'ताजदार-ए-हरम': इस भारतीय कवि की लिखी नज्में गाकर आतिफ असलम हुए मशहूर!
Agency:News18Hindi
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इससे पहले भी कई पाकिस्तानी सिंगर हिन्दुस्तानी कवियों द्वारा लिखे गए गीत, कव्वाली गाकर सुर्खियां बटोर चुके हैं.

Pulwama Terror Attack: पुलवामा हमले के बाद देशवासियों का खून खौल रहा है. आतंकी हमले में जवानों की शहादत को लेकर लोगों के मन में बेशुमार आक्रोश है. शायद यही वजह है कि फिल्म इंडस्ट्री में पाकिस्तानी कलाकारों को भी बैन कर दिया है. ऑल इंडिया सिने वर्कर्स एसोसिएशन ने पाकिस्तानी कलाकारों पर प्रतिबंध का ऐलान किया है. पाकिस्तानी गीतकारों की गाई हुई कव्वालियां और गजलें काफी मशहूर हैं. इनमें से एक है 'कोक स्टूडियो' के लिए पाकिस्तानी गायक आतिफ असलम द्वारा गाई गई कव्वाली 'ताजदार-ए-हरम' जो कि वास्तविकता में एक नातिया कलाम है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कव्वाली को लिखने वाला शख्स एक भारतीय था. आइए जानते हैं उनके बारे में:
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पुरनम इलाहाबादी के बारे में:
जी हां, इस कव्वाली को लिखने वाले भारतीय शख्स का नाम है ‘पुरनम इलाहाबादी’ उर्फ़ मुहम्मद मूसा. पुरनम इलाहाबादी का जन्म सन 1940 में इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुआ था. 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद वो पाकिस्तान जाकर बस गए लेकिन इसके बाद वो पारिवारिक विवादों की वजह से पकिस्तान के लाहौर में जाकर बस गए. उन्होंने वहां अनारकली बाज़ार नामक इलाके में एक कमरे में तन्हाई भरे दिन बिताए. पुरनम इलाहाबादी का जन्म सन 1940 में इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुआ था. 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद वो पाकिस्तान जाकर बस गए लेकिन इसके बाद वो पारिवारिक विवादों की वजह से पकिस्तान के लाहौर में जाकर बस गए. उन्होंने वहां अनारकली बाज़ार नामक इलाके में एक कमरे में तन्हाई भरे दिन बिताए. उन्होंने भारत और पाकिस्तान की कई फिल्मों के लिए गाने लिखे.
पुरनम द्वारा लिखे 'ताजदार-ए-हरम' के बारे में:
बता दें कि, पुरनम इलाहाबादी द्वारा लिखे गए नातिया कलाम 'ताजदार-ए-हरम' को सबसे पहली बार सन 1990 में साबरी भाइयों ने अपनी आवाज दी थी. पाकिस्तानी गायक आतिफ असलम ने दोबारा इसे 'कोक स्टूडियो' के लिए गाया है. इस खूबसूरत नतिया कलाम के लफ़्ज सुनकर रूहानियत का एहसास होता है. इस कव्वाली में पूरे दिल और श्रद्धा के साथ ईश्वर को याद किया गया है. पढ़िए इस कव्वाली के खूबसूरत लफ़्ज.
क्या होता है नातिया कलाम:
नातिया कलाम का मतलब होता है अल्लाह के बन्दे पैगम्बर हजरत मुहम्मद की तारीफ.
