राजेश जोशी का जन्म 18 जुलाई, 1946 को मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ.
Kavi Rajesh Joshi: कवि राजेश जोशी का आज जन्मदिन (Rajesh Joshi Birthday) है. राजेश जोशी को यथार्थवादी कवि के रूप जानते हैं. उनकी कविताएं समाज से ही उन चीजों, कार्यकलाप और लोगों को उठाते हैं जिन पर शायद ही हमारी नजर जाती है. आम आंखों से ओझल होते विषयों को राजेश जोश न केवल उठाते हैं बल्कि उसके यथार्थ के भीतर इस कदर उतरते जाते हैं पाठकों को उससे पार लेकर ऐसे सवालों पर छोड़ते हैं जहां वह खुद में ही उनके सवाल खोजता रह जाता है.
पेश हैं उनकी कुछ कविताएं (Rajesh Joshi Ki Kavita)
बिल्लियां
मन के एक टुकड़े से चांद बनाया गया
और दूसरे से बिल्लियां
मन की ही तरह उनके भी हिस्से में आया भटकना
अव्वल तो वो पालतू बनती नहीं और बन जाएं
तो भरोसे के लायक नहीं होतीं
उनके पांव की आवाज़ नहीं होती
हरी चालाकी से बनाई गईं उनकी आंखें
अंधेरे में चमकती हैं
चांद के भ्रम में वो भगौनी में रखा दूध पी जाती हैं
मन के एक हिस्से से चांद बनाया गया
और दूसरे से बिल्लियां
चांद के हिस्से में अमरता आई
और बिल्लियों के हिस्से में मृत्यु
इसलिए चांद से गप्प लड़ाते कवि का
उन्होंने अक्सर रास्ता काटा
इस तरह कविता में संशय का जन्म हुआ
वो अपने सद्यजात बच्चे को अपने दांतों के बीच
इतने हौले से पकड़ कर एक जगह से
दूसरी जगह ले जाती हैं
कवि को जैसे भाषा को बरतने का सूत्र
समझा रही हों.
देख चिड़िया
चिड़िया
ज्यादा इतरा मत
दिमाग मत चढ़ा आसमान पर
कि तू चाहे तो छुट्टी रह सकती है
हर वक्त.
कि तूने तो पंख पा लिए हैं
कि तू तो उड़ना सीख गई है.
देख चिड़िया
आजू-बाजू देख
ऊपर-नीचे देख
बाज़ार से आते
उस हाथ को देख
जो पिंजरा लाता है.
देख उस हाथ को गौर से
जो चावल के उजले दानों के नीचे
जाल बिछाता है.
देख चिड़िया
उस हाथ को देख
जो दिखते-दिखते अचानक
सलाखों में बदल जाता है.
इन सबसे निबटने को
काफी नहीं है
पंख होना
या सीख लेना उड़ना.
बारूद के रंग वाली चिड़िया
बारूद का सुभाव भी सीख
उड़ना-गाना
तो ठीक
लेकिन
ताव खाना भी सीख.
बिजली सुधारने वाले
अक्सर झड़ी के दिनों में
जब सन्नाट पड़ती है बौछाट
और अन्धड़ चलते हैं
आपस में गुत्थम-गुत्था हो जाते हैं
कई तार
या
बिजली के खम्बे पर
कोई नंगा तार
पानी में भीगता
चिंगारियों में चटकता है.
एक फूल आग का
बड़े तार-सा
झरता है
अचानक
उमड़ आई
अंधेरे की नदी में.
मोहल्ले के मोहल्ले
घुप्प अंधेरे में
डूब जाते हैं
वे आते हैं
बिजली सुधारने वाले.
पानी से तर-बतर टोप लगाए
पुरानी बरसातियों की दरारों
और कॉलर से रिसता पानी
अन्दर तक
भिगो चुका
होता है उन्हें.
भीगते भागते
वे आते हैं
अंधेरे की दीवार को
अपनी छोटी-सी टार्च से
छेदते हुए.
वे आते हैं
हाथों में
रबर के दस्ताने चढ़ाए
साइकल पर लटकाए
एल्युमीनियम की फोल्डिंग नसेनी
लकड़ी की लम्बी छड़
और एक पुराने झोले में
तार, पेंचकस, टेस्टर
और जाने क्या-क्या
भरे हुए.
वे आते हैं
खम्बे पर टिकाते हैं
अपनी नसेनी को लम्बा करते हुए
और चीनी मिट्टी के कानों को उमेठते
एक-एक करके खींचते हैं
देखते हैं
परखते हैं
फिर कस देते हैं किसी में
एक पतला-सा तार.
एक बार फिर
जग-मग हो जाती है
हर घर की आंख.
वे अपनी नसेनी उतारकर
बढ़ जाते हैं
अगले मोहल्ले की तरफ
अगले अंधेरे की ओर
अपनी सूची में दर्ज
शिकायतों पर
निशान लगाते हुए.
बच्चे काम पर जा रहे हैं
कोहरे से ढकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?
क्या अन्तरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग-बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आंगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्बमामूल
पर दुनिया की हजारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं.
नींद
तकिए में
कपास का एक पेड़
कपास के फूल पर
चिड़िया नहीं आती
नींद
किस चिड़िया का नाम है!
(साभार- राजेश जोशी-प्रतिनिधि कविताएं, राजकमल प्रकाशन)
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