एक व्यक्ति की लगातार 14 महीने तक कोविड-19 की रिपोर्ट पॉजिटिव आई. आखिर कैसे ?(फोटो-Canva.com)
Repeatedly test Covid-19 positive on an RT-PCR test : वर्ल्ड हेल्थ
ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के आंकड़ों से पता चलता है कि कोविड -19 वायरस ने लगभग 82 मिलियन से अधिक लोगों को संक्रमित किया है. दुनिया भर में 1.8 मिलियन से अधिक लोगों की मौत हुई है. जब भी कोरोना का कोई नया वेरिएंट आता है, तो उससे संक्रमित होने का विचार ही टेंशन दे देता है. कोरोना संक्रमण का निदान आरटी-पीसीआर टेस्ट से संभव है, जो एक विशिष्ट जीव से अनुवांशिक सामग्री का पता लगाने में मदद करता है. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ये सटीक और विश्वसनीय है, लेकिन ये एक जीवित (Live) या पारगम्य (transmissible) वायरस और डेड वायरस के बीच अंतर नहीं कर सकता, इसलिए सावधानीपूर्वक मरीज की हिस्ट्री और परीक्षण के बाद एक विशेषज्ञ द्वारा पॉजिटिव रिजल्ट्स की व्याख्या की जानी चाहिए. लेकिन, क्या होगा अगर कुछ लोग समय-समय पर पॉजिटिव टेस्ट करते रहें?
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आपको जानकार हैरानी होगी कि ऐसा ही एक मामला तुर्की (Turkey) में सामने आया है, जहां एक व्यक्ति की लगातार 14 महीने तक कोविड-19 की रिपोर्ट पॉजिटिव आई. इस शख्स का नाम मुजफ्फर कायासन है. इनकी उम्र 56 साल है. उन्हें पहली बार 19 दिसंबर, 2020 को वायरस का पता चला था, और डायग्नोस के के बाद 78 बार उनकी कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आई. कायासन को ल्यूकेमिया भी है, उन्होंने 9 महीने अस्पताल में और 5 महीने इस्तांबुल अपने घर में बिताए हैं.
क्या कहते हैं जानकार
बार-बार कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर फोर्टिस हॉस्पिटल, कल्याण और मुलुंड (मुंबई) में संक्रामक रोग विशेषज्ञ, डॉ. कीर्ति सबनीस ने हेल्थशॉट्स डॉटकॉम को बताया, “कोविड-19 के लिए आइसोलेशन का समय 1-14 दिनों से लेकर आमतौर पर लगभग पांच दिनों तक होता है. यदि आपने कोरोनावायरस के लिए पॉजिटिव टेस्ट किया है, तो आपको आमतौर पर 10 दिनों के लिए सेल्फ आइसोलेट करना होगा.”
डॉ. कीर्ति सबनीस ने कायासन के मामले में कहा, “उनके अभी भी पॉजिटिव आने का एक अहम कारण उनकी कमजोर इम्यूनिटी है. हालांकि, वायरस ट्रांसमिसेबल मोड में न हो, जहां यह दूसरों को संक्रमित कर सके. उन्हें अन्य रोगियों की तुलना में ठीक होने में अधिक समय लग सकता है, क्योंकि उनके इम्यून सिस्टम को पूरी तरह से इफेक्टिव होने में थोड़ा टाइम लगेगा.”
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वहीं, अमृता अस्पताल (Amrita Hospital) में क्लिनिकल एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मर्लिन मोनी का कहना है, “जब हम आरटी-पीसीआर करते हैं, तो हम वायरल आरएनए (RNA) की जांच भी करते हैं. यह स्थिति तब होती है, जब वायरस मर जाता है, लेकिन कुछ अवशेष अभी भी गले, नाक और मुंह में होते हैं. स्टडी से पता चलता है कि 40% लोगों में आरएनए (RNA) पॉजिटिव हो सकता है. दूसरे मामले में, वायरस धीमी गति से बढ़ सकता है. ये उन लोगों में हो सकता है जो ज्यादा उम्र के हैं या जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है.”
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