दिल्ली-एनसीआर में आग बरसाता सूरज चैन नहीं लेने दे रहा है. गर्मी के ताप से बचने का एक ही उपाय है कि कुछ ‘ठंडा-ठंडा, कूल-कूल’ मिल जाए, ताकि शरीर में ठंडक आए तो उसका असर मन पर भी पड़े. इस धधकती गर्मी से बचने का तो एक ही उपाय नजर आ रहा है, वह है अगर ठंडी-ठंडी लस्सी पीने को मिल जाए तो दिमाग में भी ताजगी आ जाए. हम आपको लस्सी पिलाने के लिए पुरानी दिल्ली ले चल रहे हैं. यहां आपको मजा जरूर आएगा, उसका कारण यह है कि लस्सी वालों का खानदानी काम दूध का रहा है और वे लाहौर से वाया अमृतसर होते हुए पुरानी दिल्ली पहुंचे हैं.
लस्सी के अलावा कुछ नहीं मिलता
पुरानी दिल्ली का चांदनी चौक इलाका आजकल खासा गुलजार है. पूरे बाजार को स्पेशल कॉरिडोर बनाने के चलते अब चांदनी चौक की रंगत अलग ही निखर रही है. आप लाल किला से चांदनी चौक बाजार की ओर चलेंगे तो सामने फतेहपुरी मस्जिद से पहले ही बायीं ओर की दुकानों में एक ‘अमृतसरी लस्सी वाला’ की दुकान नजर आ जाएगी.
दुकान की विशेषता यही है कि यहां लस्सी के अलावा कुछ नहीं मिलता है. लस्सी भी सीमित वैरायटी की, लेकिन जिसे भी पिएंगे, आप मानने लगेंगे कि असली लस्सी इसी को तो कहते हैं. सब कुछ असली, न पानी और न ही कोई अननेचुरल पेय.
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कई तरह की मिलेंगी वैराइटीज़
इस दुकान पर 7 प्रकार की ही लस्सी मिलती है. सबका फ्लेवर अलग और स्वाद ऐसा कि आपका मन करेगा कि लस्सी की हर बूंद भी बेकार नहीं जानी चाहिए. लस्सी के नाम सुनिए, मलाई लस्सी, मेंगो, बनाना, केसर बादाम, रोज बादाम, नमकीन जीरा और डाइट लस्सी. मेंगो लस्सी सीजनल है, बाकी लस्सी पूरे साल मिलती है. सबसे ज्यादा मलाई लस्सी बिकती है, लोगों का कहना है, उसका जो स्वाद है, वह कहीं नहीं मिलता है.
असल में इस लस्सी में दही, चीनी, दूध और गुलाब जल डालकर फेंटा जाता है और फिर गिलास में डालने के बाद ऊपर मोटी मलाई छोड़ दी जाती है. इसके बाद दोनों काम कीजिए लस्सी खाइए भी और पीजिए भी. इनकी केसर बादाम और रोज़ बादाम लस्सी का भी जवाब नहीं है. इन लस्सी की कीमत 40 रुपये से 75 रुपये के बीच है.
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1972 से चल रही दुकान
यह लस्सी की दुकान वर्ष 1972 से चल रही है. वैसे दुकान का परिवार आजादी के बाद से ही चांदनी चौक इलाके में पहले पनीर और दूध की बोतलें बेचता था. उसके बाद लस्सी की दुकान खोली गई. परिवार लाहौर में रहता था, विभाजन के बाद अमृतसर रहा, फिर दिल्ली चला आया. सबसे पहले राधेश्याम चावला ने पनीर व दूध की बोतले बेचीं. वर्ष 1972 में उनके बेटे सुरेंद्र चावला ने अलग से यह लस्सी की दुकान शुरू की. वर्ष 2000 तक यहां मात्र मीठी और नमकीन लस्सी बेची जाती थी.
तीसरी पीढ़ी के अंशुमन चावला ने लस्सी की वैरायटी बढ़ाई और यह दुकान सालों से शान से चल रही है. उनका कहना है कि हमने शुद्धता पर ध्यान दिया, तभी लोग हमारी दुकान की लस्सी को खूब पसंद करते हैं. सुबह 8 बजे लस्सी बनना शुरू हो जाती है और रात 10 बजे तक आप लस्सी का मजा उठा सकते हैं. अवकाश कोई नहीं है.
नजदीकी मेट्रो स्टेशन: चांदनी चौक
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