हम अपनी जहरीली पत्नियों और उनके फेमिनिज्म से तंग आ चुके हैं. पश्चिम से आया फेमिनिज्म भारतीय परिवार संस्था को तोड़ रहा है, हर साल 92,000 पुरुष बीवियों से तंग आकर आत्महत्या कर रहे हैं. ये मैं नहीं कह रहा, ये आंकड़ा है नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का. इसलिए हमने तय किया कि 15 अगस्त के दिन हम वाराणसी जाकर गंगा में डुबकी लगाएंगे और अपनी जीवित पत्नियों का पिंडदान करेंगे. उन्होंने तो जीते जी ही हमारा जीवन नर्क के समान बना दिया है. हम तो पिंडदान करके सिर्फ इतना ही चाहे रहे हैं कि इस जीवन में हमें इस देश में फैल रहे नारीवाद के जहर से मुक्ति मिल जाए.
मेरे घर में लड़के-लड़की में कोई भेदभाव नहीं
मेरा जन्म अकोला के एक गुजराती परिवार में हुआ. बचपन से मैं एक बड़े संयुक्त परिवार में पला-बढ़ा. हम 14 भाई और 5 बहन थे. घर में औरतों और मर्दों का काम बंटा हुआ था. औरतें घर में काम करतीं और मर्द बाहर पैसे कमाने जाते. घर में भी लड़के-लड़कियों में कोई भेद नहीं था, जैसे ये फेमिनिज्म वाली औरतें टीवी पर चिल्ला-चिल्लाकर बोलती हैं. हमारी संस्कृति में लड़का-लड़की में कभी भेद नहीं किया गया है. जब मैं बड़ा हुआ तो मैंने अपना बिजनेस शुरू किया. पढ़ाई में मेरी कुछ खास रुचि नहीं थी, इसलिए मैं सिर्फ बारहवीं तक ही पढ़ा. लेकिन बाकी दुनियादारी और बिजनेस में मेरा दिमाग खूब तेज चलता था. 1984 में टीवी नया-नया आया था. मैंने इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान खोली और बाद में जब कंप्यूटर आया तो कंप्यूटर का भी बिजनेस करने लगा. धीरे-धीरे मेरा बिजनेस काफी बढ़ गया. 1999 में मेरे अंडर में कुल 35 लोग काम कर रहे थे.
शादी और 498 ए का मुकदमा
1999 में ही मेरी पहली शादी हुई. लड़की बंगलुरू की थी और ये अरेंज मैरिज थी. शादी के कुछ दिनों के भीतर ही उसने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. मेरे ऊपर दबाव डालने लगी कि मेरे घरवालों को पैसे दो. मैंने एक-दो बार कुछ मामूली पैसे भेज दिए. फिर मुझे समझ में आया कि नागिन को कितना भी दूध पिलाओ, वो जहर ही उगलेगी. हमारे घरों में हमें ये सामाजिक ज्ञान हमेशा सिखाया जाता है. मैंने अपनी पत्नी को काबू में करने की कोशिश की लेकिन वो तो और बेलगाम होती गई. तब तक हम अकोला छोड़कर नागपुर जा चुके थे. विवाद बढ़ा तो वो मुझे छोड़कर चली गई और मेरे और मेरे परिवार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत मुकदमा कर दिया. उस समय तो मुझे पता ही नहीं था कि ये 498 ए क्या होता है. पुलिस वालों ने मुझे बताया कि ये दहेज का कानून है. हमारे गुजराती समाज में तो दहेज होता ही नहीं है, बल्कि शादी का सारा खर्चा भी लड़के वाले ही करते हैं. मैंने सुना है कि दहेज यूपी, बिहार और राजस्थान में चलता है.
