'पूछ रही है चिया' से पहले ओम निश्चल को दो कविता संग्रह 'कुदरत की लय' और 'हम राष्ट्र-आराधन करें' प्रकाशित हो चुके हैं.
सहते धूप
पेड़-पौधों से
पूछ रही है चिया
कब से प्यास लगी होगी
क्या तुमने पानी पिया?
चलो पिला देती हूं
तुमको
थोड़ा-सा पानी
पर फिर करना नहीं
तनिक भी
अपनी मनमानी
जीना ऐसे स्वाभिमान से
जैसे अब तक जिया।
कितने जग पी गए
अभी तक
प्यास नहीं बुझती
इस जग में
सबकी यह हालत
तृप्ति नहीं मिलती
भूखी प्यासी जनता ने
अब तक होठ सिया।
पानी भी तो
कितने दिन से
यहां नहीं बरसा
पैदल चलने वाला
कितना
पानी को तरसा
घोर हताशा में भी उसने
किंचित उफ् न किया।
सहते धूप पेड-पौधों से
पूछ रही है चिया
कब से प्यास लगी होगी
क्या तुमने पानी पिया?
प्रसिद्ध गीतकार और भाषाविद् डॉ. ओम निश्चल ने यह कविता चर्चित कवि यश मालवीय की पौत्री चिया के लिए लिखी है. भले ही यह कविता एक नन्हीं बच्ची को समर्पित है लेकिन कविता के माध्यम से पूरे समाज की व्यथा प्रस्तुत की गई है, एक संदेश दिया गया है. ‘इस जग में सबकी यह हालत तृप्ति नहीं मिलती’ पंक्ति में जीवन दर्शन है, तो ‘भूखी प्यासी जनता ने अब तक है होठ सिया’ के माध्यम से व्यवस्था पर तंज भी है. ओम निश्चल ने एक मासूम बच्ची के माध्यम से चढ़ते मौसम में अपने पर्यावरण का ख्याल रखने का भी संदेश दिया है. और बताया कि गरमी में खुद के साथ-साथ अपने आस-पास पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं और मजदूर वर्ग को राहत देने के इंतजाम करने में हम सब की भागीदारी होनी चाहिए.
‘पूछ रही है चिया!’ ना केवल एक किवता है बल्कि सर्वभाषा प्रकाशन से छपकर आया डॉ. ओम निश्चल का बाल कविता संग्रह भी है. इस बाल कविता संग्रह में कुछ 17 कविताएं हैं. कविताओं को बाल पाठकों के लिए अधिक रोचक बनाने के लिए प्रत्येक कविता पर आकर्षक चित्र दिए गए हैं. सर्वभाषा प्रकाशन का किसी बाल कविता संग्रह में यह अनूठा प्रयोग है, जो बच्चों को पसंद आएगा.
बाल कविता संग्रह की शुरूआत देशप्रेम से ओतप्रोत कविता ‘हर हृदय में देश के लिए अटूट चाह हो’ से हो रही है. कविता में आजादी के वीरों को तो याद किया ही गया है, साथ ही बच्चों के समक्ष विदेशी संस्कृति से बचने की चुनौती भी पेश की गई है-
आजादी का परचम नभ में लहराता है
पर भीतर ही भीतर देश यही गाता है
बदल नहीं जाना है पाश्चात्य रंगत में
चाहे जितना हम पर पश्चिमी प्रभाव हो।
कविता संग्रह की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें पर्यावरण और प्रदूषण पर फोकस किया गया है. क्योंकि आज हमारे समक्ष ये ही दो बड़ी चुनौतियां हैं. प्रदूषण को कम करना है और पर्यावरण को बचाना है. यहां डॉ. ओम निश्चल की दूरगामी सोच उजागर होती है कि इस दोनों ही विषयों को हम बच्चों के माध्यम से हल कर सकते हैं क्योंकि बाल मन पर अभी से ही प्रदूषण और पर्यावरण की छाप होगी तो निश्चित ही ये ही बच्चे आगे चलकर इन्हें लेकर सजग प्रहरी भी होंगे.
