कोरोना वायरस के घातक संक्रमण ने एक और महान शख्सियत को हमसे छीन लिया. गुरुवार, 29 अप्रैल को कोरोना बीमारी से देश के विख्यात कवि और शायर (Shayar) डॉ. कुंवर बेचैन (Kunwar Bechain) का निधन हो गया. बीते कुछ दिनों से उनका इलाज चल रहा था. उनका पूरा जीवन शब्दों की दुनिया में गुज़रा. शामियाने कांच के, रस्सियां पानी की, दीवारों पर दस्तक आदि उनके मशहूर ग़ज़ल-संग्रह हैं. वहीं नदी तुम रुक क्यों गईं और शब्दः एक लालटेन आदि उनके कविता संग्रह भी काफी प्रसिद्ध हुए. उनका जन्म 1 जुलाई, 1942 को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के उमरी गांव में हुआ था. उनका वास्तविक नाम डॉ. कुंवर बहादुर सक्सेना है. मगर बतौर कवि, शायर वह 'कुंवर' बेचैन के नाम से जाने गए.
मंच पर अपने कलाम से उन्होंने अपनी अलग जगह बनाई थी. उनका ग़ज़ल कहने का अलग अंदाज़ था. उनके प्रशंसक उनके जाने की खबर से शोक में हैं. उनकी जो जगह लोगों के दिल में बनी हुई है, वह हमेशा रहेगी और उनका कलाम यूं ही गुनगुनाया जाता रहेगा. आज भले ही डॉ. 'कुंवर' बेचैन हमारे बीच नहीं हैं. मगर उनकी कविताएं, उनकी ग़ज़लें उनके चाहने वालों को हमेशा उनके होने का एहसास कराती रहेंगी-
मेरे हिस्से में कोई शाम
दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना
जैसे बहते हुए पानी पे हो पानी लिखना
कोई उलझन ही रही होगी जो वो भूल गया
मेरे हिस्से में कोई शाम सुहानी लिखना
आते जाते हुए मौसम से अलग रह के ज़रा
अब के ख़त में तो कोई बात पुरानी लिखना
कुछ भी लिखने का हुनर तुझ को अगर मिल जाए
इश्क़ को अश्कों के दरिया की रवानी लिखना
इस इशारे को वो समझा तो मगर मुद्दत बाद
अपने हर ख़त में उसे रात-की-रानी लिखना
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ज़िंदगी देख कोई बात अधूरी
इस तरह मिल कि मुलाक़ात अधूरी न रहे
ज़िंदगी देख कोई बात अधूरी न रहे
बादलों की तरह आए हो तो खुल कर बरसो
देखो इस बार की बरसात अधूरी न रहे
मेरा हर अश्क चला आया बराती बन कर
जिस से ये दर्द की बारात अधूरी न रहे
पास आ जाना अगर चांद कभी छुप जाए
मेरे जीवन की कोई रात अधूरी न रहे
मेरी कोशिश है कि मैं उस से कुछ ऐसे बोलूं
लफ़्ज़ निकले न कोई बात अधूरी न रहे
तुझ पे दिल है तो 'कुंवर' दे दे किसी के दिल को
जिस से दिल की भी ये सौग़ात अधूरी न रहे
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वो ख़त जो तुम को दे न सके
दो-चार बार हम जो कभी हंस-हंसा लिए
सारे जहां ने हाथ में पत्थर उठा लिए
रहते हमारे पास तो ये टूटते ज़रूर
अच्छा किया जो अपने सपने चुरा लिए
चाहा था एक फूल ने तड़पें उसी के पास
हम ने ख़ुशी से पेड़ों में कांटे बिछा लिए
आंखों में आए अश्क ने आंखों से ये कहा
अब रोको या गिराओ हमें हम तो आ लिए
सुख जैसे बादलों में नहाती हों बिजलियां
दुख जैसे बिजलियों में ये बादल नहा लिए
जब हो सकी न बात तो हम ने यही किया
अपनी ग़ज़ल के शेर कहीं गुनगुना लिए
अब भी किसी दराज़ में मिल जाएंगे तुम्हें
वो ख़त जो तुम को दे न सके लिख-लिखा लिएundefined
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Tags: Book, Coronavirus Death, Famous gazal
FIRST PUBLISHED : April 29, 2021, 15:52 IST