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ड्राइविंग सीट पर औरत और जिंदगी के सबक

सऊदी अरब में महिलाओं की ड्राइविंग पर लगा प्रतिबंध हटा

सऊदी अरब में महिलाओं की ड्राइविंग पर लगा प्रतिबंध हटा

ड्राइविंग सीट पर बैठी वो औरतें अपनी जिंदगी की जिम्‍मेदारी अपने हाथों में ले रही हैं, वो अपने हिस्‍से की गलतियां करने और ...अधिक पढ़ें

    23 जून अभी बीत ही रहा था. घड़ी ने रात के बारह बजाए और कैलेंडर में तारीख बदल गई. अगला दिन यानी 24 जून सऊदी अरब की महिलाओं के लिए एक ऐतिहासिक दिन होने वाला था. इस दिन से उन्‍हें अपने मुल्‍क में कानूनी तौर पर ड्राइविंग की इजाजत मिल रही थी. दस महिलाओं को ड्राइविंग लाइसेंस देने के साथ इसकी शुरुआत भी हो चुकी थी. सुबह होने में अभी कुछ घंटे बाकी थी, लेकिन इतना इंतजार कौन करता.

    सूरज उगने की राह तकने की बजाय आधी रात को ही महिलाएं अपनी गा‍डि़यां लेकर सड़कों पर निकल गईं. चारों ओर जश्‍न का माहौल था.

    अगले दिन पूरी दुनिया के चैनल और अखबार गाड़ी चलाती महिलाओं की तस्‍वीरों और वीडियो से भरे थे. कहीं महिलाएं खुशी में गाड़ी के साथ सेल्‍फी खींच रही हैं, कहीं ट्रैफिक पुलिस वाला उन्‍हें गुलाब दे रहा है, कोई औरत अपने बच्‍चों को स्‍कूल छोड़ने जा रही है, कोई सुबह-सुबह गाड़ी चलाकर दफ्तर के लिए निकली है तो कोई यूं ही तफरीह के लिए. आज किसी को अपने पति, भाई, बेटे या ड्राइवर का मुंह ताकने की जरूरत नहीं कि वो मेहरबान हों तो थोड़ा बाजार हो आएं. ड्राइविंग सीट पर बैठी, स्टीयरिंग संभाले ये औरतें हिजाब में भी किस कदर आत्‍मविश्‍वास से भरी और खूबसूरत हुई लग रही थीं. चेहरा खुशी से चमक रहा था.

    मैं कल्‍पना कर सकती हूं इस खुशी, इस आत्‍मविश्‍वास की, जो हाथों में स्‍टीयरिंग संभालने पर आती है.
    अगर ये खबर मैंने महज छह महीने पहले भी पढ़ी होती तो मैं सिर्फ इस बात पर खुश हो रही होती कि महिलाओं को एक अधिकार मिला. क्‍यों नहीं, उन्‍हें गाड़ी चलाने से लेकर हर वो कुछ करने का अधिकार होना चाहिए, जो मर्द करते हैं. तब मैं बराबरी का जश्‍न मना रही होती, लेकिन अब नहीं. आज मैं जो महसूस कर रही हूं, वो बराबरी से कहीं ज्‍यादा गहरी बात है. बात है उस आजादी की, उस मुक्ति और उस जिम्‍मेदारी के एहसास की, जो अपने हाथों में कमान संभालने पर आती है.

    24 जून की रात ही औरतें गाडि़यां लेकर सड़कों पर निकल गईं / फोटो: रॉयटर्स


    मैंने छह महीने पहले ही गाड़ी चलाना सीखा है. शुरू के दो महीने तो खड़ी गाड़ी को सिर्फ ताकती रही थी, इस डर से कि मुझसे नहीं हो पाएगा. ड्राइविंग सीट पर बैठते ही दिल बैठ जाता. सीखने की इच्‍छा तो बहुत थी, लेकिन भीतर का डर इच्‍छा पर कहीं भारी था. और ये डर भी एक्‍सीडेंट हो जाने, गाड़ी ठोक देने या मर जाने का डर नहीं था. डर था, फेल होने का. क्‍या होगा, जो मैंने कोशिश की और फेल हो गई !
    लेकिन आखिरकार मैंने कोशिश की और फेल नहीं हुई, बल्कि फर्स्‍ट आई. कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगता है क्‍योंकि ड्राइविंग स्‍कूल तो आपके ड्राइविंग स्किल देखकर सिर्फ लाइसेंस देता है, ये नहीं बताता कि आपको नंबर कितने मिले कि आप बेस्‍ट ड्राइवर हैं या कामचलाऊ.

