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स्वाद का सफ़रनामा: शरीर को एनीमिया से बचाता है करौंदा, दुनिया में 25 से ज्यादा हैं प्रजातियां, रोचक है इतिहास

स्वाद का सफ़रनामा (Swad Ka Safarnama).

स्वाद का सफ़रनामा (Swad Ka Safarnama).

Swad Ka Safarnama: करौंदा एक जंगली फल है जो गुणों से भरपूर है. खून की कमी होने पर करौंदा खाना काफी फायदेमंद हो सकता है. ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

करौंदे की उत्पत्ति भारत के पश्चिमी क्षेत्र में मानी जाती है.
करौंदे की जड़ पेट के कीड़ों को खत्म कर देती है.
करौंदे की दुनियाभर में 25 से ज्यादा प्रजातियां मौजूद हैं.

Swad Ka Safarnama: शुद्ध रूप से खट्टे फल के रूप में मशहूर करौंदा को जंगली फल माना जाता है. लेकिन अब इसकी ‘इज्जत’ बढ़ चुकी है. जब इसका सीजन होता है, तब यह भारतीय रसोई का एक अंग बन जाता है. इसकी चटनी जानदार बनती है और करौंदे का अचार तो पूरे देश में बारहो-मास खाया जाता है. इसे और भी व्यंजन बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है. यह एक देसी भारतीय फल है और अफ्रीका से भी इसके तार जुड़े हुए हैं. गुणों से भी यह भरा हुआ है. एनीमिया से शरीर की रक्षा करने में इसका जवाब नहीं है. शरीर में बढ़ रहे पित्त को भी यह रोक देता है. करौंदा खाने में में बेहद खट्टा व तीता (तीखा) है, लेकिन देखने में यह बहुत ही सुंदर है.

ब्रिटिश शासन को इसकी झाड़ियां इसलिए पसंद थी

करौंदा (Karounda/Carissa) असल में कांटों से भरी झाड़ियों में उगता है. बहुत पहले तक खेतों को जानवरों आदि से बचाने के लिए मेड़ पर इसे उगाया जाता था. यानी ‘आम के आम और गुठलियों के दाम’ हो जाते थे. फल से पहले इसकी घनी कांटेदार झाड़ियों की बात कर लें. गुलाम भारत में ब्रिटिश सरकार इसकी कायल रही है. इतिहास बताता है कि जब देश में नमक आंदोलन चल रहा था, उस वक्त आंदोलनकारियों को दूर रखने के लिए अंग्रेज इसकी झाड़ियों को बाड़ (Hedge) के रूप में इस्तेमाल में लाते थे. अंग्रेजों ने विभिन्न राज्यों की सीमाओं को भी बांटने के लिए करौंदे की झाड़ी का इ्रस्तेमाल किया था.

Karounda

पूरी दुनिया में करौंदे की 25 से अधिक प्रजातियां हैं. Image-canva

हजारों वर्ष पुराना यह खट्टा फल भारतीय रसोई में अपनी दखल रखता है. इसकी चटनी और अचार तो बनता ही है, साथ ही जैम, जेली, कैंडी, स्क्वैश और सिरप जैसे अन्य व्यंजनों में भी एक घटक के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है. फूड एक्सपर्ट के अनुसार अब पूरी दुनिया में करौंदे की 25 से अधिक प्रजातियां हैं, जिनमें पांच प्रजातियां भारत की मूल निवासी है. अब इसकी खेती भी की जाती है और पूरी दुनिया में इसकी मांग बढ़ चली है. उसका कारण है कि विशेषज्ञ लोग करौंदे के गुणों से भली-भांति परिचित हो चले हैं.

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भारत व दक्षिण अफ्रीका में उगा और दुनिया में फैला

करौंदे का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है. फूड हिस्टोरियन मानते हैं कि इसकी उत्पत्ति भारत के पश्चिमी क्षेत्र में मानी जाती है. लेकिन यह जीवट झाड़ी वाला फल है, इसलिए इसकी कई प्रजातियां कई क्षेत्रों में भी पहुंच गई. करौंदे के पुराने समय से ही तार दक्षिण अफ्रीका से भी जुड़े हैं. वहां भी इसकी कुछ प्रजातियों की उत्पत्ति मानी जाती है. माना जाता है कि इसकी विभिन्न जातियां नेपाल, अफगानिस्तान, श्रीलंका, जावा, मलेशिया, म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में भी उग रही हैं.

