मुंबई थिएटर फेस्टिवल में दिल्ली के प्रसिद्ध थिएटर ग्रुप 'नटसम्राट' द्वारा तीन नाटकों का मंचन किया गया.
रंगमंच को समर्पित दिल्ली की संस्था नटसम्राट द्वारा दूसरे मुंबई थिएटर फेस्टिवल में तीन नाटकों का मंचन किया गया. मुंबई के अंधेरी वेस्ट स्थित क्रिएटिव अड्डा सभागार में तीन दिन चले इस नाट्य महोत्सव में अलग-अलग रंग और अलग-अलग विधाओं से ओतप्रोत नाटकों के माध्यम से सामाजिक चेतना और जागरुकता का संदेश दिया गया.
मुंबई नाट्य महोत्सव के पहले दिन सत्यप्रकाश द्वारा लिखे गए नाटक ‘कमबख्त इश्क’ का मंचन किया गया. नाटक का निर्देशन नटसम्राट के निदेशक श्याम कुमार ने किया. ‘कमबख्त इश्क’ के माध्यम से जीवन के हर मोड़ पर एक साथी की जरूरत का संदेश दिया गया.
नाटक में बताया कि एकाकी होते जीवन में जब बच्चे अपनी-अपनी राह पर बढ़ जाते हैं तो उनके पास माता-पिता के लिए समय नहीं होता. और अगर माता-पिता में से भी एक का भी साथ छूट जाए तो जीवन बहुत मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जीवन में चाहे कोई भी पढ़ाव हो, एक साथी की जरूरत तो होती ही है. इस नाटक को खूब पसंद किया गया. ‘कमबख्त इश्क’ में पीके ख्याल, ललित जोशी, मुनमुन, शिवांगी और रोहित भारद्वाज ने सशक्त अभिनय का परिचय दिया.
अगले दिन नाटक ‘क्या करेगा काज़ी’ का मंचन किया गया. दरअसल, ‘क्या करेगा काज़ी’ नाटक मूल रूप से फ्रांसीसी नाटककार पियर द बोमार्शिये के नाटक ‘द बारबर ऑफ सेविजे’ का हिंदी अनुवाद है. इस नाटक का रूपांतरण किया.
जे.एन. कौशल ने. यह नाटक बोमार्शिये ने अपने सर्वाधिक प्रसिद्ध चरित्र फिगारो (फखरू) के ज़रिए नहीं दबाए जा सकने वाले आम आदमी को प्रचलित किया. यह नाटक 18 वीं शताब्दी में लिखा गया, जिसमें हकीम बब्बन खान अपने से आधी उम्र की लड़की रोशनी से निकाह करना चाहता है और इसकी वजह से वह उसे दुनिया की नज़रों से छुपा कर रखता है. मगर कहते हैं ना जब मियां बीबी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी. हास्य संवाद और अभिनव के अनूठे संगम के साथ ‘क्या करेगा काज़ी’ ने दर्शकों को खूब हंसाया. साथ ‘क्या करेगा काज़ी’ में मेंहदी हसन, मुनमुन, फरीद अहमद, ललित जोशी, विश्वजीत, पीके ख्याल, सुनील और बसंत कुमार ने शानदार अभिनय किया.
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थिएटर फेस्टिवल की अंतिम प्रस्तुति थी ‘कुछ तुम कहो कुछ हम कहें’. इस नाटक के लेखक हैं आशीष कोतवाल और निर्देशन किया श्याम कुमार ने. नाटक के केंद्र में दो पात्र हैं. दोनों की दुनिया बिल्कुल अलग है. एक तरफ डॉ. आनंद हैं और उन्होंने अपनी एक छोटी-सी दुनिया बनाई हुई है.
दूसरी ओर एक महिला है मानसी. मानसी भी अपनी अलग दुनिया में मस्त है. लेकिन दोनों ही अलग-अलग तरह से अपनी ज़िन्दगी से निराश भी है. डॉ. आनंद ने अपनी जिन्दगी में खुशी के सारे दरवाजे बन्द कर रखे है. और मानसी अपने दुखों को मन में दबाकर आगे बढ़ना चाहती है. जीवन की इस कश्मकश को लेकर नाटक में कई दृश्य स्तब्ध कर देने वाले थे. डॉ. आनंद की भूमिका में विवेक शर्मा और मानसी की भूमिका में मुनमुन ने दर्शकों को अपने अभिनय से प्रभावित किया.
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