भारत में महिला स्वास्थ्य की हकीकत
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट आ गई है. ये रिपोर्ट बहुत कुछ कहती है. इस देश के परिवारों के बारे में, रिश्तों के बारे में, सेहत के बारे में और कुल मिलाकर जिंदगी के बारे में. सर्वे तो एक बहाना है. सर्वे तो सिर्फ उन तथ्यों को आंकड़ों से और मजबूत कर देता है. वरना क्या तथ्य और क्या हकीकत, कुछ भी छिपा है क्या हमारी नजरों से.
ये रिपोर्ट कहती है कि हिंदुस्तान में कॉन्ट्रेसेप्शन यानि गर्भनिरोधक तरीकों का इस्तेमाल करने वाले मर्दों की संख्या 5.9 फीसदी है. यानी सेक्सुअली एक्टिव प्रत्येक 100 मर्दों में सिर्फ 5.9 फीसदी ऐसे हैं, जो सुरक्षित तरीके से सेक्स करते हैं. यानी दुनिया का दूसरी सबसे ज्यादा आबादी वाला देश, जहां इस वक्त तकरीबन 50.6 करोड़ मर्द सेक्सुअली एक्टिव हैं, उनमें से सिर्फ 5.9 फीसदी मर्दों को अपनी फीमेल पार्टनर के स्वास्थ्य और सुरक्षा की चिंता है. बाकी को इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि भारत में कानूनी और गैरकानूनी ढंग से कितनी एमटीपी (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी) किट बिक रही हैं.
सर्वे की रिपोर्ट तो मर्दों के बारे में थी, लेकिन कहानी औरतों की जिंदगी बयां करती है. असुरक्षित सेक्स आदमी करता है और असर औरतों की जिंदगी पर पड़ता है.
अगर आपको इस देश में औरतों की सेक्सुअल और रिेप्रोडक्टिव हेल्थ (प्रजनन स्वास्थ्य) की जमीनी हकीकत जाननी है तो बड़े अस्पतालों में नहीं, छोटे-छोटे गली-मोहल्लों, शहरों, कॉलोनियों में गाइनिकॉलजिस्ट के क्लिनिक में जाकर बैठिए और सरकारी अस्पतालों के महिला विभाग में. जैसे इंसानी रिश्तों की हकीकत फैमिली कोर्ट में दिखाई देती है, औरतों की सेहत की हकीकत वहां दिखती है.
मैंने दोनों जगहों पर अनेकों बार घंटों बिताए हैं. कभी स्टोरी के चक्कर में तो कभी यूं ही पता नहीं किस उम्मीद की तलाश में.
दिल्ली में भोगल की एक पुरानी सीलन वाली गली में उस लेडी डॉक्टर का क्लिनिक था. काले रंग के बोर्ड पर हिंदी में एमबीबीएस, महिला रोग विशेषज्ञ लिखा था. 25 सड़कों और पचहत्तर गलियों वाले उस मुहल्ले में दूर-दूर तक एक वही महिला डॉक्टर थी, जिसके क्लिनिक में घुसते ही लकड़ी की दो लंबी सी पुरानी बेंच रखी थी और जो हर वक्त औरतों से ठसाठस भरी रहती थी. उस क्लिनिक के एक कोने में बैठकर आप वहां आने वाली औरतों के चेहरे देखिए और उनकी बातें सुनिए. उनमें से अधिकांश बेवक्त, बेवजह ठहर गए गर्भ को गिराने के लिए आई होती थीं. अगर ज्यादा महीने नहीं गुजरे तो गोली खाकर भी काम चल सकता था. आगे से ऐसा न हो, इसके लिए महिला डॉक्टर पर्ची पर गर्भनिरोधक गोली का नाम लिखकर दे देती. एक बार मैंने वहां आई एक औरत को कहते सुना कि डॉक्टर ने जो गोली लिखी थी, उससे उसे और कमजोरी महसूस होती है और चक्कर आते हैं. आप बतौर एक संभ्रांत महिला किसी बड़े वीआईपी अस्पताल में आप किसी गाइनी से बात करें तो वो खुद ही आपको कॉन्स्ट्रेसेप्टिव पिल्स न खाने की सलाह देगी. इसके साइड इफेक्ट बहुत खतरनाक हैं. कंडोम का कोई साइड इफेक्ट नहीं है. फिर भी कंडोम से ज्यादा कॉन्स्ट्रेसेप्टिव पिल्स बिकती हैं.
