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ऑटिज्म की पहले से जानकारी होने से बेहतर लाइफस्टाइल संभव - स्टडी

नई स्टडी में दावा किया गया है कि ऑटिस्टिक होना और इसकी जागरूकता से नतीजे पॉजिटिव हो सकते हैं. (फोटो-canva.com)

नई स्टडी में दावा किया गया है कि ऑटिस्टिक होना और इसकी जागरूकता से नतीजे पॉजिटिव हो सकते हैं. (फोटो-canva.com)

अगर किसी बच्चे को कम उम्र में ही ये बता दिया जाए कि वो ऑटिस्टिक है, तो सही देखभाल और हौसला अफज़ाई कर युवावस्था तक उसे ज ...अधिक पढ़ें

अगर व्यक्ति को कम उम्र में पता चल जाए कि वह ऑटिज्म (Autism) का शिकार है, तो वह स्व- जागरूकता और मानसिक संबल से बेहतर लाइफस्टाइल जी सकता है. इसके साथ ही वयस्क होते-होते अपनी समझ को भी गुणवत्तापूर्ण बना सकता है. इस स्टडी का निष्कर्ष ‘ऑटिज्म ‘जर्नल में प्रकाशित हुआ है. इस स्टडी में सलाह दी गई है कि किसी बच्चे को कम उम्र में ही ये बता दिया जाए कि वो ऑटिस्टिक है, तो सही देखभाल और हौसला अफज़ाई कर युवावस्था तक उसे जीवन में सफल बनाया जा सकता है. पहली बार रिसर्चर्स ने इस दिशा में शोध किया और पाया कि ऑटिस्टिक होना और इसकी जागरूकता से नतीजे पॉजिटिव हो सकते हैं. इस स्टडी में देखा गया है कि महिलाएं, अनुवांशिक, अल्पसंख्यक या कम संसाधन वाले लोगों को सालों तक पता नहीं होता कि वे ऑटिस्टिक हैं.

कई मामलों में ये भी देखा गया है कि वयस्क होने तक लोगों को खुद के बारे में पता नहीं होता कि उनमें ऑटिज्म के लक्षण हैं. रिसर्चर्स ने इस स्टडी में सामान्य और ऑटिस्टिक प्रतिभागियों को शामिल किया. स्टडी में 78 छात्रों को शामिल किया गया था. इनसे जीवन और अनुभवों की जानकारी ली गई.

क्या कहते हैं जानकार
यूनिवर्सिटी ऑफ पोस्टमाउथ (University of Post Mouth) में साइकोलॉजी के लेक्चरर डॉ. स्टीवन कप्प (Dr. Steven Kapp) के मुताबिक, उन्हें 13 साल की उम्र में खुद को ऑटिस्टिक होने का पता चला. वे बताते हैं कि ऐसे छात्र जिन्हें कम आयु में इसका पता चल जाए, तो वे स्वयं को इसके लिए तैयार करते हैं और प्रसन्न रहते हैं.

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उन्होंने आगे बताया, “हमारी स्टडी से स्पष्ट किया गया है कि ये सबसे बेहतर होता है कि कम से कम आयु में ऑटिज्म के बारे में बता दिया जाए. इससे व्यक्तिगत सार्वजनिक जीवन का विकास उपयुक्त तरीके से होता है. पेरेंट्स को इस बात का इंतजार नहीं करना चाहिए कि बच्चे वयस्क होंगे तब इसकी जानकारी दी जाएगी.”

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ऑटिस्टिक होना गर्व का विषय
एक प्रतिभागी ने बताया कि मैंने अपने बच्चे को बताया कि ऑटिज्म सोचने-समझने का खास तरीका है. ये चुनौतीपूर्ण तो है, लेकिन बहुत खूबसूरत, प्रभावशाली और शक्तिशाली जरिया है. ऑटिस्टिक होने की पहचान गर्व का विषय है और स्वयं को योग्य बताने का तरीका है. स्टडी की को-ऑथर बेला कोफनर बताती हैं कि स्टडी का उद्देश्य ये है कि पेरेंट्स जागरूक बनें. ऑटिज्म के प्रति सहजता और सजगता से म मानसिक व सामाजिक रूप से प्रभावित बच्चों की मदद कर सकते हैं.

Tags: Health, Health News, Lifestyle

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