते की गोली से स्वाद एकदम करवट बदलेगा और आप कहेंगे कि भाई मजा आ गया. इसकी कीमत 580 रुपये किलो है. इसके अलावा दुकान के बेसन लड्डू, पतीसा, भी काबिले तारीफ है. और भी खाएंगे तो देसी घी बिखेरती यह मिठाइयां अलग ही तरह से आपके दिल-दिमाग को तर करेंगी.
पंजाबी पूरी-सब्जी का लें मजा
इस दुकान के नाश्ते के बारे में भी सुन लीजिए. सुबह देसी घी भरी कड़ाही में पंजाबी पूरी तली जा रही है. गरमा-गरम इन पूरियों को खाने के लिए आलू-छोले की सब्जी मिलेगी. यह भी देसी घी से तैयार होती है. इनके साथ मौसम के हिसाब से घीये का अचार मिलेगा तो कभी काली गाजर का. कभी आपको साथ में आम की लौंजी मिलेगी, जिसका स्वाद एकदम अलग है. यह नाश्ता दोपहर दो बजे तक मिलेगा.
उसके बाद देसी घी के पनीर पकौड़े, समोसे और जलेबियों का दौर शुरू हो जाएगा, मिठाइयां तो चलती ही रहेंगी. सर्दियों में इस हलवाई का सूजी का हलवा आपको पसंद आएगा. इस दुकान पर बिकने वाला नमकीन भी स्वाद से भरपूर है.
नेहरू जी, राजकपूर को भी भाया टेस्ट
दिल्ली में साल 1948 में लालाजी ने अपने बेटे मदनलाल के नाम से हलवाई की दुकान खोल ली. इस दुकान को उनके बेटे चमनलाल सेठी ने संभाला. आजकल इस दुकान की जिम्मेदारी सिद्धार्थ के पास है. वह बताते हैं कि हमारी दुकान पर मिठाइयों की नई-नई वैरायटी लोगों को खूब लुभाती है. उन्होंने बताया कि पुराने वक्त में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के लिए हमारी दुकान से इमरती भेजी जाती थी.
फिल्म स्टार राजकपूर तो एक बार हमारी दुकान पर आए. उन्होंने नाश्ता किया और मिठाई बंधवाकर ले
गए. पुराने दौर में रइसों के घरों में हमारी दुकान से मिठाइयों की टोकरियां बंधकर जाती थीं. ये दुकान सुबह 8 बजे खुल जाती है और रात 9 बजे तक काम चलता है.
कोई अवकाश नहीं रहता.
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