नाटक 'द रैन मेकर' का एक दृश्य.
दिल्ली के लक्ष्मी नगर स्थित थिएटर लीला एक्टिंग स्टूडियो में सामाजिक संदेश से ओतप्रोत नाटक ‘द रैन मेकर’ का मंचन हुआ. क्रिएटिव विंडो के बैनर तले मंचित इस नाटक का निर्देशन किया था नरेश कुमार (एसआरसी) ने. नाटक के लेखक हैं रिचर्ड नेश और इसका हिंदी रूपांतरण किया है दिनेश ठाकुर ने.
नाटक की कहानी कुछ इस तरह आगे बढ़ती है, अकाल प्रभावित एक गांव में सभी की आंखें आसमान की ओर लगी रहती हैं. आसमान में काली घटाएं उमड़ें तो गांववालों के चेहरे खिलें. इसी गांव में एक परिवार है. परिवार में माता-पिता, उनके दो बेटे महिपत बेटा और पद्मपत और एक बेटी नंदिनी है. बेटी का रंग स्याह होने के चलते उसकी शादी में अड़चनें आ रही हैं.
गांव में ही एक थानेदार है. थानेदार की बीबी छोड़कर चली गई है. पिता अपने बेटों के साथ मिलकर थानेदार को पटाने की कोशिश करते हैं कि वह उसकी बेटी से शादी कर ले. लेकिन थानेदार इसके लिए कतई तैयार नहीं होता है. इस दौरान बेटों और थानेदार के बीच कहासुनी भी हो जाती है.
छोटा बेटा पद्मपत एक बंजारन के चक्कर में पड़ जाता है. उसको लेकर भी महिपत और पद्मपत में काफी कहासुनी होती है.
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महिपत अपनी बहन की शादी को लेकर तनाव में रहता है और शादी ना होने की वजह उसके स्याह रंग को ही दोषी मानता है. इस बात को लेकर महिपत अक्सर नंदिनी पर कटाक्ष भी करता रहता है. लेकिन छोटा भाई पद्मपत इसी गहमागहमी के बीच एक फ्रॉड आदमी नटवरलाल नारंग की कहानी में एंट्री होती है. नारंग बजरंगबली का रूप बनाकर उनके घर में प्रवेश करता है और खुद को बारिश लाने वाला यानी ‘रैन मेकर’ का दावा करता हुआ परिवार से खूब पैसे ऐंठता है. लेकिन इस बीच नारंग जहां परिजनों को बारिश लाने का दावा करके पैसे ऐंठता है, वहीं वह आत्मविश्वास खो चुकी नंदिनी के अंदर विश्वास पैदा करने का भी काम करता है. वह उसे विश्वास दिलाता है कि शरीर का रंग किसी व्यक्ति के विकास में बाधा नहीं हो सकता है. आत्मविश्वास पैदा करने के दौरान नारंग का झुकाव नंदिनी की ओर हो जाता है. नंदिनी का भी उसके साथ लगाव हो जाता है.
कहानी कई दिलचस्प मोड़ से होती हुई आगे बढ़ती है. तभी थानेदार उस फ्रॉड नटवरलाल नारंग को खोजता हुआ नंदिनी के घर आता है. थानेदार नारंग को पकड़कर ले जाने लगता है तो नंदिनी थानेदार से प्रार्थना करती है कि नारंग ने उसके परिवार के साथ किसी प्रकार की धोखाधड़ी नहीं की है. नंदिनी का परिवार भी थानेदार से नारंग को छोड़ने के लिए विनती करते हैं. थानेदार नारंग को छोड़ देता है.
अब कहानी अपने असल मोड़ से होती हुई क्लाइमेक्स पर पहुंचती है. अब नंदिनी के प्यार में पड़ा नारंग उसे अपने साथ ले जाना चाहता है, लेकिन वहां खड़े थानेदार को भी अहसास होता है कि वह भी नंदिनी को चाहने लगा है. थानेदार नंदिनी को नारंग के साथ जाने से रोकने की कोशिश करता है. नंदिनी भी नारंग की अपेक्षा थानेदार को वरीयता देती है. नंदिनी कहती है- “पद्मिनी तो एक रात की हो सकती है परन्तु नंदिनी को तो सारी उम्र जीना है.”
नटवरलाल नारंग चला जाता है. संयोग से बारिश शुरू हो जाती है सभी खुशी से नाचने लगते हैं.
नाटक के कई दृश्य मार्मिक हैं तो कुछ दर्शकों को गुदगुदा जाता हैं.
मंच पर नटवरलाल की भूमिका में गोपेश मुतासिर, पिता बने कैलाश चंद, नंदिनी के रोल में भारती राजपूत, थानेदार बने अमित, महिपत के रूप में मोहित और पद्मपत की भूमिका निभा रहे रुद्र दर्शकों पर अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे. आस्था शर्मा और विजय कुड़िया भी अलग-अलग भूमिका में नजर आए.
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