महिलाओं के लिए दुनिया के सबसे असुरक्षित देशों में भारत नंबर 1
भारत औरतों के लिए ख़तरनाक देश तो हमेशा से था. पर अब एक सर्वे कह रहा है कि भारत औरतों के लिए पूरी दुनिया में सबसे ख़तरनाक देश है. विश्वगुरु को बधाइयां! भले ही फीफा जैसे टटपुंजिया टूर्नामेंट में हमें कोई भी न जानता हो, पर देखिये हमारे देश और उसके बांकेबहादुरों ने न सिर्फ अफगानिस्तान, सीरिया, सोमालिया और सऊदी अरब को बल्कि हमारे पड़ोसी पाकिस्तान को भी पीछे छोड़ दिया है. देश की मर्दानगी को इससे बड़ा और बेहतर तमगा क्या मिल सकता था, जो टॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के इस सर्वे ने उनकी चौड़ी और मज़बूत छाती पर टांक दिया है.
आज तो अपने सपूतों की इस उल्लेखनीय उपलब्धि पर भारत माता भी फूली न समा रही होगी. सर्वे में यूनाइटेड नेशंस (यूएन) के सदस्य 193 देश शामिल हैं. रॉयटर्स के इस सर्वे के छह बुनियादी आधार थे- महिला स्वास्थ्य की स्थिति, उनके प्रति भेदभाव, पितृसत्तात्मक परंपराएं, महिलाओं के साथ सेक्सुअल और नॉन सेक्सुअल वॉयलेंस यानी यौन हिंसा और अन्य प्रकार की हिंसा और ह्यूमन ट्रैफिकिंग.
जिस श्रेणी में भारत “सर्वश्रेष्ठ” पाया गया है, वह यौन हिंसा और ह्यूमन ट्रैफिकिंग है. लड़कियों और महिलाओं के साथ यौन हिंसा हो या उन्हें अगवा करके घरेलू श्रम और यौन कार्यों में ढकेला जाना, इस सबमें हमारा कोई सानी नहीं.
बहुत से ऐसे लोग हैं, जो इस सर्वे के निष्कर्षों को पढ़कर मूंछों पर ताव दे रहे होंगे और बहुत से ऐसे भी, जो कहते पाए जा रहे हैं कि ये सर्वे पश्चिम और भारत की तरक्की और गौरवशाली अतीत से जलने वाले मुल्कों की साजिश का हिस्सा है.
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अगर इस काम में पश्चिम के किसी देश की हमसे बराबरी करने की कोई हैसियत है तो वो है सर्वे के टॉप 10 में जगह बनाने वाले डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका की. हम तो खैर उसके भी बाप हैं.
इसके पहले यह सर्वे 2011 में हुआ था. तब पाकिस्तान हमसे आगे था और हम चौथे नंबर पर थे. सात सालों में हमने इस पिछड़ेपन से निजात पा ली और साबित कर दिया कि बाप बाप होता है और बेटा बेटा. एटम बम पटकना हो या अपनी औरतों को पीटना, हमई नंबर वन हैं. क्या पाकिस्तान को पीछे छोड़ने के लिए भारत की औरतें हल्की फुल्की पिटाई, थोड़ी बहुत यौन हिंसा, थोड़ा-मोड़ा त्याग बलिदान नहीं कर सकतीं? तमाम अख़बार भारत का नाम लेकर मोटी-मोटी हेडलाइन के साथ जब ये खबर छाप रहे हैं, तब महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अफसर-मंत्री चुप हैं. शायद इस उम्मीद में कि सर्वे का सच बाकी दूसरे शोर-ओ-गुल में दब जाएगा.
इसके पहले यह सर्वे 2011 में हुआ था. तब पाकिस्तान हमसे आगे था और हम चौथे नंबर पर थे. सात सालों में हमने इस पिछड़ेपन से निजात पा ली और साबित कर दिया कि बाप बाप होता है और बेटा बेटा. एटम बम पटकना हो या अपनी औरतों को पीटना हमई नंबर वन हैं. क्या पाकिस्तान को पीछे छोड़ने के लिए भारत की औरतें हल्की फुल्की पिटाई, थोड़ी बहुत यौन हिंसा, थोड़ा मोड़ा त्याग बलिदान नहीं कर सकतीं. तमाम अख़बार भारत का नाम लेकर मोटी-मोटी हेडलाइन के साथ जब छाप रहे हैं, तब महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अफसर मंत्री चुप हैं. शायद इस उम्मीद में कि सर्वे का सच बाकी दूसरे शोर ओ गुल में दब जाएगा.