    अपने छोटे-छोटे डरों से लड़ते, गलतियां करते, सीखते, लोगों से मदद मांगते तीन महीने ही हुए थे, जब मैंने गाड़ी से अकेले जयपुर जाने का फैसला किया. कोई इसके पक्ष में नहीं था, सिवा मेरे.

    आखिरकार एक दिन मैं कार लेकर निकल ही गई और दो दिन में 700 किलोमीटर गाड़ी चलाई.
    मैं जितनी गई थी, उससे कहीं ज्‍यादा वापस लौटी. शरीर साबुत और मन और आत्‍मा नई रोशनी से भरे.
    उस 700 किलोमीटर की जिंदगी की पहली, अकेले की गई ड्राइविंग ने जिंदगी के कुछ बेशकीमती सबक सिखाए. जब मैंने नया-नया गाड़ी चलाना सीखा था तो मेरी हालत उस बच्‍चे की तरह थी, जिसने दस तक पहाड़े याद कर लिए हों या जिसे पूरा ABCD लिखना आ गया हो. पहली बार अकेले गाड़ी चलाई तो अपने हर करीबी को कूद-कूदकर बताया कि देखो मैंने कर लिया. गाड़ी चलाई, खुशी से चलाई, मुहब्‍बत से चलाई, सचेत होकर चलाई, लेकिन तब भी कभी वो नहीं लगा, जो उस दिन उस लंबे सफर के बाद लगा था.
    ड्राइविंग से सीखे जिंदगी के सबक मेरे लिए कुछ यूं थे-

    1. जिम्‍मेदारी – उन चार पहियों पर सवार उड़ते हुए उस दिन पहली बार लगा कि ऑटोमोबाइल मानवता के सबसे जादुई आविष्‍कारों में से एक है. एक मशीन, जो पलक झपकते आपको एक जगह से दूसरे जगह ले जा सकती है, जो आपको आजाद करती है, आत्‍मनिर्भर करती है. लेकिन इस मशीन की स्‍टीयरिंग अपने हाथों में लेने का मतलब है आजादी और आजादी का मतलब है जिम्‍मेदारी. अपनी और दूसरों की जिम्‍मेदारी. यह जिम्‍मेदारी सिर्फ एक्‍सीडेंट से या मरने से बचाव नहीं है. ये उससे गहरी बात है. उस दिन 120 की स्‍पीड पर स्‍टीयरिंग संभाले हुए मैंने खुद को बहुत जिम्‍मेदार महसूस किया. ये जिम्‍मेदारी का वो एहसास नहीं था, जो बोझ की तरह सिर पर आ पड़ता है, जिसे बेमन से निभाना होता है, जैसे ऑफिस में काम करने की जिम्‍मेदारी, टारगेट पूरा करने की जिम्‍मेदारी. इस जिम्‍मेदारी का एहसास ऐसा था जैसे लगे कि आप बड़े हो गए हैं. जैसे बचपन में जब मां कहती थी, यू आर ए बिग गर्ल, तो कैसे हम अचानक जिम्‍मेदार हो जाते थे.
    उस दिन लगा कि अगर ये जीवन भी कोई जादुई ऑटोमोबाइल है तो इसकी ड्राइविंग सीट पर बैठने का मतलब है- बिग गर्ल होना.

    हाथों में गाड़ी और जिंदगी की स्‍टीयरिंग/ फोटो: रॉयटर्स


    2. सामंजस्‍य – ये ड्राइविंग का दूसरा सबक था. शहर की भीड़भाड़ में गाड़ी चलाना अपने कमरे में बैठकर संगीत का रियाज करने की तरह है. उसमें बहुत सारा शोर भी साथ होता है. बार-बार गियर बदलते हैं, ब्रेक लगाते हैं, रुकते हैं, जबकि हाइवे पर ऐसा नहीं होता.

