निर्देश निधि हिंदी साहित्य की हर विधा कहानी, कविता, समसामयिक लेख, संस्मरण आदि में रचनाकर्म में तल्लीन रहती हैं.
(वंदना बाजपेयी/Vandana Bajpai)
यूं तो हर कथाकार अपनी देखी-सुनी दुनिया से या अपने अवचेतन पर बनी किसी काल्पनिक छाप से शब्दों के माध्यम से एक कथा बुनकर पाठकों के सामने प्रस्तुत कर देता है. पर वो दुनिया, पाठक की दुनिया बन पाती है या नहीं या कितने प्रतिशत बन पाती है, यही कथाकार की उपलब्धी होती है. ऐसी ही एक जीवंत दुनिया पाठकों के सामने खड़ी करी है सिद्धहस्त कथाकार निर्देश निधि ने. जहां पात्रों के सुख -दुख ही नहीं कल्पनाएं भी पाठकों को अपने सुख-दुख, अपनी कल्पनाएं नजर आने लगती हैं. अगर एक पाठक के तौर पर हूं तो इन कहानियों से गुजरते हुए मुझे लगा कि इन सभी कहानियों के विषय चाहे कुछ भी हों, ध्वनि चाहे कुछ भी निकल के आ रही हो पर सबमें एक हल्का सा सूफियाना स्पंदन है.
निर्देश निधि का कहानी संग्रह ‘सरोगेट मदर’ कुल 11 कहानियां हैं. निर्देश निधि का यह दूसरा कहानी संग्रह है. सरोगेट मदर की कहानियों में प्रेम है, संवेदना है, दर्द और खुशी भी है. कहानियों में जो प्रेम है उसका स्वरूप हर बार इतना अलग, इतना जुदा अंदाज में की पढ़कर हैरत होती है. वास्तव में जिसे हम आम तौर पर प्रेम कहते हैं जब वह देह के स्तर से ऊपर उठता है तो उसकी अभिव्यक्ति बहुत व्यापक होती है. प्रेम के इन विभिन्न रूपों को लेखिका ने हर बार भावनाओं के कैनवास पर नए रंगों से चित्रित किया है.
‘नीली बस में’ और ‘इसे डॉलर मत पुकारना बे’ कहानियां हास्य का पुट लिए हुए हैं. जहां ‘नीली बस में’ गहन ऑब्जरवेशन पर आधारित कहानी है वहीं ‘डॉलर मत पुकारना बे’ पुलिस कमिश्नर के कुत्ते डॉलर पर आधारित है जो खो गया है. किस तरह से पुलिस महकमा अधिकारी के कुत्ते को ढूंढने में लग जाता है. पूरे पुलिस महकमे की पोल खोलती ये कहानी भाषा और शैली की दृष्टि से बेजोड़ बन गई है. एक पान खाया हुआ व्यक्ति कैसे बोलता है उसे शब्दों में पिरोने का निर्देश निधि का अंदाज बहुत सही और खूबसूरत लगा.
स्त्री विमर्श नारों से नहीं चलता, न ही लेखों और कहानियों से. वह चलता है परिवर्तन से. उस परिवर्तन की वाहक बनती है स्वयं एक स्त्री, जो तमाम बंदिशों के विरुद्ध अकेले खड़ी होने की हिम्मत रखती है. निर्देश निधि ने वाहक के रूप में तमाम पाबंदियों से जूझती एक गांव की स्त्री का संघर्ष दिखाया है जो किताबी नहीं हिसाबी है. ‘मैं ही आई हूँ बाबा’ छुप के मोटरसाइकिल से लेकर ट्रैक्टर तक चलाना सीखने वाली लड़की प्रधान के कोप का शिकार होती है पर समय आने पर लड़कियों के खिलाफ बनी इस सोच को बदलने की वाहक भी बनती है.
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‘प्रश्न तो वहीं खड़ा है’ कहनी सैनिकों के परिवारों की व्यथा ही नहीं बताती बल्कि युद्ध की आवश्यकता पर भी प्रश्न चिन्ह लगाती है. कयोनी स्त्री हर कटे हुए सर में अपने बेटे को खोने का दर्द महसूस करती है चाहे वो इस पार का हो या उस पार का. कहानी युद्ध की विभीषिका, परिवारों के दर्द और जवान बेटे के तिरंगे में लिपटे शव को पल भर देख भी न पाए माता -पिता के मुंह में माइक ठूस कर पूछते मीडिया “बताइए, आपको बेटे की शहादत पर गर्व है” का बारीक ताना-बाना प्रस्तुत करती है. भावनाओं में डुबोती मार्मिक कहानी जो पढ़ते हुए कई बार आंखें नम करा देती है.
“आदि पुरुष के पाँव से” जाति व्यवस्था पर प्रहार करती है. आखिरकार इंसानों के मध्य ये भेद क्यों माना गया कि कोई आदि पुरुष के अलग-अलग स्थानों से उत्पन्न हुआ. वे पैर जिनके बिना मनुष्य एक पल भी खड़ा नहीं रह सकता उससे उत्पन्न होने वाले कमतर क्यों माने गए? ये कहानी ना सिर्फ सवाल उठाती है बल्कि अंतरजातिय विवाहों में भी बनी रह जाने वाली जाति व्यवस्था का कुरूप चेहरा भी दिखाती है. कहानी की नायिका जो अपने को समान दिखाने के लिए आरक्षण का लाभ भी नहीं लेती है पर इस व्यवस्था का शिकार हो जाती है. उसके मजबूत विरोध को दर्ज करती एक सशक्त कहानी.
अंत में यही कहूंगी कि निर्देश निधि के पास बेहतरीन प्लॉट, भाषा, शब्द चयन और कहानी कहने का हुनर, सब कुछ है. कहानी पढ़ते हुए कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि आप कहानी पढ़ रहे हैं बल्कि उस परिवेश का हिस्सा हो जाते हैं. अगर आपकी तलाश सूफियाना अंदाज में लिखी सशक्त कहानियों की है तो ये संग्रह आपके लिए मुफीद है.
पुस्तक- सोरोगेट मदर
लेखक- निर्देश निधि
प्रकाशक– अनन्य प्रकाशन
मूल्य -350 रुपये
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