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'ताजदार-ए-हरम' के बोल:
'क़िस्मत में मेरी चैन से जीना लिख दे
डूबे ना कभी मेरा सफ़ीना लिख दे
जन्नत भी गवारा है मगर मेरे लिए
ए क़ातिब-ए-तक़दीर मदीना लिख दे
ताजदार-ए-हरम हो निगाह-ए-करम
हम ग़रीबों के दिन भी सँवर जायेंगे
हामीं-ए बेकसाँ क्या कहेगा जहाँ
आपके दर से ख़ाली अगर जायेंगे
ताजदार-ए-हरम, ताजदार-ए-हरम
कोई अपना नहीं ग़म के मारे हैं हम
आपके दर पर फ़रयाद लाये हैं
हो निगाहे-ए-करम, वरना चौखट पे
हम आपका नाम ले-ले मर जाएंगे'
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बता दें कि, इससे पहले भी पुरनम इलाहाबादी द्वारा लिखी गई नज्म, 'तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी' को पाकिस्तान के मशहूर गायक नुसरत फ़तेह अली खान ने गाया था, जिसे काफी पसंद किया गया था.
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पुरनम इलाहाबादी के बारे में:
जी हां, इस कव्वाली को लिखने वाले भारतीय शख्स का नाम है ‘पुरनम इलाहाबादी’ उर्फ़ मुहम्मद मूसा. पुरनम इलाहाबादी का जन्म सन 1940 में इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुआ था. 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद वो पाकिस्तान जाकर बस गए लेकिन इसके बाद वो पारिवारिक विवादों की वजह से पकिस्तान के लाहौर में जाकर बस गए. उन्होंने वहां अनारकली बाज़ार नामक इलाके में एक कमरे में तन्हाई भरे दिन बिताए. पुरनम इलाहाबादी का जन्म सन 1940 में इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुआ था. 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद वो पाकिस्तान जाकर बस गए लेकिन इसके बाद वो पारिवारिक विवादों की वजह से पकिस्तान के लाहौर में जाकर बस गए. उन्होंने वहां अनारकली बाज़ार नामक इलाके में एक कमरे में तन्हाई भरे दिन बिताए. उन्होंने भारत और पाकिस्तान की कई फिल्मों के लिए गाने लिखे.
पुरनम द्वारा लिखे 'ताजदार-ए-हरम' के बारे में:
बता दें कि, पुरनम इलाहाबादी द्वारा लिखे गए नातिया कलाम 'ताजदार-ए-हरम' को सबसे पहली बार सन 1990 में साबरी भाइयों ने अपनी आवाज दी थी. पाकिस्तानी गायक आतिफ असलम ने दोबारा इसे 'कोक स्टूडियो' के लिए गाया है. इस खूबसूरत नतिया कलाम के लफ़्ज सुनकर रूहानियत का एहसास होता है. इस कव्वाली में पूरे दिल और श्रद्धा के साथ ईश्वर को याद किया गया है. पढ़िए इस कव्वाली के खूबसूरत लफ़्ज.
क्या होता है नातिया कलाम:
नातिया कलाम का मतलब होता है अल्लाह के बन्दे पैगम्बर हजरत मुहम्मद की तारीफ.
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'ताजदार-ए-हरम' के बोल:
'क़िस्मत में मेरी चैन से जीना लिख दे
डूबे ना कभी मेरा सफ़ीना लिख दे
जन्नत भी गवारा है मगर मेरे लिए
ए क़ातिब-ए-तक़दीर मदीना लिख दे
ताजदार-ए-हरम हो निगाह-ए-करम
हम ग़रीबों के दिन भी सँवर जायेंगे
हामीं-ए बेकसाँ क्या कहेगा जहाँ
आपके दर से ख़ाली अगर जायेंगे
ताजदार-ए-हरम, ताजदार-ए-हरम
कोई अपना नहीं ग़म के मारे हैं हम
आपके दर पर फ़रयाद लाये हैं
हो निगाहे-ए-करम, वरना चौखट पे
हम आपका नाम ले-ले मर जाएंगे'
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बता दें कि, इससे पहले भी पुरनम इलाहाबादी द्वारा लिखी गई नज्म, 'तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी' को पाकिस्तान के मशहूर गायक नुसरत फ़तेह अली खान ने गाया था, जिसे काफी पसंद किया गया था.
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