और इन सबके बीच हैं हम औरतें, जो न चकित हैं, न भ्रमित. हम सोच रहे हैं कि क्या सचमुच तुम इन आंकड़ों पर इतने हैरान हो? क्या टामसन रॉयटर्स ये न कहता तो तुम्हें पता ही नहीं था कि तुम्हारे देश में एक औरत की जिंदगी कैसी है? क्या सचमुच तुम्हें उस डर का राई-रत्ती अंदाजा नहीं, जिसमें वे जीती हैं दिन-रात?
चलो एक काम करो, इस सर्वे को विदेशी साजिश कहकर खारिज कर दो. पर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का आंकड़ा जो चीख-चीखकर कह रहा है कि 2016 में 2012 के मुकाबले औरतों के साथ होने वाली हिंसा में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है, उसका क्या करोगे. इसमें रेप, एसिड अटैक, यौन हिंसा और दहेज के कारण हुई हत्याएं शामिल हैं. 2016 में भारत में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के कुल 1500 मामले दर्ज हुए, जिसमें दो तिहाई 18 साल से कम उम्र की लड़कियां हैं, जिन्हें घरेलू श्रम से लेकर यौन व्यापार तक में ढकेला गया. यहां ये बताने की जरूरत नहीं कि ये आंकड़ा सिर्फ दर्ज हुए मामलों का है. उन हजारों लड़कियों का नहीं, जिनका नाम कहीं किसी फाइल में दर्ज नहीं है.
अपनी हकीकत जानने के लिए रॉयटर के सर्वे का मुंह मत तकिए. अपने ही गिरेबान में झांककर देख लीजिए. ये आंकड़े 2012 के बाद के हैं यानी तब, जबकि निर्भया वाली घटना हो चुकी. निर्भया इस देश के इतिहास में एक निर्णायक घटना इसलिए भी थी कि उसके बाद ही ये हुआ कि औरत की सुरक्षा का सवाल अचानक इस मुल्क की केंद्रीय चिंता का सवाल बन गया. जब संसद से लेकर सड़क तक इस बारे में बात हुई, जब पहली बार लोग औरत के सवाल पर लाठी, गोली और वॉटर कैनन खाने सड़कों पर उतरे. जब देश की सर्वोच्च न्यायपालिका तक को ये जरूरी लगा कि महिलाओं से जुड़े कानून बदले जाएं. 10 जजों की बेंच ने दिन-रात एक कर काम किया, न्यायपालिका ने रातोंरात कानून बदला, लाखों कागज काले किए गए, सबसे ज्यादा लेख लिखे गए.
और हुआ क्या? एनसीआरबी का आंकड़ा इस सारी मुहिम को मुंह चिढ़ाते हुए कह रहा है कि 2012 के बाद औरतों के साथ होने वाली हिंसा में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है. वर्ष 2016 में औरतों के खिलाफ कुल 338,954 हिंसा के मामले दर्ज हुए हैं. ये आंकड़ा हम औरतों के मुंह पर तो तमाचा है ही, ये न्यायपालिका और समूची व्यवस्था को भी मुंह चिढ़ा रहा है. और बना लो कानून, और लिख लो लेख. जितना करोगे, मर्द उतना ही ज्यादा हिंसक होगा.
डंडा लेकर खड़े होने से नहीं रुकते रेप. रेप रुकते हैं, रेप की संस्कृति के बारे में बात करने से, उस इतिहास, परवरिश और संस्कार पर चोट करने से, जो रेप की इजाजत देती है, जो लड़कों को भरी बस और ट्रेन में मास्टरबेट करने की इजाजत देती है. जो अपनी लड़कियों को सिखाती है, रेप से कैसे बचो, लेकिन अपने बेटों से कभी नहीं कहती, थोड़ा तमीज़ से रहो.
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Tags: India, Safety of women
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