मेरी मेड पिछले सात महीनों में तीन बार प्रेग्नेंट होकर गर्भ गिराने वाली गोलियां खा चुकी है. उसका पति सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं. हर बार जब उसे गर्भ ठहर जाता है, तो वो नोएडा के पुराने गांव जैसे बाजार में खुली किसी दोयम दर्जे के मेडिकल स्टोर से उसे गोली लाकर दे देता है. ये दवा भी बिना किसी डॉक्टर के प्रिसक्रिप्शन के खरीदी जाती है. वैसे यहां ये जानना भी जरूरी है कि एमटीपी किट कोई क्रोसीन और पुदीन हरा नहीं है, जो आप कभी भी किसी भी दुकान से खरीद लें. एक ऑथराइज्ड मेडिकल शॉप बिना प्रिसक्रिप्शन के एमटीपी किट नहीं दे सकती.
कितनी सारी औरतें ऐसी गोलियां खा रही हैं, जो डॉक्टर ने लिखकर नहीं दी. जो ऑथराइज्ड मेडिकल शॉप से खरीदी नहीं गई. इतनी सस्ती, इतनी मामूली है औरतों की सेहत. और ऐसे में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट. हमारे देश के बांकें वीर जवान सिर्फ 5.9 फीसदी मर्द कॉन्ट्रेसेप्टिव का इस्तेमाल करते हैं. औरतें बच्चा गिराने की गोलियां खाती हैं. ऐसे ही नहीं साल दर साल विश्व स्वास्थ्य संगठन की हर रिपोर्ट ये कहती है कि महिलाओं के स्वास्थ्य के मामले में हम दुनिया के बदतर देशों में एक हैं. मातृ मृत्यु दर के मामले में दुनिया के 200 देशों में हमारा स्थान 52वां है. हमसे खराब सिर्फ अफ्रीका है. हमारी औरतें कुपोषण और एनीमिया की शिकार हैं. यूएन की रिपोर्ट कहती है कि भारत में पैदा होने वाली 23 फीसदी लड़कियां अपना 15वां जन्मदिन भी नहीं देख पातीं. पिछले साल की नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की ही रिपोर्ट थी, जिसके मुताबिक भारत में 23 फीसदी मर्द और सिर्फ 20 फीसदी औरतों के पास हेल्थ इंश्योरेंस है. औरतों की सेहत पर खर्च किए जाने वाले पैसे का राष्ट्रीय अनुपात मर्दों के मुकाबले 32 फीसदी कम है.
सिर्फ 5.9 फीसदी हिंदुस्तानी मर्द कॉन्ट्रेसेप्शन का इस्तेमाल करते हैं. कहने को तो ये बात एक लाइन में कह दी गई, लेकिन इसकी कहानी बहुत लंबी है. दो नंबरों का आंकड़ा औरतों के स्वास्थ्य और जिंदगी से जुड़े हर आंकड़े को प्रभावित कर रहा है.
हम और हमारी सेहत किसी की चिंता का सवाल नहीं. खुद हमारी भी नहीं. कम पढ़ी-लिखी औरतें एमटीपी गोली खा रही हैं और बड़े शहरों-महानगरों की लड़कियां-औरतें आईपिल. लेकिन कोई अपने पुरुष साथी को ये समझा नहीं पा रहा कि तुम्हारे सुख की कीमत मेरे लिए कितनी बड़ी है. तुम्हारी गैरजिम्मेदारी की तकलीफ मैं उठा रही हूं.
मर्द खुश हैं, देश सर्वे कर रहा है और औरतें बच्चा गिराने की गोलियां खा रही हैं. बाकी सब ठीक है.
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Tags: Domestic violence, Sex, Sexual Abuse, Sexual Harassment, Sexual violence, Women, Women Health