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होली पर अलका सिन्हा की कविता- 'छू लेगी नीलांबर होकर दबंग, औरत और रंग हरदम हैं संग'

अलका सिन्हा समकालीन कवयित्री और कथाकारों में एक चर्चित नाम हैं.

अलका सिन्हा समकालीन कवयित्री और कथाकारों में एक चर्चित नाम हैं.

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औरत और रंग हरदम हैं संग।

नरम-नरम गुजियों में पिस्ता और खोया
छल-मल-छल तैर रही मछली हो गोया
ये किसने डाली है दरिया में भंग
औरत और रंग हरदम हैं संग।

रहती है ठिठकी, बचपन से लड़की
कितनी सीमाएं, लक्ष्मण रेखाएं
आज मगर छू लेगा टेसू हर अंग
औरत और रंग हरदम हैं संग।

सतरंगी टोली है, चिड़ियों की बोली है
कितना बलखाती है, दुख में भी गाती है
उड़ती है तितली ज्यों हो कर पतंग
औरत और रंग हरदम हैं संग।

लाली है लाज की या है आक्रोश
अपने सर ढोती है किस-किस के दोष
सांसों के संग-संग लड़ती है जंग
औरत और रंग हरदम हैं संग।

क्‍यों कर डराए दुधारी तलवार
ठुमुक-ठुमुक नाच रही सुतली पे नार
नटनी भी क्या नाचे ऐसा है ढंग
औरत और रंग हरदम हैं संग।

टुकड़ा भर बादल से, आंखों के काजल से
कैसी दीवानी है, लिखती कहानी है
गर इसको पढ़ पाओ, रह जाओ दंग
औरत और रंग हरदम हैं संग।

खाती है झिड़की, नाजुक-सी लड़की
सबको चौंकाएगी, मंजिल जब पाएगी
छू लेगी नीलांबर होकर दबंग
औरत और रंग हरदम हैं संग।।

Tags: Hindi Literature, Hindi poetry, Holi, Literature

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