होम /न्यूज /साहित्य /सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता 'झांसी की रानी'

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता 'झांसी की रानी'

सुभद्रा कुमारी चौहान के दो कविता संग्रह और तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए. उनके कविता संग्रह ‘मुकुल’ और ‘त्रिधारा’ हैं.

सुभद्रा कुमारी चौहान के दो कविता संग्रह और तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए. उनके कविता संग्रह ‘मुकुल’ और ‘त्रिधारा’ हैं.

सुभद्रा कुमारी चौहान को बचपन से ही कविताएं लिखने का शौक था. उन्होंने लेखन के साथ-साथ आज़ादी के लड़ाई में भी सक्रिय भूमि ...अधिक पढ़ें

    Hindi Kavita: ”बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी” कविता देश के बच्चे-बच्चे की जुबान पर है. भले ही किसी को पूरी कविता याद न हो, लेकिन ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी’ तो करीब-करीब हर किसी को याद ही है. इस कविता के साथ ही हमें इस कविता की लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम भी जहन में आता है. सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra kumari Chauhan) की यह रचना इतनी प्रसिद्ध है कि कवि का नाम आते ही उनके साथ ‘झांसी की रानी’ (Jhansi ki rani) का नाम खुद-ब-खुद जुड़ जाता है.

    लेखन की विलक्षण प्रतिभा सुभद्रा कुमारी चौहान के रक्त में ही थी. महज नौ साल की आयु में उन्होंने अपनी पहली कविता ‘नीम’ की रचना की. उन्होंने ज्यादा शिक्षा नहीं ग्रहण नहीं की. वे केवल नौवीं कक्षा तक की ही पढ़ाई पूरी कर पाईं.

    16 अगस्त, 1904 में इलाहाबाद में जन्मी सुभद्रा को बचपन से ही कविताएं लिखने का शौक था. उन्होंने लेखन के साथ-साथ आज़ादी के लड़ाई में भी सक्रिय भूमिका निभाई और कई बार जेल भी गईं. वे अपनी लेखनी के माध्यम से भी लोगों में आज़ादी की अलख जगाने का काम करती थीं. उनकी रचनाओं में आजादी का उन्‍माद और वीर रस का सान्‍निध्‍य मिलता है.

    सुभद्रा कुमारी चौहान के दो कविता संग्रह और तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए. उनके कविता संग्रह ‘मुकुल’ और ‘त्रिधारा’ हैं. वैसे तो उनकी तमाम रचनाएं प्रसिद्ध हैं, लेकिन ‘झांसी की रानी’ कविता ने उन्हें जन-जन का कवि बना दिया.

    यह भी पढ़ें- माखनलाल चतुर्वेदी की श्रेष्ठ कविताएं ‘मैं अपने से डरती हूं सखि’

    ‘झांसी की रानी’ कविता का विषय 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने वाली, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और उनके द्वारा अंग्रेजों के साथ लड़ा गया युद्ध है. यह कविता तत्कालीन बुंदेली लोकगीत को आधार बना कर लिखी गयी थी. वीर रस की यह कविता स्वतंत्रता आंदोलन में प्रेरणास्रोत बनी. विभिन्न राज्यों के स्कूली पाठ्यक्रम में इसे शामिल किया गया. पेश है यह कविता-

    झांसी की रानी (Jhansi ki rani Poem)

    सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
    बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
    गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
    दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी.
    चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    कानपूर के नाना की, मुंहबोली बहन छबीली थी,
    लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
    नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,
    बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी.
    वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
    देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
    नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
    सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़.
    महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झांसी में,
    ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झांसी में,
    राजमहल में बजी बधाई खुशियां छाईं झांसी में,
    सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में.
    चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियारी छाई,
    किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
    तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियां कब भाई,
    रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई.
    निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    बुझा दीप झांसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
    राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
    फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
    लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झांसी आया.
    अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झांसी हुई बिरानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
    व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
    डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
    राजाओं नवाबों को भी उसने पैरों ठुकराया.
    रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
    कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
    उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात?
    जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात.
    बंगाल, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
    उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
    सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
    ‘नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलखा हार’.
    यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
    वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
    नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
    बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान.
    हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    महलों ने दी आग, झोपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
    यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
    झांसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
    मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,
    जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
    नाना धुंधूपंत, तांतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
    अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुंवरसिंह सैनिक अभिराम,
    भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम.
    लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    इनकी गाथा छोड़, चले हम झांसी के मैदानों में,
    जहां खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
    लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुंचा, आगे बढ़ा जवानों में,
    रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद असमानों में.
    ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
    घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
    यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
    विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार.
    अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
    अब के जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहं की खाई थी,
    काना और मंदरा सखियां रानी के संग आई थी,
    युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी.
    पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
    किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
    घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
    रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार.
    घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी.

    रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
    मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
    अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
    हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
    दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
    यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
    होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फांसी,
    हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झांसी.
    तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
    बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
    खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

    टॉप स्टोरीज
    अधिक पढ़ें