नीलमणि फूकन असमिया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं.असमिया साहित्य में उन्हें 'काव्य ऋषि' की उपाधि दी गई है.
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित मशहूर असमी साहित्यकार नीलमणि फूकन का बृहस्पतिवार को अधिक उम्र संबंधी बीमारियों के कारण यहां निधन हो गया. वे 90 वर्ष के थे. फूकन के परिवार में उनकी पत्नी, दो पुत्र और एक पुत्री हैं.
जानकारी के अनुसार, नीलमणि फूकन को सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के बाद बुधवार को एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बाद में उन्हें गौहाटी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया गया. फूकने के निधन पर साहित्य जगत सहित समाज के विभिन्न वर्गों ने शोक व्यक्त किया है.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने मशहूर कवि के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है. उन्होंने कहा, ‘काव्य ऋषि नीलमणि फूकन उज्ज्वल साहित्यिक सितारों में से एक थे, जिन्होंने असमी साहित्य को समृद्ध किया और उनके योगदान को सदा याद किया जाएगा.’ मुख्यमंत्री ने कहा कि फूकन का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा.
नीलमणि फूकन को साहित्य में उनके समग्र योगदान के लिए वर्ष 2021 का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया था. वह बीरेंद्रनाथ भट्टाचार्य और मामोनी (इंदिरा) रायसम गोस्वामी के बाद असम में ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले तीसरे व्यक्ति थे. फूकन को उनके काव्य संग्रह ‘कविता’ के लिए 1981 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1990 में पद्म श्री और 2002 में साहित्य अकादमी फेलोशिप प्रदान किया गया.
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‘काव्य ऋषि’ की उपाधि से सम्मानित फूकन का जन्म और पालन-पोषण ऊपरी असम के शहर डेरगांव में हुआ. उन पर प्रकृति, कला और भारतीय शास्त्रीय संगीत का गहरा प्रभाव था. नीलमणि फूकन ने असमिया भाषा में कविता की 13 पुस्तकें लिख हैं. प्रगतिशील सोच वाले आधुनिक कवि नीलमणि फूकन ने असमिया कविता को नयी शैली प्रदान की. ‘सूर्य हेनु नामी आहे ए नोडियेदी’, ‘गुलापी जमुर लग्न’, ‘कोबिता’ इत्यादि उनकी चर्चित कृतियां हैं. उन्होंने जापान और यूरोप की कविताओं का असमिया में अनुवाद भी किया.
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