लता मंगेशकर कोरोना और निमोनिया से जूझ रही हैं.
नई दिल्ली. निमोनिया बीमारी का नाम आते ही लोगों को लगता है कि यह बच्चों को होने वाली बीमारी है जबकि भारत की सबसे समृद्ध गायिका और देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न (Bharat Ratna) से नवाजी गईं स्वर कोकिला लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) इस समय कोरोना और निमोनिया से जूझ रही हैं. उनकी हालत बेहद गंभीर है और उन्हें फिर से वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो बच्चे और वृद्ध दोनों ही निमोनिया (Pneumonia) के आसान शिकार हैं और इसीलिए इनमें यह बीमारी काफी गंभीर हो जाती है. उम्र बढ़ने और इम्यूनिटी (Immunity) कमजोर पड़ने के कारण यह वृद्धों के फेफड़ों (Lungs) पर हमला करता है और इसकी मारक मारक क्षमता भी बढ़ जाती है.
इंडियन चेस्ट सोसायटी के सदस्य और दिल्ली के जाने-माने पल्मोनोलॉजिस्ट व एलर्जिस्ट डॉ. ए के सिंह कहते हैं कि निमोनिया खासतौर पर कोरोना (Corona) का अगला बड़ा रूप होता है. अगर निमोनिया कोरोना के बाद हुआ है तो यह खतरनाक हो सकता है. कोरोना के बाद से फंगल निमोनिया के मरीज देश में तेजी से बढ़े हैं. इस निमोनिया में फेफड़ों में इन्फेक्शन (Infection in Lungs) होता है जो एक्सरे में साफ-साफ दिखाई देता है. पिछले दिनों से बहुत सारी मौतों के मामलों में देखा जा रहा है कि 4-5 दिनों के अंदर गंभीर निमोनिया जान भी ले लेता है. वहीं निमोनिया के साथ एक बीमारी होती है सेप्सिस (Sepsis). अगर किसी मरीज को सेप्सिस भी है तो यह निमोनिया (Pneumonia) को खतरनाक बना देती है. इसमें निमोनिया फेफड़ों (Lungs) से होकर खून में पहुंच जाता है और मरीज को बहुत गंभीर तरीके से प्रभावित करता है.
डॉ. सिंह कहते हैं कि एक बार अगर निमोनिया हो जाता है तो अस्पताल में भर्ती 5 से 10 फीसदी लोगों की मौत हो सकती है. चूंकि इससे रिकवर होने में भी काफी समय लगता है. अगर यही मरीज इतने बीमार हैं कि उन्हें आईसीयू (ICU) में रखना पड़ रहा है तो मृत्यु दर 30 फीसदी तक हो जाती है. इस बीमारी के लिए विशेष रूप से मरीज का इम्यून फंक्शन जिम्मेदार है.
डॉ. सिंह कहते हैं कि वृद्धों लोगों के शरीर की इम्यूनिटी (Immunity) बहुत अच्छी नहीं होती है. कई बार जब कोई संक्रमण हो जाता है तो हमें दवाएं दी जाती हैं, वे तो बीमारी से लड़ती हैं लेकिन जो हमारी खुद की इम्यूनिटी होती है बीमारी से लड़ने के लिए वह भी काफी महत्वपूर्ण होती है लेकिन अगर इम्यूनिटी कमजोर है तो बीमारी से लड़ने में शरीर भी सक्षम नहीं हो पाता है. यही वजह है कि दवाएं तो बैक्टीरिया से लड़ने के लिए कोशिश करती हैं लेकिन शरीर का इम्यून सिस्टम अपना रेस्पॉन्स अच्छा नहीं दे पाता ऐसे में बीमारी को हराने में भी मुश्किल आती है.
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