एक बार जो मुकदमा हो गया तो फिर जिंदगी बर्बाद हो गई. जेल जाना पड़ा, किसी तरह जमानत मिली तो बार-बार मुकदमे के सिलसिले में भाग-भागकर बंगलुरू जाता. मेरे मां-बाप को भी बुढ़ापे और बीमारी की हालत में कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े. आखिरकार कोर्ट ने उन्हें राहत दे दी. वहां बंगलुरू के कोर्ट में पहली बार मुझे मेरे जैसे ढेरों मर्द मिले जो अपनी फेमिनिस्ट टाइप की बीवियों से परेशान थे. जो दाएं बैठा है उससे पूछो कि वो यहां क्यों आया तो पता चले कि उस पर 498 ए लगा हुआ है. जो बाएं बैठा है, उससे पूछो तो उस पर भी 498 ए लगा है. मुझे तो पता ही नहीं था कि इतने सारे मर्दों की जिंदगी इस देश में बर्बाद हो रही है. वहां मेरी मुलाकात अनिल कुमार और पांडुरंग से हुई. अनिल कुमार बीएचयू के गोल्ड मेडलिस्ट और पांडुरंग आईआईटी, पवई से पढ़े थे. इतने पढ़े-लिखे मर्दों को इस देश के अंधे कानून ने सलाखों के पीछे डलवा दिया था. हम सबका दुख साझा था तो हमने मिलकर एक संस्था बनाने और अपने जैसे लोगों की मदद करने की सोची.
परिवार को बचाने के लिए सेव द इंडियन फैमिली फाउंडेशन
इस देश में वैसे भी सारा कानून औरतों के लिए ही है. मीडिया में भी सर्फ औरतों के शोषण की ही खबर छपती है. घरों के अंदर मर्दों के साथ क्या हो रहा है, इसके बारे में कभी कोई बात नहीं करता. हम सबने मिलकर एक संस्था बनाई- सेव द इंडियन फैमिली फाउंडेशन. इसके बाद हमने बंगलुरू, हैदराबाद, कोलकाता और दिल्ली में पब्लिक स्पेस में मीटिंग शुरू की. हर शहर में नए लोग हमसे जुड़ते गए. हमने धरना-प्रदर्शन किया, प्रेस कॉन्फ्रेंस की. हमारी प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद पहली बार मीडिया को पता चला कि परिवारों के अंदर पुरुष कैसी तकलीफ से गुजर रहे हैं और औरतें उन पर किन-किन तरीकों से अत्याचार कर रही हैं. इसके पहले तो मीडिया सिर्फ औरतों की ही खबर छापता था.
फेमिनिज्म भारतीय परिवारों को तोड़ने की साजिश
सरकार को ये बात समझ में नहीं आती कि 28 से 35 साल के युवा, जिनका काम देश का भविष्य बनाना है, वो सब तो कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगा रहे हैं. ये सब विदेशी मुल्कों की साजिश है और इस साजिश में उनका साथ दे रही हैं भारत की फेमिनिस्ट औरतें और यहां का मीडिया. उनका मकसद है भारतीय परिवार संस्था को तोड़ना और हिंदू संस्कृति को नुकसान पहुंचाना. इनको विदेशों से अरबों डॉलर मिलता है और ये 24 घंटा उसी के लिए काम करती रहती हैं. ये ज्यादातर फेमिनिस्ट औरतें ऐसी हैं, जिनका खुद कोई परिवार नहीं है. वो या तो सिंगल हैं या तलाक लेकर बैठी हैं या लिव इन में हैं. मीडिया वाले भी उन्हीं की बात सुनते हैं क्योंकि जिसके पास पैसा होगा, सब उसी की बात सुनेंगे.
निर्भया केस के बाद सरकार ने और कड़े कानून बना दिए. सब बिना सोचे-समझे कैंडल मार्च में चले जा रहे हैं. उनको समझ नहीं आ रहा है कि तुम जो आज लड़कियों के लिए कैंडल मार्च कर रहे हो, कल को बाजू की कोई लड़की ही तुम्हारे कैंडल डाल देगी और तुम कोर्ट के चक्कर लगाते रह जाओगे. अब तो ऐसा माहौल हो गया है कि अगर कोई औरत बोल दे कि इसने मेरा रेप किया है तो कोई उस आदमी की बात सुनेगा ही नहीं. उसे सीधा उठाकर जेल में डाल दिया जाएगा. हमारे यहां अंधा कानून है, कोई चेक और बैलेंस नहीं है.