    एक लंबी सड़क पर लगातर एक रिद्म में गाड़ी चलाते हुए एक समय के बाद ये एहसास गुम जाता है कि कौन किसे चला रहा है. आपकी नजर, हाथ, पैर, दिमाग, मन, शरीर सब मानो एक लय में हों. एक ऐसा अद्भुत सामंजस्‍य कि शरीर का कोई हिस्‍सा दूसरे हिस्‍से की बात समझने में कोई गलती नहीं करता. कभी ऐसा नहीं होता कि नजर और दिमाग सामने जा रहे ट्रक की दूरी का सही अंदाज लगाने में चूक कर दें, कि पैर ब्रेक दबाना भूल जाएं, कि हाथ गियर बदलना, कि स्‍टीयरिंग समय पर मुड़ना.

    सबको पता है कि अब क्‍या करना है, कहां जाना है, कितना मुड़ना है, कहां रुक जाना है. नजर देखती है और हाथ-पैर तुरंत एक्‍शन लेते हैं, एक सेकेंड की देरी नहीं, सुई की नोंक बराबर लापरवाही नहीं. यह साथ, यह सामंजस्‍य उस क्षण में किसी जादू की तरह लग रहा था. कोई गलती नहीं करता, कोई किसी से कंपटीशन नहीं करता, कोई नहीं पूछता, तू मुझसे आगे, मैं पीछे क्‍यों, अद्भुत संतुलन और सामंजस्‍य का खेल, जैसे जीवन. सामंजस्‍य बिगड़ा, ब्रेक लगाना भूल गए तो खेल बिगड़ जाएगा. जिंदगी का इससे बेहतर मेटाफर अब दूसरा नहीं लगता. गाड़ी हो या जिंदगी, ब्रेक लगाने और गियर बदलने में कोई चूक नहीं होती.

    3. सब तुम्‍हारा हिस्‍सा– आज कोई मुझसे पूछता है, तुम्‍हारे लिए ड्राइविंग का क्‍या अर्थ है तो मैं कहती हूं- “ड्राइविंग मतलब मेरी गलती मेरी और तुम्‍हारी गलती भी मेरी.” ऐसा होता है न कि जीवन के तमाम अच्‍छे-बुरे अनुभवों, गलतियों का ठीकरा अकसर हम दूसरों के, हालातों के सिर फोड़ देते हैं. लेकिन सड़क पर ऐसा नहीं होता. ड्राइविंग का आखिरी और सबसे जरूरी सबक मेरे लिए यही था- तुम्‍हारा काम सड़क पर सिर्फ खुद गलती न करना नहीं है, दूसरे की गलतियों से खुद को बचाना भी है. तुम अपनी गलतियों के लिए तो जिम्‍मेदार होगे ही, दूसरे की गलतियों की सजा भी तुम्‍हारे ही हिस्‍से आएगी. इसलिए दूसरे की संभावित गलतियों को वक्‍त रहने समझना, उसका पूर्वानुमान, उसके पैटर्न को जानना और उससे बचने का मैकेनिज्‍म तैयार रखना. यही है ड्राइविंग, जिंदगी ही तरह. आज मुझे यह ठीक-ठीक पता है कि अगर कोई मेरी जिंदगी में निगेटिविटी लेकर आता है तो यह उसकी नहीं, मेरी ही गलती है. मेरा डिफेंस मैकेनिज्‍म कमजोर है. मेरी खुशी, मेरी सेफ ड्राइव, किसी और की नहीं, मेरी जिम्‍मेदारी है.

    कल से अखबारों में औरतों की गाड़ी चलाने की तस्‍वीरें देख-देखकर मैं खुद भी वही खुशी, वही आजादी महसूस कर रही हूं. ड्राइविंग सीट पर बैठी वो औरतें अपनी जिंदगी की जिम्‍मेदारी अपने हाथों में ले रही हैं, वो अपने हिस्‍से की गलतियां करने और अपने हिस्‍से के सबक सीखने की जिम्‍मेदारी ले रही हैं.
    वो थोड़ी-सी आजाद और बहुत-सारी जिम्‍मेदार हो रही हैं.

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    Tags: Saudi arabia

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