वाचिक परंपरा में डॉ. श्लेष गौतम एक स्थापित हस्ताक्षर हैं. वर्तमान में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के पद पर सेवारत हैं. हिंदी साहित्य की विभिन्न विधा जैसे- गीत, कविता, कहानी और लेख आदि में निरंतर रचनाकर्म में तल्लीन रहते हैं.
डॉ. श्लेष गौतम को साहित्य सेवा के लिए आपको उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की ओर से डॉ. हरिवंश राय बच्चन युवा गीतकार सम्मान सहित विभिन्न विभागों और राज्य सरकारों द्वारा अलंकृत किया जा चुका है. टीवी और पत्र-पत्रिकाओं में आपकी सक्रिय भागीदारी निरंतर बनी रहती है.
देश इस समय आजादी के 75 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. वीर शहीदों के सम्मान में हर घर तिरंगा अभियान (Har Ghar Tiranga Campaign) भी चल रहा है. इस अवसर पर प्रस्तुत हैं डॉ. श्लेष गौतम की देशभक्ति से ओतप्रोत रचनाएं-
तिरंगा
आन बान है शान तिरंगा
भारत का अभिमान तिरंगा
सदियों का बलिदान तिरंगा
जय वीरों का गान तिरंगा
जन-जन का सम्मान तिरंगा
आज़ादी का मान तिरंगा
आंख-नाक है कान तिरंगा
सांस-सांस है प्रान तिरंगा
राग रंग पहचान तिरंगा
हम सबकी है जान तिरंगा।
शेखर का अभियान तिरंगा
बोस का गौरवगान तिरंगा
भगतसिंह का ध्यान तिरंगा
गांधी का अवदान तिरंगा
तिलक का है यशगान तिरंगा
दुनिया को फरमान तिरंगा
सफल हुआ जो प्लान तिरंगा
है अमूल्य वरदान तिरंगा
गीता और कुरान तिरंगा
अशफाकउल्ला ख़ान तिरंगा।
बीज खेत खलिहान तिरंगा
गेहूं-गन्ना-धान तिरंगा
जय-जय बोल किसान तिरंगा
न्याय पंच परधान तिरंगा
रक्षक वीर जवान तिरंगा
कण-कण में भगवान तिरंगा
सूफी संत महान तिरंगा
तुलसी और रसखान तिरंगा
मधुशाला की तान तिरंगा
ग़ालिब का दीवान तिरंगा।
राम-कृष्ण का ज्ञान तिरंगा
है दधीचि का दान तिरंगा
गुरुवाणी का पान तिरंगा
वेद वेदांत पुरान तिरंगा
भाई-भाई इन्सान तिरंगा
कबीरा का ऐलान तिरंगा
हरा-भरा गुलदान तिरंगा
प्रेम का है रसपान तिरंगा
होली और रमजान तिरंगा
सत्यनिष्ठा ईमान तिरंगा।
क्रान्ति कीर्ति का भान तिरंगा
मधुर-मधुर मुस्कान तिरंगा
अधिकारों की खान तिरंगा
लोकतंत्र का यान तिरंगा
सफल जो तीर कमान तिरंगा
लक्ष्यभेदी है बान तिरंगा
कालजयी बलवान तिरंगा
कर दे जो ले ठान तिरंगा
लहराता अरमान तिरंगा
दुनिया का सुल्तान तिरंगा।।
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हमै तिरंगा चाही
हरा बैगनी लाल पियर ना
रंग बिरंगा चाही
इन्द्रधनुष ना चाही हमके
हमै तिरंगा चाही
ऐही तिरंगा खातिर भाई
केतना सीस कटाइल
पुरखन क उपकार इ आजादी
सेतै ना आइल
घर-घर प्यार मुहब्बत क अब जमुना गंगा चाही
लड़ै भिड़ै से कुछ ना होई
मिल के देस चलावा
नेह क घर-घर दीया बारा
देसवा के चमकावा
राग-रंग त्योहार मनावा
के के दंगा चाही
साफ-सफाई घरे दुआरे
मन क मइल छोड़ावा
सूई दवाई बीमारी क
नौबत दूर भगावा
हंसी खुशी उत्सव में डूबल
देसवा चंगा चाही।।
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