बताते हैं कि पुराने वक्त में ग्रामीण क्षेत्रों में इसका उपयोग एक औषधीय पौधे के रूप में भी किया जाता था. तब छाती के दर्द में जड़ के अर्क का प्रयोग किया जाता है. बुखार के उपचार में पत्तियों के अर्क का इस्तेमाल भी होता था. चूंकि यह छोटा सा फल चमत्कारिक गुणों से भरपूर है, इसलिए कई देशों में अब इसकी खूब खेती की जाती है.

आयुर्वेद भी करौंदे को विशेष फल मानता है

किचन में करौंदे का उपयोग तो है ही, आयुर्वेद ने भी इसके महत्व को पहचाना है. भारतीय जड़ी-बूटियों. फलों व सब्जियों पर व्यापक रिसर्च करने वाले जाने-माने आयुर्वेद विशेषज्ञ आचार्य बालकिशन के अनुसार करौंदे का पका फल प्रकृति से अम्लीय, तिक्त, गर्म, गुरु, वात को कम करने वाला, खाने में रुचि बढ़ाने वाला और प्यास को भी बढ़ाता है. इसमें मधुर, पाचक, पित्त को कम करने वाले गुण भी मौजूद हैं. यह जलन को कम करने वाला तथा विषनाशक होता है. इसकी जड़ पेट के कीड़ों को समाप्त कर देती है. जानी-मानी डायटिशियन अनीता लांबा के अनुसार विभिन्न एसिड से भरपूर करौंदा शरीर की विषाक्तता को कम करता है. इसमें मौजूद विशेष प्रकार के विटामिन्स व मिनरल्स ह्यूमन बॉडी को एनीमिया से बचाते हैं. यह शरीर में विभिन्न दबावों व तनावों से पैदा होने वाल पित्त को भी शांत कर देता है. इसलिए यूनानी व होम्योपैथ उपचार में इसके अर्क का प्रयोग किया जाता है.

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इसके खट्टे और तीखेपन में कई खासियतें हैं

करौंदे का खट्टापन व तीखापन ही इसे विशेष बनाता है. इसमें रोगाणुरोधी गुण भी मौजूद हैं. इसका उचित सेवन ब्लडप्रेशर को भी कंट्रोल करता है. इसके अंदर मौजूद विभिन्न एसिड ब्लड को भी साफ रखते हैं, जिससे दिल का फंक्शन नॉर्मल रहता है. इसका उचित मात्रा में सेवन अपच को रोकते हैं और पेट के पाचन सिस्टम को दुरुस्त किए रहते हैं. उसका कारण यह है कि करौंदे में पेक्टिन पाया जाता है. यह घुलनशील फाइबर है जो आंतों में जैल के रूप में बदल जाता है. इससे डाइजेशन सिस्टम गड़बड़ नहीं करता है.

Karounda

संतुलित मात्रा में करौंदा खाने के कोई साइड इफेक्ट नहीं है. Image-canva

रिसर्च में यह भी पाया गया है कि करौंदे में एंटी-इंफ्लेमेटरी यानी सूजनरोधी गुण भी पाए जाते हैं. यह बॉडी की इंटरनल सूजन को भी बढ़ने नहीं देता है. करौंदा गर्मी के दौरान पक जाता है और पूरी बरसात के दौरान रहता है. तब इसे खाने की सलाह दी जाती है, ताकि शरीर मौसमी बुखार से बचा रहे. उसका कारण यह है कि इसमें एंटीऑक्सीडेंट यौगिक भी खूब पाए जाते हैं. इसमें कैल्शियम भी होता है जो हड्डियों व दांतों को मजबूत बनाए रखता है. संतुलित मात्रा में करौंदा खाने के कोई साइड इफेक्ट नहीं है. फिर भी इसे ज्यादा सेवन करने से बचें, क्योंकि इसमें मौजूद खट्टापन दांतों को प्रभावित कर सकता है और पेट में गैस पैदा कर सकता है.

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