साधारण कब्ज क्रोनिक कब्ज में न बदलें, इसके लिए आदतों में सुधार जरूर है.
Tips to prevent constipation: कॉन्स्टिपेशन एक ऐसी स्थित है जिसमें स्टूल बहुत मुश्किल से निकलता है और यह बहुत हार्ड हो जाता है. कॉन्स्टिपेशन किसी भी व्यक्ति को पंगु बना देता है. कॉन्स्टिपेशन में व्यक्ति बहुत बेचैन रहता है और उसके चेहरे पर खींझ आने लगती है. इससे व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है. समय रहते यदि कॉन्स्टिपेशन या कब्ज का इलाज नहीं किया गया तो इसका शरीर पर बहुत बुरा असर पड़ता है और साधारण कॉन्स्टिपेशन क्रोनिक कॉन्स्टिपेशन में बदल जाता है. क्रोनिक कॉन्स्टिपेशन के कारण मलद्वार की स्किन फट सकती है इससे एनल फिशर हो सकता है. इसके अलावा कोलोन भी ब्लॉक हो सकता है. यहां तक कि अगर गंभीर कॉन्स्टिपेशन को बहुत दिनों तक नजरअंदाज किया जाए तो इससे कोलोन कैंसर तक हो सकता है. पर अच्छी बात यह है कि समय रहते कॉन्स्टिपेशन की समस्या को हमेशा के लिए दूर किया जा सकता है.
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कॉन्स्टिपेशन की मुख्य वजहें
सर गंगाराम अस्पताल में इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड पेनक्रिएटिक बिलीएरी साइंसेज के कंसल्टेंट डॉ श्रीहरि अनिखिंडी (dr. shrihari anikhindi) कहते हैं “कॉन्स्टिपेशन का सबसे मुख्य कारण शरीर में पानी की कमी और पेट में फाइबर को कम पहुंचना है. स्टूल का कंटेंट बनाने के लिए जितना पानी की जरूरत है उतना ही फाइबर की मात्रा भी जरूरी है. जब ये दोनों चीजें डाइट में कम हो जाए तो ये कॉन्स्टिपेशन की वजहें बनती हैं. ” डॉ श्रीहरि ने बताया कि आजकल की हमारी पूअर डाइट्री हैबिट यानी गलत खान-पान इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है. हमारा जो खान-पान है उसमें हम कम सलाद खाते हैं, कम फ्रूट खाते हैं, कम पानी पीते हैं और प्रोसेस्ड फूड का ज्यादा सेवन करते हैं. ये सब गलत आदतें कब्ज या कॉन्स्टिपेशन को बढ़ाती हैं.
कॉन्स्टिपेशन और मेटाबोलिज्म का संबंध
डॉ श्री हरि कहते हैं कि कॉन्स्टिपेशन को दूर करने के लिए मेटाबोलिज्म को बूस्ट करना बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा कि जब भोजन डाइजेस्ट होकर बड़ी आंत में पहुंचता है तो यह आंत के मूवमेंट के कारण होता है. इसे इंटेस्टाइनल पेरिसटाल्टिक मूवमेंट (intestinal peristaltic movements) कहते हैं. यह अपने आप नहीं होता बल्कि इसके लिए मेटोबोलिज्म को बहुत बड़ा योगदान रहता है. इसलिए जिसका मेटाबोलिज्म ज्यादा अच्छा है, उसका डाइजेशन भी बहुत अच्छा होगा और भोजन का अवशोषण भी बेहतर होगा. इसके अलावा आंत में बचा अवशिष्ट पदार्थ भी आसानी से नीचे की ओर मूव करेगा. लेकिन अगर मेटाबोलिज्म सही नहीं है तो फूड का एब्जोर्बशन भी सही से नहीं होगा और अवशिष्ट पदार्थ भी नीचे की ओर मूव नहीं करेगा.
कॉन्स्टिपेशन हो ही न, इसके लिए क्या करें
डॉ श्री हरि ने बताया कि कुदरत ने हर समय के हिसाब से हमें ऐसी-ऐसी चीजें दी हैं जिनकी मदद से हम कई समस्याओं का समाधान खुद ही निकाल सकते हैं. इसलिए नेचर को बिगेस्ट हीलर कहा जाता है. यानी प्रकृति ही सबसे बड़ी मरहम लगाने वाली होती है. उन्होंने बताया कि कब्ज या कॉन्स्टिपेशन हो ही न इसके लिए सबसे जरूरी बात है कि अपनी डाइट को हेल्दी बनाइए. इसके लिए प्रकृति ने जो हमें जिस रूप में दिया है, उसी तरह से उसका इस्तेमाल कीजिए. कब्ज न हो, इसके लिए सीजनल फ्रूट और फाइबरयुक्त हरी सब्जियों का खूब सेवन कीजिए और खुद को किसी न किसी शारीरिक गतिविधियों में शामिल कीजिए. रोजना कम से कम एक घंटा वॉक कीजिए या एक्सरसाइज कीजिए या किसी न किसी तरह से शारीरिक गतिविधियों में खुद व्यस्त रखिए. अगर आप ऑफिस में काम कर रहे हैं तो सीढ़ियों पर उपर-नीचे कर शारीरिक श्रम कर सकते हैं. इसके अलावा रोजाना 2 से 3 लीटर पानी पीजिए.
अगर कब्ज हो जाए तो दूर कैसे करें
डॉ श्री हरि कहते हैं कि अगर कब्ज हो गया है और दो-तीन दिन से यह परेशान कर रहा है तो अपनी शारीरिक गतिविधियों को बढ़ा दीजिए. फाइबर वाली चीजें जैसे कि फलीदार सब्जियां, खजूर, फल, अखरोट, बादाम आदि का सेवन कीजिए. सर्दी के दिनों में सेब कब्ज को दूर करने का अचूक उपाय हो सकता है, इसका सेवन करें. तीन से चार दिनों में भी यदि कब्ज या कॉन्स्टिपेशन दूर नहीं हो रहा है तो स्टूल को पतला कर इसे बाहर निकालने के लिए लैक्सेटिव मेडिसीन का इस्तेमाल कर सकते हैं. अगर इससे भी कब्ज की परेशानी दूर नहीं हो रही है तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं. क्योंकि ज्यादा दिनों तक अगर कब्ज की समस्या है तो यह क्रोनिक कॉन्स्टिपेशन हो सकता है जिससे कई अन्य तरह की परेशानियां हो सकती है.
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