'इंडियाज मोस्ट फीयरलेस 2' में पुलवामा हमले के 12 दिन बाद पाकिस्तान के बालाकोट में की गई एयर स्ट्राइक के पल-पल एक्शन का खुलासा किया है.
India’s Most Fearless 2: इंडियाज़ मोस्ट फ़ियरलेस के बारे में किसी पाठक का संदेश था कि यह श्रृंखला कभी समाप्त नहीं हो सकती, क्योंकि भारत में बहादुरों की गिनती कभी खत्म नहीं होगी. और इसी का नतीजा है कि India’s Most Fearless 2 का हिंदी संस्करण बाजार में आ चुका है. ‘हिन्द पॉकेट बुक्स’ पेंगुइन रेंडम हाउस से छपकर आई यह किताब हमारे तमाम असली हीरो के बहादुरी के किस्से समेटे हुए है.
प्रख्यात लेखकद्वय शिव अरूर और राहुल सिंह ने अपनी नई पुस्तक ‘इंडियाज़ मोस्ट फ़ीयरलेंस 2’ के परिचय में लेखक लिखते हैं- इंडियाज़ मोस्ट फ़ियरलेस 1 और 2 लिखने के दौरान, हमें एक ना झुठलाए जाने वाले सच का पता चला- वह यह था कि अगर आप गौर से देखें तो हरेक सैनिक की कोई ना कोई दर्दभरी कहानी होती है. लेकिन ऐसी कहानियों को सामने लाने के लिए क्या उन सबको शहीद होना होगा?
लेखक का ये सवाल अंदर तक झकझोर देता है. ये सही है कि हम केवल उन्हीं सैनिकों के बारे में जान पाते हैं जो शहीद होते हैं? ये सच है कि आज लोग इन सैनिकों के बारे में जानना और पढ़ना चाहते हैं. इसी की नतीजा है कि इस श्रृंखला की पहली किताब कई भाषाओं प्रकाशित हुई और लोगों ने इसे हाथोंहाथ लिया. निश्चित ही ये कहानियां रातों की नींद उड़ा देती हैं. शिव अरूर और राहुल सिंह कहानियों की बढ़ती मांग को देखकर कहा जा सकता है कि- ये भी सच है कि जब एक बार इन कहानियों को पढ़ना शुरू करते हैं तो आपकी भूख और बढ़ती जाती है. सेना से संबंधित कहानियों की हमारी भूख कभी खत्म नहीं हो सकती है.
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शहीद हो सकता हूं गिरफ्तार नहीं- मेजर मोहित शर्मा
इंडियाज़ मोस्ट फ़ियरलेंस 2 श्रृंखला की पहली कहानी मेजर मोहित शर्मा की. – मोहित सर ने देखा कि सुभाष घायल हो गया है, उन्होंने उसे पीछे मुड़ कर अपनी एमजीएल उठाने को कहा. मोहित सर ने आतंकवादियों पर एमजीएल चलानी शुरू की. अब तक उनके सारे दस्ते सुरक्षित आड़ में पहुंच चुके थे. मोहित सर ने उस दिशा में, जहां से हम पर सबसे अधिक गोलीबारी हो रही थी, एमएलजी से छह ग्रेनेड चलाए. उस बमबारी के बाद आतंकवादियों की ओर से होने वाली गोलीबारी में काफी कमी आ गई.
जैसे ही ग्रेनेड से निकलने वाला धुआं थोड़ा छंटा, अंतत: मेजर मोहित रेंगेते हुए अपने बाकि साथियों के पास पहुंचे, ताकि वह भी उनके साथ ओट में छिप सकें. वह अभी उनके पास पहुंचने वाले ही थे कि एक गोली उनकी छाती के बाएं हिस्से में आकर लगी. उनकी बुलेटप्रूफ जैकेट सामने और पीछे से तो उनकी रक्षा करती थी लेकिन अगल-बगल वाले भाग खुले रहते थे. गोली उसी खुले हिस्से को चीरती हुई निकल गई थी.
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पुस्तक में खुलासा किया गया है कि वह (मेजर मोहित) यही कहते रहे ‘मेरी इंजरी नार्मल है,’ उस दिन उनका पूरा ध्यान दो बातों की ओर लगा हुआ था, कि हमारे लोग हताहत न हों और आतंकवादी बचकर भागने न पाएं. वे आख़िरी दम तक बस यही कहते रहे, ‘मैं ठीक हूं, बाकियों को देखो.’ उन्होंने इस बात का पूरा ख्याल रखा कि उनसे पहले दस्ते का हरेक आदमी सुरक्षित जगह पर छिप सके.
