कुछ महीने कम रहने के बाद एक बार फिर हवा में प्रदूषण (Air Pollution) का स्तर बढ़ने लगा है. स्मॉग (Smog) ने भी मैदानी इलाकों में दस्तक दे दी है. कोविड-19 (Covid-19) के चलते मास्क (Mask) लगाने की जो आदत पड़ी है, वह बाहर निकलने वालों के लिए प्रदूषण के खिलाफ भी अच्छा हथियार साबित हो सकता है. कोविड-19 की वजह से पहले ही लोगों की समस्याएं कम नहीं हो रही हैं, अब स्मॉग ने लोगों और सरकारों की चिंता बढ़ा दी है. हर साल सर्दी के महीनों में खासकर वातावरण में मौजूद जहरीली हवा घातक हो जाती है. दिल्ली-एनसीआर के शहरों (दिल्ली, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद) और आसपास के इलाकों के साथ ही वायु प्रदूषण की मार झेल रहे कई शहरों की हर साल यही कहानी होती है. हल्की ठंड के साथ ही प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रदूषण से हर साल एक लाख बच्चों की मौत हो जाती है. चलिए जानते हैं वायु प्रदूषण क्यों फैलता है और कैसे इससे बचा जा सकता है.
क्या है एक्यूआई?
एक्यूआई यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स यह प्रदूषण मांपने की ईकाई है. डब्ल्यूएचओ ने इसकी नॉर्मल रेंज 0 से 50 तय की है, लेकिन हर साल दीपावली के आसपास दिल्ली में प्रदूषण का स्तर 400 तक पहुंच जाता है. myUpchar से जुड़े डॉ. आयुष पांडे के अनुसार दिल्लीवासी इस दौरान सामान्य से 8 गुना ज्यादा जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर होते हैं. एनसीआर में भी गाजियाबाद वायु प्रदूषण के मामले में सबसे खराब स्थिति में होता है, जहां 29 अक्टूबर 2019 को प्रदूषण का स्तर 446 तक पहुंच गया था. नोएडा में इसी दौरान 439 , ग्रेटर नोएडा 428 के साथ ही फरीदाबाद 387 और गुड़गांव 362 के स्तर पर बहुत ज्यादा खराब हालत रहे. हालांकि, कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन के बाद इन सभी शहरों की हवा की गुणवत्ता में अच्छा असर देखने को मिला.
क्यों खराब हो रही आपके शहर की हवा
- आधुनिक जीवनशैली
- गाड़ियों से निकलने वाला धुआं
- फसल कटाई के बाद बची पराली का जलाया जाना
- निर्माण कार्य
- पटाखों का धुआं
इस तरह जानलेवा है प्रदूषण
myUpchar से जुड़े डॉ. आयुष पांडे के अनुसार प्रदूषित हवा में सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मेटल होते हैं. 2.5 माइक्रॉन से छोटे होने पर यह जहर सांस के जरिए आसानी से फेफडों तक पहुंच जाता है और फिर खून में मिल जाता है. इससे अस्थमा, सीओपीडी, मौसम में बदलाव के साथ सांस में तकलीफ, एलर्जी, गले में खराश, सिरदर्द, नाक से पानी आना, बुखार, आंखों में जलन जैसी कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं.
मेडिकल जर्नल ‘एनवायरनमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव’ में छपे एक अध्ययन के मुताबिक, वायु प्रदूषण होने वाले शिशु पर विपरीत प्रभाव डालता है. वायु प्रदूषण की वजह से होने वाले बच्चों में हार्ट संबंधी बीमारियां होने का खतरा रहता है. हर वर्ष दिवाली के बाद अस्पतालों की ओपीडी में श्वसन संबंधी बीमारियों की शिकायत करने वाले रोगियों की संख्या 30 प्रतिशत बढ़ जाती है. इस साल तो कोविड-19 के रूप में पहले से ही एक बीमारी ने लोगों की चिंता बढ़ा रखी है.
जैसे-जैसे बढ़ेगी ठंड, बढ़ेगा स्मॉग का संकट
स्मॉग की एक पतली सी चादर तो हवा में अभी से ही दिखने लगी है, जैसे-जैसे ठंड बढ़ेगी खासतौर पर दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर भी बढ़ता ही जाएगा. ठंड बढ़ने के साथ यह संकट गहराता जाएगा. बात करें स्मॉग की तो जब हवा में धूल, धुंआ और कोहरे का मिक्स होते हैं तो इसे हिंदी में धुआंसा कहते हैं. यही धुआंसा या स्मॉग सर्दियों में तमाम शहरों के लिए मुसीबत का सबब बनता है. स्मॉग में गाड़ियों और फैक्टरियों से निकलने वाले धुएं में मौजूद राख और सल्फर जैसे कई हानिकारक रसायन मिले होते हैं. यही वजह भी है कि स्मॉग को घातक माना जाता है.
नॉन स्मोकर भी 18 सिगरेट के बराबर धुआं ले रहा अंदर
जो लोग बीड़-सिगरेट या किसी भी तरह की स्मोकिंग करते हैं, उन्हें साल के इस समय पूरी तरह से स्मोकिंग छोड़ देनी चाहिए. दिल्ली-एनसीआर का स्मोकिंग नहीं करने वाला एक आम शख्स भी इन दिनों यदि बाहर निकलता है तो प्रतिदिन 18-20 सिगरेट के बराबर धुआं अंदर लेता है.
मास्क बचाएगा प्रदूषण से
कोविड-19 की वजह से बाहर निकलने पर मास्क पहनना जरूरी है. यदि आप बाहर निकल रहे हैं तो मास्क पहनकर आप प्रदूषण के घातक प्रकोप से भी खुद को बचा सकते हैं. एन95 एयरमास्क पहनकर बाहर निकलें, यह 95 फीसद तक धूल के कणों को शरीर में जाने से रोकता है.
पेड़ लगाएं, इम्युनिटी बढ़ाने वाली चीजें खाएं
कचरा कभी ना जलाएं, गीले और सूखे कूड़े को अलग-अलग करके रखें. गीले कूड़े से खाद बनाएं और सूखे कूड़े को नगर निकाय को निस्तारण के लिए दें. हरियाली बढ़ाएं, ज्यादा पेड़ का सीधा मतलब ज्यादा ऑक्सीजन होता है. कोविड-19 की वजह से भी इम्युनिटी बढ़ाना बहुत जरूरी है, ऐसे में प्रदूषण के प्रकोप से बचने के लिए ओमेगा-3 फैटी एसीड का सेवन करें. सोयाबीन, अखरोट, समुद्री, मछली, काजू, अलसी के बीज का सेवन करें. विटामिन-सी युक्त चीजों का सेवन करें. संतुलित भोजन और पर्याप्त नींद लें और नियमित तौर पर एक्सरसाइज भी करें. फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए प्राणायाम करें.
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