शादी है या लीगल प्रॉस्टीट्यूशन
ये हमारी कोशिशों का ही नतीजा था कि 2007 में कोर्ट ने पहली बार ये बोला कि 498-ए कानून लीगल टेररिज्म का काम कर रहा है. उस कानून में बदलाव करने की मांग उठी. घरेलू हिंसा कानून में बदलाव की मांग उठी. लेकिन सलमान खुर्शीद ने उसमें नया पेंच अड़ा दिया. कहते हैं कि तलाक होता है तो आधी संपत्ति पर पत्नी का हक होगा. मेरी समझ में नहीं आता कि ये शादी है या लीगल प्रॉस्टीट्यूशन है. दो दिन की शादी, दो साल की शादी या दस साल की शादी. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता. बस एक कानून बनाकर उसे सबके सिर पर थोप दो. इन लोगों ने शादी को लीगल प्रॉस्टीट्यूशन बना दिया है. मैं तो कहूंगा कि इस देश में युवाओं को शादी ही नहीं करनी चाहिए. प्रॉस्टीट्यूशन ज्यादा बेहतर है. वो पैसे लेगी लेकिन कम से कम आपके ऊपर मुकदमा तो नहीं ठोंकेगी, आपकी संपत्ति में आधा हिस्सा तो नहीं मांगेगी.
फेमिनिज्म एक जहर है.
ये फेमिनिज्म का ही नतीजा है कि औरतों में संस्कार बिलकुल खत्म होता जा रहा है. पहले हमारे यहां औरतें अपने व्यवहार से परिवार को बचाकर रखती थीं. अब सबके दिमाग में आजादी का भूत चढ़ गया है. कानून भी कहता है कि अगर पति-पत्नी अलग रह रहे हैं तो बच्चा मां के पास ही रहेगा. इसका बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है. फेमिनिस्ट औरतें बच्चों की अच्छी परवरिश नहीं कर पातीं, उन्हें संस्कार नहीं दे पातीं. कानून को ये समझ में नहीं आता कि पिता के बिना बच्चे को संस्कार नहीं मिल सकते. औरतों के इंसेस्ट रिलेशनशिप मर्दों के मुकाबले बहुत ज्यादा होते हैं, शादी के पहले और शादी के बाद भी शादी से बाहर रिश्ता बनाने में औरतें आगे हैं. इन सबके चलते बच्चों को अच्छे संस्कार कैसे मिलेंगे.
मैरिटल रेप क्या होता है
फेमिनिस्टों ने एक नया फंडा निकाला है मैरिटल रेप. अब ये एक नया कानून बनाने की बात हो रही है. मैं पूछता हूं, मैरिटल रेप क्या होता है. पूरे परिवार, रिश्तेदार और समाज के सामने शादी हुई थी. सबके सामने ही तो औरत ने कंसेंट दिया था. 500 लोग आते हैं, खाना खाते हैं और फिर औरत ये आरोप लगाती है कि शादी के अंदर उसके साथ मैरिटल रेप हो रहा है. ये बलकुल झूठ बात है. ये सब फेमिनिस्टों का किया-धरा है. फेमिनिज्म का हमारे देश में परिणाम ये हुआ है कि आज हर साल 92,000 औरतें विधवा हो रही हैं क्योंकि इतने पुरुष आत्महत्या कर रहे हैं.
अब वक्त आ गया है कि हम पुरुषों की भी आवाज सुनी जाए और इस देश का कानून बदला जाए. फेमिनिज्म का नाश हो और परिवार संस्था की रक्षा हो.
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FIRST PUBLISHED : September 13, 2018, 12:30 IST