पूरा देश गणेश चतुर्थी के उत्सव में रंगा हुआ है. गणेश जी की पूजा में कई चीज़ें अर्पित की जाती हैं जिसमें से एक दूर्वा भी है. बिना दूर्वा के भगवान गणेश की पूजा पूरी नहीं होती है. गणेश एकमात्र ऐसे देवता हैं जिन्हें यह विशेष किस्म की घास चढ़ाई जाती है. दूर्वा को संस्कृत में दूब, अमृता, अनंता, महौषधि, शतपर्वा कहते हैं. आयुर्वेद में दूब का उल्लेख औषधि की तरह किया गया है. जो बड़े से बड़े रोगों की जड़ को काटती है. जानिए इस घास के औषधीय गुण.
पेट के रोगों के लिए दूर्वा औषधि का कार्य करती है.
यह विभिन्न बीमारियों में एंटीबायोटिक का काम करती है, उसको देखने और छूने से मानसिक शांति मिलती है.
दूब में ग्लाइसेमिक क्षमता अच्छी होती है. इस घास के अर्क से मधुमेह रोगियों पर हाइपोग्लिसीमिक प्रभाव पड़ता है. इसका सेवन डायबिटिक मरीजों के लिए लाभदायक है.
दूब के रस को हरा रक्त कहा जाता है, क्योंकि इसे पीने से एनीमिया की समस्या ठीक होती है.
दूब ब्लड को शुद्ध करती है, लाल रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने में मदद करती है जिससे हीमोग्लोबिन बढ़ता है.
हल्दी पाउडर के साथ इस घास का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाएं तो फोड़े फुंसी का खात्मा होता है.
दूब में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर, पोटाशियम पर्याप्त मात्रा में होते हैं. कब्ज दूर करने में यह राम बाण है.
यह पेट के रोगों, यौन रोगों, लीवर रोग में असरदार है.
दूब और चूने को बराबर मात्रा में पानी के साथ पीसकर माथे पर लेप करने से सिरदर्द कम होता है.
दूब के काढ़े से कुल्ला करने से मुंह के छाले ठीक होते हैं.
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