फिस्टुला में असहनीय दर्द होता है. (File Photo)
Self-Medication in Fistula dangerous: मलद्वार में फिस्टुला या भगंदर एक ऐसी बीमारी है जिसमें एक छोटी सी सुरंग में फोड़ा बन जाता है जिसका मुख गुदा के पास एक संक्रमित छिद्र में खुलता है. दरअसल, गुदा के ठीक अंदर कई छोटी ग्रंथियां होती हैं जिनसे म्यूकस निकलता है. कभी-कभी, ये ग्रंथियां बंद हो जाती हैं और ये संक्रमित हो सकती हैं. संक्रमण के कारण इसमें फोड़ा हो सकता है. करीब आधे म्यूकस संक्रमित होने के बाद फोड़े में तब्दील हो जाते हैं. फिस्टुला के कई कारण हैं. यह रेडिएशन, ट्रॉमा, यौन संक्रमित बीमारी, टीबी, डायवर्टिकुलीटिस, कैंसर आदि के कारण हो सकता है. हालांकि अधिकांश मामलों में सामान्य इंफेक्शन के कारण ही फिस्टुला होता है. इसलिए कैंसर का डर अपने अंदर न लाएं.
दरअसल, इसमें गुदाद्वार के आसपास सूजन हो जाती है और खून भी निकलने लगता है. जिसके कारण मरीज को असहनीय दर्द होता है. आमतौर पर इस स्थिति में लोग आसपास की दवा दुकानों से दवा लेकर दर्द को ठीक कर लेते हैं लेकिन खुद से ली गई दवा बीमारी को और अधिक बढ़ा सकती है.
15 प्रतिशत मरीज खुद इलाज कर आते हैं
एचटी की खबर के मुताबिक एसोसिएशन ऑफ सर्जन ऑफ इंडिया के सालाना कांफ्रेंस में सर्जन डॉ. अरशद अहमद ने कहा कि फिस्टुला में खुद से ली गई दवाई कई हेल्थ समस्याओं के जोखिम को और अधिक बढ़ा सकती है. उन्होंने इस विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए कहा कि फिस्टुला के लगभग 15 प्रतिशत मरीज खुद से दवाई लेने के बाद जब सही नहीं होते तब ओपीडी में आते हैं. इससे पहले या तो वे खुद से दवाई लेकर सेवन करते हैं या स्थानीय क्वैक से दवाई लेते हैं. इससे उनकी बीमारी और बढ़ जाती है और उन्हें लंबे समय तक इलाज कराने की जरूरत पड़ती है.
शुरुआती दौर में ही डॉक्टर के पास आना चाहिए
डॉ अहमद ने कहा कि सेल्फ मेडिकेशन के कारण फिस्टुला बहुत अधिक जटिल हो जाता है और इस स्थिति में बड़ी सर्जरी की जरूरत पड़ती है. उन्होंने कहा कि पाइल्स और फीसर लाइफस्टाइल से संबंधित बीमारी है लेकिन इन बीमारियों से पीड़ित लोगों में फिस्टुला होने का अधिक जोखिम रहता है. डॉ. अहमद ने कहा कि आमतौर पर लोग फिस्टुला के कारण शर्मिंदगी महसूस करने लगते हैं. इसलिए वे आसपास के नीम हकीम के पास जाते हैं, लेकिन फिस्टुला के 70 प्रतिशत मामलों में सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती है. इसलिए अगर शुरुआती दौर में मरीज डॉक्टर के पास आ जाते हैं तो वे बिना सर्जरी ही ठीक हो जाते हैं.
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