पीर प्रेशर से बच्चों को निकालने के टिप्स (फोटो साभार: pexels/Gustavo Fring)
पीर प्रेशर (Peer Pressure) यानी कि साथियों का प्रभाव या दबाव. कई बार बच्चे अपने ग्रुप के साथियों की तरह दिखने या कूल शो करने के लिए जाने-अंजाने में दूसरों की देखादेखी करने लगते हैं. कई बार माता-पिता भी बच्चों की तुलना उनके साथियों से करते हैं. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों पर अक्सर एग्जाम में साथी की अपेक्षा अच्छे नम्बर लाने का दबाव होता है. कई बार बच्चे इस बात से भी प्रभावित हो जाते हैं कि हर कोई ऐसा कर रहा है तो हमें भी करना चाहिए. ऐसे में बच्चे चीजों या लोगों से प्रभावित होकर फैसला लेना लगते हैं जो कई बार नकारात्मक या सकारात्मक प्रभाव दोनों पैदा कर सकता है. इसके अलावा आजकल बच्चे टीवी, इन्टरनेट और सोशल मीडिया की भी नक़ल करने लगे हैं. लेकिन अगर आप बच्चा कुछ शांत है, या अचानक से आपको ये तर्क देने लगे कि उसने किया था इसलिए मैंने भी ऐसा ही किया या अरे माँ, ये कूल है, सब करते हैं, ऐसा कहने लगे तो सावधान हो जाएं. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आप अपने बच्चे को पीर प्रेशर से आप इस तरीके से निकाल सकती हैं...
ऐसे करें हेल्प
1. इन्टरनेट टाइम लिमिट बनाएं:
अपने बच्चे के टीवी और इंटरनेट के संपर्क में कम से कम आने दें. चाहें तो एक टाइम लिमिट बना दें. बच्चों को क्रिएटिव कामों में बिजी करें. उन्हें परिवार, स्कूल का काम जैसे काम करने की आदत डालें.
2. बच्चे पर रखें छिपी नज़र:
आपका बच्चा मोबाइल पर या सिस्टम पर क्या देख रहा है, क्या डाउनलोड कर रहा है, कैसे वीडियो गेम्स खेल रहा है. इस बात का ख़ास ख़याल रखें. आप चाहें तो बच्चे की ब्राउज़िंग हिस्ट्री से उसकी इन्टनेट सर्च का पता लगा सकते हैं. उसके व्हट्सएप, फेसबुक और फ्रेंड लिस्ट पर भी नजर रखें. अगर आप उसके दोस्तों से भी थोड़ा संपर्क रख सकें तो बेहतर रहेगा.
3. बच्चों से बातें करें:
जब आप बच्चे के साथ टीवी टाइम शेयर करें तो उस दौरान उन्हें पारिवारिक मूल्यों के बारे में बताएं और उन्हें एहसास कराएं कि आप उनके दोस्त हैं और वो आपसे कुछ भी शेयर कर सकते हैं. जब बच्चा आपसे कुछ शेयर करें तो जजमेंटल न हों बल्कि ध्यान से उसकी बात सुनें और दोस्ताना तरीके से उसे समझाएं.
4. सही और गलत का अंतर समझाएं:
कई बार टीवी या स्कूल में दोस्तों की देखादेखी कूल बनने के चक्कर में बच्चे अक्सर सिगरेट, शराब और ड्रग्स का सेवन करने लगते हैं और आगे जाकर उन्हें इनकी लत लग जाती है. ऐसे में बेहद जरूरी है कि आप बढ़ते बच्चों से बातचीत करें और उन्हें सही और गलत के बीच अन्तर करना सिखाएं. उन्हें अपनी सेहत के प्रति सजग रहना सिखाएं.
5. यूनीकनेस की तारीफ करें:
बच्चे कूल बनने की कोशिश करें इससे पहले ही उन्हें बताएं कि वो कितने ख़ास हैं. बच्चों को तर्क से फर्क मिटाना सिखाएं. इसके साथ ही उन्हें खुद को एक्सप्रेस यानी कि व्यक्त करना सिखाएं ताकि वो कभी दबाव में ना आएं. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
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