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माखनलाल चतुर्वेदी की कालजयी कविता- 'पुष्प की अभिलाषा'

माखनलाल चतुर्वेदी की कविताओं में देशप्रेम, प्रेम और प्रकृति का बड़ी ही खूबसूरती के साथ इस्तेमाल किया है.

माखनलाल चतुर्वेदी की कविताओं में देशप्रेम, प्रेम और प्रकृति का बड़ी ही खूबसूरती के साथ इस्तेमाल किया है.

माखनलाल चतुर्वेदी की कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ हिंदी साहित्य में एक कालजयी कृति है. यह कविता कई प्रदेशों के पाठ्यक्रमों ...अधिक पढ़ें

चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊं,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूं भाग्य पर इठलाऊं,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश-चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!


यह किसका मन डोला?

यह किसका मन डोला?
मृदुल पुतलियों के उछाल पर,
पलकों के हिलते तमाल पर,
नि:श्वासों के ज्वाल-जाल पर,
कौन लिख रहा व्यथा कथा?

किसका धीरज ‘हां’ बोला?
किस पर बरस पड़ीं यह घड़ियां
यह किसका मन डोला?

कस्र्णा के उलझे तारों से,
विवश बिखरती मनुहारों से,
आशा के टूटे द्वारों से-
झांक-झांककर, तरल शाप में-

किसने यों वर घोला
कैसे काले दाग पड़ गये!
यह किसका मन डोला?

फूटे क्यों अभाव के छाले,
पड़ने लगे ललक के लाले,
यह कैसे सुहाग पर ताले!
अरी मधुरिमा पनघट पर यह-

घट का बंधन खोला?
गुन की फांसी टूटी लखकर
यह किसका मन डोला?

अंधकार के श्याम तार पर,
पुतली का वैभव निखारकर,
वेणी की गांठें संवारकर,
चांद और तम में प्रिय कैसा-

यह रिश्ता मुंह-बोला?
वेणु और वेणी में झगड़ा
यह किसका मन डोला?

बेचारा गुलाब था चटका
उससे भूमि-कम्प का झटका
लेखा, और सजनि घट-घट का!
यह धीरज, सतपुड़ा शिखर-

सा स्थिर, हो गया हिंडोला,
फूलों के रेशे की फांसी
यह किसका मन डोला?

एक आंख में सावन छाया,
दूजी में भादों भर आया
घड़ी झड़ी थी, झड़ी घड़ी थी
गरजन, बरसन, पंकिल, मलजल,

छुपा `सुवर्ण खटोला’
रो-रो खोया चांद हाय री?
यह किसका मन डोला?

मैं बरसी तो बाढ़ मुझी में?
दीखे आंखों, दूखे जी में
यह दूरी करनी, कथनी में
दैव, स्नेह के अन्तराल से

गरल गले चढ़ बोला
मैं सांसों के पद सुहला ली
यह किसका मन डोला?

Tags: Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature, Poem

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