हौसला और सपने अगर बड़े हों तो उम्र मायने नहीं रखती. खेलने-कूदने की उम्र में अक्सर बच्चे अपने भविष्य को लेकर अपने माता-पिता पर ही निर्भर रहते हैं लेकिन आज हम आपको कुछ ऐसे बच्चों की इंस्पिरेशनल कहानी (Inspirational story) बताएंगे, जिनके सपनों की उड़ान की कोई सीमा नहीं है. जिन्होंने कम उम्र में ही खुली आंखों से ख्वाब देखा और अब न सिर्फ उसे साकार कर रहे हैं बल्कि कई घरों तक रोजगार भी पहुंचा रहे हैं. हम बात कर रहे हैं दिव्या, पार्थ, गुरमान और बवलीन की, जिन्होंने स्कूल जाने की उम्र में पर्यावरण के बारे में सोचते हुए खराब, बेकार और कबाड़ हो चुके टायर से आरामदायक और स्टाइलिश फुटवियर बनाने का आइडिया ढूंढ निकाला और फिर बेहतर प्लानिंग के साथ शुरू किया आंत्रप्रेन्योरशिप का सफर.
आज कल लोग पर्यावरण की एहमियत को समझते हुए सस्टेनेबल फैशन की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं. ऐसे में हर चीज को बिना प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बनाने की जद्दोजहद जारी है. आपने दिया मिर्ज़ा (Dia Mirza) समेत कई एक्ट्रेसेस के बारे में पढ़ा या सुना होगा कि इन अदाकाराओं का सस्टेनेबल फैशन और कपड़ों की तरफ झुकाव बढ़ा है. ऐसे में इन बच्चों का इको-फ्रेंडली फुटवियर प्रोडक्ट बनाने का कदम सरहानीय है. ये दो मायने से खास है. एक तो इसमें खराब और बर्बाद हो चुके टायर्स का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे कबाड़ को काम में ले लिया जाता है, साथ ही इस वजह से कई मोचियों को काम मिला है. इनके ब्रांड का नाम टायरॉन (Tyron) है.
कोरोना काल में लगे लॉकडाउन ने दिया एंटरप्रेन्योर बनने का मौका
न्यूज़18 हिंदी से टायरॉन के दो फाउंडर्स, दिव्या और पार्थ ने बातचीत की. उन्होंने इस शानदार आइडिया के जन्म और अभी तक के सफर के बारे में बताया. आपको ये बात दिलचस्प और हैरान कर देने वाली लगेगी की ग्यारहवीं क्लास में पढ़ने वाली दिव्या रातों-रात आंत्रप्रेन्योरशिप नहीं बनी, बल्कि बचपन से ही उन्होंने बिज़नेस और आंत्रप्रेन्योरशिपशिप में रुचि दिखाई. दिव्या का कहना है कि वह अमेरिकन टेलीविज़न शो शार्क टैंक देखते हुए बड़ी हुई हैं. उन्हें हमेशा से पता था और उन्होंने अपना इरादा मजबूत कर लिया था कि वह एक बिजनेस पर्सन ही बनना चाहती हैं. उनके मुताबिक कोरोना महामारी के कारण लगा लॉकडाउन उन्हें अपने इस सपने के और भी करीब ले आया. जिस समय लोग अपने घरों में बंद थे, उस वक्त दिव्या ने अपने सपनों की उड़ान भरनी शुरू की, इस काम में उनका कई लोगों ने साथ भी दिया.
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सस्टेनेबल हैंडमेड चप्पलें हैं आरामदायक
आपको बता दें कि दिव्या सिजवली अपनी कंपनी की चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर और चिफ लीगल ऑफिसर हैं. वहीं पार्थ पुरी टायरॉन के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर और चीफ टेक्नोलाजी ऑफिसर हैं. पार्थ से मिली जानकारी के मुताबिक इनके टायर से बने प्रोटक्ट्स सिर्फ चप्पल तक ही सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि आने वाले समय में और भी कई प्रोटक्ट्स बनाए जाएंगे. आपको बता दें कि असल में इन बच्चों की आंत्रप्रेन्योरशिप की जर्नी एनपॉवर के IFT इवेंट की एक प्रतियोगिता में भाग लेने से शुरू हुई. अब इनकी कंपनी में 4 फाउंडर्स के अलावा कई बोर्डिंग मेंबर्स और कारीगर भी हैं. ये चप्पलें हैंडमेड हैं. पार्थ और दिव्या ने बताया कि लोगों को इन चप्पलों की यही खासियत बहुत पसंद आ रही है कि इन फुटवियर्स के कारण कई लोगों को रोजी रोटी मिल रही है. ये चप्पलें पहनने में भी काफी आरामदायक हैं और सस्टेनेबल फैशन का हिस्सा भी हैं.
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लोगों को पसंद आ रहा है काम
फाउंडर दिव्या बताती हैं कि लोग ये चप्पलें खरीदने के बाद फीडबैक भी देते हैं, जो उनके लिए चीजें सुधारने में मददगार है. उदहारण के तौर पर उन्होंने बताया कि शुरुआत में लोगों का कहना था कि ये चप्पलें बहुत भारी हैं. जिसके बाद टीम ने और कारीगरों ने इस पर काम किया और बेहतरीन प्रोटक्ट्स पेश किए. लोगों को इनका काम पसंद आ रहा है. बच्चे अपने काम के साथ-साथ पढ़ाई पर भी अच्छी तरीके से ध्यान देते हैं, जिस वजह से पैरेंट्स भी उनका भरपूर सहयोग कर रहे हैं. यकीनन जज्बा हो तो कोई काम मुश्किल नहीं होता. मेहनत और लगन से हर काम को आसानी से किया जा सकता है.
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