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गोरख पांडेय की चर्चित कविता 'कुर्सीनामा'

गोरख पांडेय की रचनाएं असल में राजनीतिक, सामाजिक, जातीय, लैंगिक विसंगतियों से उत्पन्न गुस्से से भरी हुई कविताएं हैं.

गोरख पांडेय की रचनाएं असल में राजनीतिक, सामाजिक, जातीय, लैंगिक विसंगतियों से उत्पन्न गुस्से से भरी हुई कविताएं हैं.

गोरख पांडेय आक्रोश के कवि हैं, उनके गीत संघर्ष के गीत हैं. उनकी रचनाओं में गरीबी, छुआछूत, भेदभाव और शोषण के खिलाफ आवाज ...अधिक पढ़ें

1

जब तक वह ज़मीन पर था
कुर्सी बुरी थी
जा बैठा जब कुर्सी पर वह
ज़मीन बुरी हो गई।

2

उसकी नजर कुर्सी पर लगी थी
कुर्सी लग गयी थी
उसकी नजर को
उसको नजरबन्द करती है कुर्सी
जो औरों को
नजरबन्द करता है।

3

महज ढांचा नहीं है
लोहे या काठ का
कद है कुर्सी
कुर्सी के मुताबिक वह
बड़ा है छोटा है
स्वाधीन है या अधीन है
खुश है या गमगीन है
कुर्सी में जज्ब होता जाता है
एक अदद आदमी।

4

फाइलें दबी रहती हैं
न्याय टाला जाता है
भूखों तक रोटी नहीं पहुंच पाती
नहीं मरीजों तक दवा
जिसने कोई ज़ुर्म नहीं किया
उसे फांसी दे दी जाती है
इस बीच
कुर्सी ही है
जो घूस और प्रजातन्त्र का
हिसाब रखती है।

5

कुर्सी खतरे में है तो प्रजातन्त्र खतरे में है
कुर्सी खतरे में है तो देश खतरे में है
कुर्सी खतरे में है तो दुनिया खतरे में है
कुर्सी न बचे
तो भाड़ में जायें प्रजातन्त्र
देश और दुनिया।

6

खून के समन्दर पर सिक्के रखे हैं
सिक्कों पर रखी है कुर्सी
कुर्सी पर रखा हुआ
तानाशाह
एक बार फिर
कत्ले-आम का आदेश देता है।

7

अविचल रहती है कुर्सी
मांगों और शिकायतों के संसार में
आहों और आंसुओं के
संसार में अविचल रहती है कुर्सी
पायों में आग
लगने
तक।

8

मदहोश लुढ़ककर गिरता है वह
नाली में आंख खुलती है
जब नशे की तरह
कुर्सी उतर जाती है।

9

कुर्सी की महिमा
बखानने का
यह एक थोथा प्रयास है
चिपकने वालों से पूछिये
कुर्सी भूगोल है
कुर्सी इतिहास है।

Tags: Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature, Poem

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