गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त मात्रा में फॉलिक एसिड का सेवन करने से पैदा होने वाले शिशु में ऑटिज्म का खतरा कम हो सकता है.
Autism Symptoms and Treatment: दुनिया भर में हर साल 18 जून को ‘ऑटिस्टिक प्राइड डे’ (Autistic Pride Day) मनाया जाता है. ‘ऑटिज्म’ को लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए साल 2005 में इस दिन को सेलिब्रेट करने की शुरुआत हुई थी. इस दिन समाज में यह संदेश दिया जाता है कि ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं बल्कि एक कंडीशन है. इस खास मौके पर ऑटिज्म से पीड़ित लोगों का कॉन्फिडेंस बढ़ाने की कोशिश की जाती है. आपको बताएंगे कि ऑटिज्म क्या है और इसके क्या लक्षण होते हैं. यह भी बताएंगे कि इस डिसऑर्डर से जूझ रहे बच्चों की देखभाल कैसे करनी चाहिए.
शारदा अस्पताल, ग्रेटर नोएडा के मनोचिकित्सक डॉ. कुनाल कुमार के मुताबिक ‘ऑटिज्म’ एक डिसऑर्डर है, जिसमें बच्चा सामाजिक तौर पर खुद को जोड़ नहीं पाता और अपनी भावनाओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं कर पाता है. बच्चे के व्यवहार और विकास को देखकर डॉक्टर इसे पहचानते है, क्योंकि इसके लिए कोई मेडिकल टेस्ट नही है. 2 साल उम्र के बाद बच्चों में इसके लक्षण साफ दिख सकते हैं. उम्र बढ़ने के साथ ही इसके लक्षणों के आधार पर पहचान होती है. ऑटिज्म की समस्या अधिकतर 10 वर्ष तक के बच्चों में होती है.
– आंखों से आंखें मिलाकर बात ना कर पाना.
– शब्दों का प्रयोग ना करके बड़बड़ाना.
– अकेले रहना, किसी अन्य से घुलने मिलने में दिक्कत महसूस करना.
– बोलने में दिक्कत महसूस करना.
डॉ. कुनाल कुमार के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त मात्रा में फॉलिक एसिड का सेवन करने से पैदा होने वाले शिशु में ऑटिज्म का खतरा कम हो सकता है. गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाइयों के अलावा अन्य दवाइयां न लें. जन्म के बाद शिशु का नियमित रूप से चेकअप और टीकाकरण करवाएं.
मनोचिकित्सक के मुताबिक ऑटिज्म का कोई क्लीनिकल उपचार नहीं है, लेकिन लक्षणों को कंट्रोल करने के लिए डॉक्टर दवाई लेने की सलाह देते हैं. हालांकि हर केस में दवा नहीं दी जाती. वहीं थैरेपी और स्किल्स सीखकर ही ऐसे लोग सामान्य जीवन जी सकते हैं, जिसमें एजुकेशनल प्रोग्राम और बिहेवियरल थैरेपी की मदद ली जा सकती है. ऑटिज्म का हर केस दूसरे से अलग होता है, इसलिए आपको लक्षणों के मुताबिक ही उपचार करवाना होता है.
डॉ. कुनाल कुमार के मुताबिक माता-पिता अपने बच्चे के साथ अधिक समय बिताएं और उसके लक्षणों पर ध्यान दें. अगर आपका बच्चा सामान्य व्यवहार नहीं कर रहा है, तो उस पर विशेष ध्यान दें. इस मामले में बिलकुल भी लापरवाही न बरतें. समय पर ऑटिज्म की पहचान होने से लक्षणों को कम किया जा सकता है और बच्चा आम जिंदगी जी सकता है. लक्षण दिखाई देने पर जल्द ही डॉक्टर से संपर्क करें. इसके अलावा बच्चे के साथ अच्छा व्यवहार करें. बड़े शब्दों की जगह छोटे-छोटे वाक्यों में बात करें. बच्चे के सामने उसकी दूसरे बच्चे से तुलना नहीं करें. उसका नए-नए व्यक्तियों से परिचय कराएं. अगर बच्चा गुस्सा हो जाए, तो उसे प्यार से समझाएं.
.