एशियाई और अफ्रीकी लोगों में कैंसर का डिटेक्शन आसान नहीं होता.
Cancer Test Accuracy For Asian People: दुनियाभर में हर साल लाखों लोग कैंसर (Cancer) की वजह से अपनी जान गंवा देते हैं. कैंसर एक जानलेवा बीमारी है, जिसका शुरुआती स्टेज में पता चल जाए तो व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है. अगर कैंसर को डिटेक्ट करने में ज्यादा समय लग जाए तो व्यक्ति की मौत का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. इस गंभीर बीमारी का पता लगाने के लिए कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं. इनमें से एक जेनेटिक टेस्ट (Genetic Test) होता है. आमतौर पर इस टेस्ट को सटीक माना जाता है, लेकिन हालिया स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. इसमें बताया गया है कि कुछ लोगों में इस टेस्ट के जरिए कैंसर का पता लगाना मुश्किल है. आखिर स्टडी में कौन सी नई बातें सामने आई हैं, इस बारे में जान लीजिए.
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एशियाई और अफ्रीकी लोगों पर यह टेस्ट फेल?
न्यूसाइंटिस्ट डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में हुई एक स्टडी में खुलासा हुआ है कि कैंसर का जेनेटिक टेस्ट एशियाई और अफ्रीकी लोगों में ज्यादा कारगर (Accurate) साबित नहीं होता है. आसान भाषा में कहें तो इस टेस्ट के जरिए अफ्रीकी (Black) और एशियाई लोगों में कैंसर का पता लगाना मुश्किल होता है. कुछ मामलों में यह टेस्ट कैंसर और उसके टाइप को सही तरीके से डिटेक्ट कर लेता है तो कुछ मामलों में ऐसा नहीं हो पाता. जेनेटिक टेस्ट रिजल्ट के आधार पर कैंसर का ट्रीटमेंट किया जाता है. स्टडी में यह भी कहा गया है कि जेनेटिक टेस्ट रिजल्ट की वजह से ब्लैक लोगों के मामले में ट्यूमर मिसक्लासिफाइड हो जाते हैं. इससे उनकी मौत का खतरा बढ़ जाता है.
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क्या डिटेक्ट करता है जेनेटिक टेस्ट?
जेनेटिक टेस्ट सॉलिड टयूमर्स में जेनेटिक म्यूटेशंस के नंबर को मापता है. इसे ट्यूमर म्यूटेशनल बर्डन (TMB) कहा जाता है. TMB को मापने का सबसे सटीक तरीका ट्यूमर और नॉर्मल टिशू सैंपल के जेनेटिक एनालिसिस होता है. इसे ट्यूमर नॉर्मल सीक्वेंसिंग भी कहा जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि कैंसर के अधिकतर ट्रीटमेंट सेंटर्स में ट्यूमर ओनली जेनेटिक सीक्वेंसिंग के जरिए इलाज किया जाता है. इस टेक्निक में यूरोपियन लोगों का डेटाबेस स्टोर किया गया है. ऐसे में अगर एशियाई या अफ्रीकी लोग इलाज के लिए जाते हैं तो TMB मापने में मिसक्लासिफिकेशन होने की आशंका बढ़ जाती है.
पहले भी इस तरह की रिसर्च आ चुकी हैं सामने
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब किसी रिसर्च में इस तरह का खुलासा हुआ है. इससे पहले भी कई रिसर्च में इस तरह की बातें सामने आ चुकी हैं. श्वेत (White) और अश्वेत (Black) लोगों में कैंसर का जेनेटिक टेस्ट अलग-अलग एक्यूरेसी दिखाता है. इस टेस्ट के आधार पर जो इलाज किया जाता है, वह भी दोनों तरह के लोगों के लिए एक समान कारगर नहीं हो सकता. श्वेत लोगों के लिए यह टेस्ट और इसके आधार पर किया गया कैंसर का इलाज ज्यादा कारगर साबित होता है.
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