सेहत की बात : दुनिया की तमाम अबूझ बिमारियों में एक बीमारी है पार्किंसन (Parkinson’s Disease). इस बीमारी की चपेट में आने के बाद मरीज के दिमाग का नियंत्रण उसके शरीर के बाकी अंगों से खोने लगता है. अभी तक, नर्वस सिस्टम के न्यूरोडिजेनरेटिव डिसऑर्डर (Neurodegenerative Disorder) से जुड़ी पार्किंसन नामक इस बीमारी का दायरा बुजुर्गों तक ही सीमित था, लेकिन अब इस बीमारी ने अपने कदम नौजवानों की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिए हैं. यहां परेशान करने वाली बात यह है कि मेडिकल साइंस अभी तक न ही यह पता लगा सका है कि यह बीमारी क्यों होती है और न ही इस बीमारी का कोई ठोस इलाज खोजा जा सका है.
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पीएन रंजन के अनुसार, हमारे मस्तिष्क के निग्रा एरिया की सेल्स डोपामाइन नामक एक केमिकल बनाती है. डोपामाइन केमिकल न्यूरोट्रांसमीटर के तौर पर काम करता है और मस्तिष्क से मिलने वाले सभी संकेतों को शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचाता है. उदाहरण के तौर पर, यदि हम कुछ बोलना चाहते हैं तो यही डोपामाइन केमिकल मस्तिष्क से बोलने के संकेत हमारे ओंठों तक ट्रांसमीट करेगा और हम बोलना शुरू कर देंगे. एक उम्र के बाद निग्रा एरिया की सेल्स मरने लगती हैं और डोपामाइन केमिकल का लेवल कम होने लगता है. डोपामाइन केमिलक का कम होना ही पार्किंसन डिसीज है.
पार्किंसन डिसीज की चपेट क्यों आ रहे हैं नौजवान
डॉ. पीएन रंजन के अनुसार, पार्किंसन की बीमारी ज्यादातर 60 या इससे अधिक उम्र के लोगों में ही देखने को मिलती है. क्लासिकली, इस बीमारी के तीन लक्षण है. पहला ट्रिमर, जिसमें शरीर हिलने लगता है. दूसरा बॉडी में स्टिफनेस, जिसमें चलने में तकलीफ होती है और तीसरा ब्रेडिकाइनीसिया, जिसमें प्रतिक्रिया या मूवमेंट में देरी होना शामिल है. यह सच है कि अब पार्किंसन के लक्षण नौजवानों में भी देखने को मिल रहे हैं. लेकिन, यहां यह इन्वेस्टिगेट करना पडेगा कि नौजवानों में दिखने वाले यह लक्षण वाकई पार्किंसन की वजह से हैं या फिर किसी दूसरी वजह से हैं. क्योंकि आम जिंदगी में हम बहुत सी ऐसी दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिनकी वजह से पार्किंसन जैसे लक्षण आते हैं. यदि यह लक्षण किसी दवा की वजह से हैं तो हम इसे इडियोपैथिक पार्किंसन डिसीज नहीं कहेंगे.
वे दवाएं जिनकी वजह से आते हैं पार्किंसन के लक्षण
डॉ. पीएन रंजन के अनुसार, कई दवाइयां ऐसी है, जिनके लगातार सेवन के चलते पार्किंसन के लक्षण आते हैं. इनमें सबसे कॉमन ड्रग है डोमपरिडोन-पैंटोप्राज़ोल का कांबिनेशन और दूसरा पैंटोप्राज़ोल-लेवोसुलपिराइड का कांबिनेशन. ये दोनो दवाएं ऐसी है, जिनको लगभग सभी डॉक्टर अपने िप्रस्क्रिप्शन में जरूर लिखते हैं. वहीं कभी भी पेट से संबंधित कोई समस्या हुई तो लोग बिना डॉक्टर की सलाह पर केमिस्ट से इन कॉम्बिनेशन की दवाएं लेकर खा लेते हैं. कहा जाता है कि इन दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं है, लेकिन पार्किंसन के लक्षणों के साथ आए मरीजों में इन दवाओं का असर देखा जाता है.
पार्किंसन जैसे है कुछ बीमारियों के लक्षण
डॉ. पीएन रंजन के अनुसार, हमें ध्यान रखना चाहिए कि यदि हम किसी को पार्किंसन डिसीज या पार्किंसन सिंड्रो लेबल कर रहे हैं तो यह जरूर जान लें कि कहीं वे पेशेंट ड्रग इंड्यूस्ड तो नहीं हैं. उन्होंने बताया कि कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जिनके लक्षण पार्किंसन जैसे हैं. इन्हीं बीमारियों में एक बीमारी है विल्सन्स डिसीज. यह कॉपर मैटापॉलिज्म की बीमारी हैं, जिसमें कॉपर ब्रेन में डिपॉजिट हो जाता है. इस केस में भी मरीज पार्किंसन जैसे सिंटम करते हैं. इसके अलावा, साइक्रेटिक ड्रग्स का सेवन करने से भी पार्किंसन जैसे सिंटम आते हैं. लिहाजा, युवा अवस्था के मरीजों में यह अंतर करना बहुत जरूरी हैं कि पार्किंसन जैसे दिखने वाले लक्षण वाकई पार्किंसन है या किसी दवा खाने की वजह से.
क्या याद्दाश्त पर भी पडता है पार्किंसन का असर
पार्किंसन से पीडि़त मरीजों की याद्दाश्त भी प्रभावित होती है. इस सवाल पर इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पीएन रंजन का कहना है कि पार्किंसन सिंड्रोम के केवल दस फीसदी मरीजों में ही याद्दाश्त की समस्या पाई जाती है. वह भी तब, जब पार्किंसन की बीमारी अपनी एडवांस स्टेज पर पहुंच चुकी होती है. इसके अलावा, अन्य मरीजों में याद्दाश्त पर ज्यादा असर नहीं देखा जाता है.
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