स्पेशल फोर्स के लोग मेजर मोहित शर्मा को उनके मज़ाकिया स्वभाव के कारण भी ख़ासतौर पर याद करते हैं. नायक हज़ारी लाल ने याद करते हुए बताया कि 2009 के ऑपरेशन से कई महीने पहले उन्होंने किस तरह एक मेडिकल कोर्स पूरा किया था. ‘मोहित साब ने मुझसे पूछा कि क्या ग्रेडिंग आई है? मैंने कहा, “साब ग्रेडिंग तो बी है,” उन्होंने कहा, “बी तो ठीक है लेकिन अगर मुझे गोली लगी तो मुझे बचा लेगा न?”’
पुस्तक का दूसरा किस्सा है- उसने बदला ले लिया है ना? – कॉर्पोरल ज्योति प्रकाश निराला. ‘एक गोली सीधी कॉर्पोरल ज्योति के सिर में लगी, ज़मीन पर गिरने तक भी उनकी मशीन गन से गोलियां बरसती रहीं और उनकी उंगली ट्रिगर पर दबी रही.’
चश्मदीद कॉर्पोरल देवेंदर के हवाले से बताया गया है कि ‘मुझे वह पल अच्छी तरह याद है, जब ज्योति गिरा, तब भी उसकी एलएमजी से फायरिंग हो रही थी, मैं वह दृश्य कभी नहीं भूल सकता.’
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शिव अरूर और राहुल सिंह ने अपनी इस पुस्तक में एक अन्य वीर के बारे में खुलासा किया है कि लेफ्टिनेंट नवदीप ने अपना सिर कुछ इंच ऊपर उठा कर उस जगह का अच्छे से जायज़ा लेने की कोशिश की जहां आख़िरी आतंकवादी छुपा हुआ था, वह जानना चाहते थे कि आतंकवादी अभी तक उन पत्थरों के पीछे छिप कर ही गोलियां चला रहा है, या उसने अपनी जगह बदल ली है. उसी एक पल में एक गोली लेफ्टिनेंट नवदीप के बुलेटप्रूफ पटके के कोने को चीरते हुए उनके सिर में धंस गई. गोली लगते ही लेफ्टिनेंट नवदीप ने अपनी एके-47 राइफल के ट्रिगर पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए उस अंतिम आतंकवादी के चेहरे पर सीधे गोलियों की बौछार कर दी. पांच मीटर के फासले पर दोनों एक साथ अपनी-अपनी पोज़िशन्स पर गिर पड़े. कुछ पल गुज़रने पर बंदूकें शांत हो गईं. पहली गोली चलने के बाद अभी बस पांच मिनट का समय ही गुज़रा था.
देश इस समय आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और हम देश के उन अंजान वीरों को याद कर रहे हैं जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. ऐसे में इस पुस्तक का प्रकाशन एक ऐतिहासिक प्रयास है. हमारे सैनिकों की इन कहानियों को युवाओं को पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए.
ऋतु भनोट का अनुवाद वाकई प्रशंसनीय है. पुस्तक पढ़ते रहने के दौरान एक बार भी यह आभास नहीं होता है कि पुस्तक का अनुवाद किया गया है. लगता है मानों महाभारत के संजय की भांति दुश्मन से लोहा लेते सैनिकों की वीरगाथा के हम प्रत्यक्ष गवाह हैं.
पुस्तक के बारे में एडमिरल सुनील लन्बा लिखते हैं- इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारे पाठकों को हमारी सेनाओं की संस्कृति की गहरी समझ हासिल होगी और राष्ट्र की रक्षा के लिए किए जाने वाले बलिदानों के प्रति उनके मन में प्रशंसा के भाव भी पैदा होंगे.
पुस्तक- इंडियाज़ मोस्ट फीयरलेंस 2
लेखक- शिव अरूर/राहुल सिंह
अनुवाद- ऋतु भनोट
प्रकाशक- हिंद पॉकेट बुक्स, पेंगुइन रैंडम हाउस
मूल्य- 299 रुपये
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