Book Review: हम गवाह रहे हैं एक ऐसी त्रासदी की जिसने पूरी दुनिया को उलट-पलट कर रख दिया. शायद ही कोई ऐसा देश हो जो कोरोना महामारी की चपेट में न आया हो. बीते दो सालों में हमने तमाम घर-परिवार बिगड़ते और बिछुड़ते देखे. हम कई ऐसे मंजरों के साक्षी रहे हैं जिनके बारे में कह सकते हैं ‘न भूतो न भविष्यति’.
जब हर कोई खुद को बचाते हुए घर में दुबक कर बैठा था, वहीं कुछ ऐसे योद्धा भी थे जो अपनी जान की परवाह किए बिना जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे आए. हमारे सामने तमाम ऐसे कहानी-किस्से हैं जिनमें लोगों ने दूसरे की जान बचाने के लिए अपना सबकुछ दाव पर लगा दिया.
कुछ ऐसी ही घटनाओं को शब्दों में पिरोकर एक किताब का रूप दिया है विराग गुप्ता ने. ‘भारत के कोरोना वारियर्स’ नामक पुस्तक का विराग गुप्ता ने संपादन किया है. इस पुस्तक की प्रस्तावना की है नवोदय टाइम्स के संपादक अकु श्रीवास्तव ने.
विराग गुप्ता पेशे से वकील हैं. साइबर कानून से लेकर साहित्य, इतिहास और बाल मनोविज्ञान जैसे जटिल विषयों पर उनकी अच्छी पकड़ है. वे तमाम पत्र-पत्रिकाओं में सामायिक मुद्दों पर लेख लिखते रहते हैं.
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विराग गुप्ता अपनी इस पुस्तक के संपादकीय में लिखते हैं- कोरोना काल में अनेक बड़े नायकों की गाथाएं टीवी चैनल, अखबार और सोशल मीडिया के माध्यम से पता चलीं. लेकिन देश के दूरस्थ इलाकों में भी सेवा और शौर्य की बेमिसाल गाथाएं गढ़ी गईं, जिनके बारे में लोगों को कम जानकारी है. उन्हीं में से 75 नायकों का संक्षिप्त विवरण इस संग्रह में शामिल किया गया है.
विराग बताते हैं- इन कहानियों में साहस और हौसले के साथ अदम्य इच्छाशक्ति के तमाम उदाहरण हैं.
‘भारत के कोरोना वारियर्स’ में समाज के हर वर्ग से जुड़े लोगों के अदम्य साहस की कहानियां हैं. पुस्तक की 75 कहानियों को अलग-अलग वर्ग में बांटा गया है. इसमें आपको साहस और हौसला तो मिलेगा ही साथ ही, महामारी ने निपटने में विज्ञान और नवोन्मेश की भूमिका से भी रू-ब-रू होंगे.
आपको यहां 6 साल की वैष्णवी पाल मिलेगी जिसने कोरोना पीड़ितों की मदद के लिए अपनी गुल्लक तोड़ दी और उसमें जमा 11 सौ रुपये दान कर दिए. आप मिलेंगे नोएडा में रहने वाली कक्षा आठ की बच्ची निहारिका से, जिसे नंगे पांव घर जाते मजदूरों का दर्द देखा नहीं गया और तीन मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए अपनी जमापूंजी के सभी रुपये खर्च करके उनके लिए हवाई टिकट मुहैया कराया.
इस पुस्तक में महिला शक्ति के किस्से हैं तो महान दान की गाथा भी. आपको पता है कि लखनऊ की उजमा सैय्यद रोज़े के बावजूद बुर्का पहनकर और कंधों सैनेटाइजिंग मशीन लेकर निकल पड़ती थी. मंदिर हो या मस्जिद, बिना भेदभाव के पुराने लखनऊ की तमाम तंग गलियों को सैनिटाइज करने का उसने बीड़ा उठाया. इस काम के लिए उजमा ने अपनी जमा के सभी कुल 95 हजार रुपये खर्च कर दिए.
इस किताब में अखबरों, मैग्जीन और सोशल मीडिया में तैर रही उन स्टोरी का संकलन किया है जो एक नए भारत की इबारत गढ़ रही थीं. इन कहानियों में आप उस भारत की तस्वीर देखेंगे जिसमें ना जात-पात है, ना कोई अमीर है और ना ही गरीब. भाईचारा, समर्पण और एक-दूसरे के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत लिए ये तमाम गुमनाम हीरो हमें जीवन को नए सिरे से जीने का सबक देते नजर आते हैं.
निश्चित ही विराग गुप्ता का यह संकलन हमें कोरोना के बाद के जीवन का नया ताना-बाना बुनने में मदद करेगा.
पुस्तक- भारत के कोरोना वारियर्स
संपादक- विराग गुप्ता
प्रस्तावना- अकु श्रीवास्तव
मूल्य- 150 रुपए
प्रकाशक- अनन्य प्रकाशन
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