ओम निश्चल ने ‘पूछ रही है चिया’ के माध्यम से तो पेड़-पौधों के संरक्षण की बात कही है, इसके इतर ‘पौधों को पानी दो’ कविता में भी कुदरत का एक पूर्ण चित्र उकारने का अच्छा प्रयास किया है. बच्चों को कुदरत से जोड़ने की अच्छी कोशिश यहां दिखलाई देती है-
उठो सुबह
सूरज के उठने से पहले
नींद छोड़
किरणों के जगने से पहले
उठो पेड़-पौधों से करो मुलाकातें
देखो कुदरत से वे कैसे बतियाते
अपनी छुवनों से तुम
उन्हें जिंदगानी दो
पौधों को पानी दो।
कविता संग्रह में पर्यावरण के प्रति प्यार है तो जानलेवा पॉलिथिन का खतरा भी-
यह प्रदूषण है अमर है कैंसरकारी
स्वच्छ पर्यावरण के पथ में अहितकारी
उपज खाता जा रहा है देश में नित पॉलिथिन।
यह नदी में यदि जमे तो सांस रुंधती है
मछलियों, जलजीवितों की उम्र घटती है
मलिन करता जा रहा है नदी को नित पॉलिथिन।
हमारे गांवों की तस्वीर लगातार बदल रही है. गांव अब तेजी से शहरों में तब्दील हो रहे हैं, ऐसे में ‘कभी गंगा कभी जमुना कभी पंजाब हो जाऊं’ के माध्यम से लेखक ने भारत के गांवों की तकरीबन चार दशक पुरानी तस्वीर को फिर से जीवंत करने की बड़ी ही सुंदर कोशिश की है-
कभी सीटी बजाती रेल कोई गांव से गुजरे
यहां पर खेलते बच्चों के साये पास में बिचरें
हमेशा ही बुजुर्गों से रहें गुलजार चौपालें
यहीं पर आयतें चौपाइयां सब साथ में बिहरें
यहां पर सभ्यता का जल
बहे कलकल कहीं छलछल
कभी गंगा–कभी जमुना
कभी पंजाब हो जाऊं।
इस काव्य संग्रह में चार कविताओं को लेकर प्रश्न खड़ा होता है कि इन्हें बाल कविता संग्रह में क्या इंगित करके शामिल किया गया है. इनमें दो कविताएं ‘प्रवासी गीत’ (दो भाग) के नाम से हैं और दो कविताएं ‘स्त्री की दुनिया’ (दो भाग). हालांकि, इन चारों ही कविताओं का फलक बड़ा है संदेश विशाल है. जैसे, स्त्री की दुनिया- एक की कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं-
सरे आम हिंसा-सरे आम गोली
यहां अब भी लगती है औरत की बोली
ये कैसा चलन है ये कैसा नजारा
है औरत के प्रति क्या नजरिया हमारा?
इस प्रकार के बड़े मुद्दों की कविताएं बाल मन में संशय पैदा कर सकती हैं. ऐसी पंक्तियों के माध्यम से बच्चों के मन में समाज में स्त्री-पुरुष को लेकर किए जाने वाले भेद-भाव को लेकर सवाल खड़े हो सकते हैं. जहां एक तरफ हम कविता संग्रह में पेड़-पौधे, गरमी-सर्दी और चिड़ियां-सूरज की बात कर रहे हैं, वहीं सरल भावनाओं के बीच गंभीर विषय कुछ विरोधाभास पैदा करता है. मेरे हिसाब से प्रकाशक और लेखक, दोनों को ही इस प्रकार के प्रयोग से बचना चाहिए.
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कविता संग्रह में ‘बाबा भीमराव अंबेडकर’ को लेकर भी बड़ी सुंदर कविता है. यह केवल एक कविता ना होकर एक गीत के माध्यम से बाबा साहेब का पूरा जीवन चित्रण है. इसमें उनका बचपन है, संघर्ष हैं और आजादी की लड़ाई से लेकर संविधान की रचना तक की कहानी है. बच्चों के हिसाब से कविता कुछ अधिक लंबी है, लेकिन डॉक्टर आम्बेडकर की जीवनी के रूप में यह लेखक का बड़ा अनूठा प्रयोग है-
संविधान के जनक बने विधिमंत्री थे वे पहले
किंतु दिया इस्तीफा जब नेहरू जी पथ से बिचले
अपमानों औ’ छुआछूत ने उनको इतना तोड़ा
जनहित के ही लिए उन्होंने मंत्रीपद था छोड़ा।
उनका कहना था ‘मैं हिंदू पैदा भले हुआ हूं-
पर हिंदू ही मरू न प्रतिश्रुत इसके लिए हुआ हूं’
बौद्ध धर्म की करुणा से आखिर उनको दुलराया
बुद्धम शरणम् की छाया में ही सच्चा सुख पाया।
कविता संग्रह में डॉ. ओम निश्चल की बेटी श्रुति मिश्र की भी दो कविताएं हैं. ये कविताएं भी पर्यावरण के महत्व और बाल मन के सपनों को प्रदर्शित करती हैं. बच्चों के सपनों का फलक बड़ा होता है, वे अपनी दुनिया को खुद सजाते हैं, खुद ही उसमें रंग भरते हैं-
अगर कहीं मैं टीचर होती
दुनिया कितनी सुंदर होती
तड़के रोज खाट से उठती
उठकर नए पाठ मैं पढ़ती
बच्चों की दुनिया में जाकर
रंग-बिरंगे सपने भरती
सत्य अहिंसा के पथ पर
बच्चों से चलने का व्रत लेती
अगर कहीं में टीचर होती।
बच्चों और बड़ों की रचनाओं से परे हटकर पूछ रही है चिया कविता संग्रह की सभी रचनाएं पाठक के मन पर छाप छोड़ती हैं. संग्रह पठनीय और संग्रहणीय है. ये कविताएं बच्चों के स्वतंत्र पठन-पाठन के हिसाब से बहुत उपयोगी हैं जो बच्चों के भाषाई ज्ञान तथा रचनात्मक विकास में सहायक होंगी. संग्रह में लेखक का परिचय दो स्थानों पर दिया गया है, इसके पीछे की वजह तो प्रकाशक ही बता सकते हैं.
पुस्तक- पूछ रही है चिया (बाल कविता)
रचनाकार- ओम निश्चल
प्रकाशक- सर्वभाषा प्रकाशन
मूल्य- 149 रुपये
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