गोपाल दास नीरज भले ही कवि सम्मेलनों के राजकुमार थे, लेकिन उन्होंने अपना बचपन भीषण गरीबी में बिताया.
Gopal Das Neeraj Death Anniversary: फिल्मी जगत को यादगार गीत देने वाले गोपाल दास नीरज (Gopal Das Neeraj) की आज पुण्य तिथि है. 19 जुलाई, 2018 को नीरज जी ने दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली थी. नीरज जी का सानिध्य मुझे भी कई बार मिला. साल 2007 में पहली बार उनसे एक कार्यक्रम में मुलाकात हुई. इसके बार कई स्थानों पर उनके दर्शन और उनसे बातचीत करने का मौका मिला. इसके अलावा मेरा लोगों के भी परिचय रहा है जो नीरज जी के बहुत करीब थे. उनमें से एक हैं गीतों के राजकुमार कहे जाने वाले कुमार विश्वास.
कुमार विश्वास (Kavi Kumar Vishwas) नीरज जी के बहुत प्रिय थे. नीरज के अंतिम क्षणों में भी कुमार उनके साथ थे.
नीरज जी (Kavi Gopaldas Neeraj) को याद करते हुए कुमार विश्वास कहते हैं, फिल्मी गीतों की वजह से नीरज जी को बहुत लोकप्रियता मिली. एक समय था जब देव आनंद से लेकर शोमैन कहे जाने वाले राजकपूर उनके गीतों के दीवाने थे.
एक किस्सा शेयर करते हुए कुमार बताते हैं, ‘राजकपूर सहाब (Raj Kapoor) को उनकी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ (Mera Naam Joker) के लिए गीत चाहिए था. उनके पास तमाम गीतकारों ने भी गीत भेजे, लेकिन उन्होंने नीरज जी का गीत ”कहता है जोकर सारा ज़माना” ही चुना. इस पर कुछ गीतकार उनसे मिलने गए और कहा कि उन्होंने नीरज का गीत क्यों ले लिया. इस पर राजकपूर का जवाब था कि नीरज ने गीत नहीं लिखा बल्कि मेरे जीवन का दर्शन लिख दिया है. शोमैन राजकपूर कौन है, उन्होंने अपने गीत में बताया है.
नीरज इश्क के शायर रहे हैं. उन्होंने प्यार बांटा है.
वैसे तो उन्होंने कई यादगार गीत लिखे हैं, लेकिन नीरज को याद करते समय अक्सर एक गीत गुनगुनाया जाता है- कारवां गुजर गया. यह पूरा गीत इस प्रकार है-
स्वप्न भरे फूल से
मीत चुभे शूल से
लुट गए सिंगार सभी बाग़ के बाबुल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे.
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई
पांव जब तलक उठें कि जिन्दगी फिसल गई
पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई
चाह तो निकल सकी न, पर उम्र निकल गई
गीत अश्क बन गए
छंद हो दफ़न गए
साथ के सभी दिए धुआं-धुआं पहन गए
और हम झुके-झुके
मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढाव का उतार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे.
क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा
क्या सुरूप था कि देख आइना सिहर उठा
इस तरफ जमीं उठी तो आसमां उधर उठा
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नजर उठा
एक दिन मगर यहां
ऐसी कुछ हवा चली
लुट गई कली-कली कि छुट गयी गली-गली
और हम लुटे-लुटे
वक़्त से पिटे-पिटे
सास कि शराब का खुमार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे.
हाथ थे मिले कि जुल्फ़ चांद कि सवार दूं
होंठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूं
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूं
और सांस यों कि स्वर्ग भूमि पर उतार दूं
हो सका न कुछ मगर
शाम बन गई सहर
वह उठी लहर कि दह गए किले बिखर-बिखर
और हम डरे-डरे
नीर नयन में भरे
ओढ़कर कफ़न, पड़े मजार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे.
मांग भर चली कि एक, जब नई-नई किरण
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमुक उठे चरण-चरण
शोर मच गया कि चली दुल्हन, चली दुल्हन
गांव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन-नयन
पर तभी ज़हर भरी
गाज एक वह गिरी
पोंछ गया सिन्दूर तार-तार हुई चुनरी
और हम अनजान से
दूर के मकान से
पालकी लिए हुए कहार देखते रहे
कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे.
नीरज के गीतों के प्रेम और जीवन दर्शन का पक्ष साफ-साफ दिखाई देता था. फूलों के रंग से और दिल की कलम से नीरज जब लिखने बैठते थे तो सिर्फ प्यार ही प्यार लिखा जाता था-
शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब,
उसमें फिर मिलाई जाए, थोड़ी-सी शराब.
होगा ये नशा जो तैयार, वो प्यार है
जीवन के दर्शन को उन्होंने ‘मेरा नाम जोकर’ (Mera Naam Joker) फिल्म के इस गीत में कितनी खूबसूरती से पेश किया है-
तू जहां आया है वो तेरा
घर नहीं गांव नहीं
गली नहीं कुचा नहीं
रास्ता नहीं बस्ती नहीं
दुनिया है और प्यारे
दुनिया यह एक सरकस है
और इस सर्कस में
बड़े को भी चोटे को भी
खरे को भी खोटे को
भी मोठे को भी पतले को भी
निचे से ऊपर को ऊपर से नीचे को
बराबर आना जाना पड़ता है
और रिंग मास्टर के कोड़े
पर कोड़ा जो भूख है
कोड़ा जो पैसा है
कोड़ा जो किस्मत है
तरह तरह नाच कर
दिखाना यहां पड़ता है
बारबार रोना और
गण यहाँ पड़ता है
हीरो से जोकर बन जाना पड़ता है
हीरो से जोकर बन जाना पड़ता है
‘ऐ भाई, जरा देख के चलो’ गीत रचने के पीछे भी बड़ा दिलचस्प किस्सा है. नीरज जी खुद कहा कि एक बार वह रास्ते से गुजर रहे थे, लालबत्ती हो गई, उन्हें रुकना पड़ा. इतने में दो गाड़ियों की आपस में हल्की टकरा गईं, तो एक कार में सवार आदमी ने चिल्ला कर कहा- ‘ए भाई, जरा देख के चलो’. बस यही लाइन उन्होंने पकड़ ली और रच डाला पूरे जीवन का दर्शन.
बेहद गरीबी में गुजारा जीवन
गोपाल दास नीरज भले ही कवि सम्मेलनों के राजकुमार थे, लेकिन उन्होंने अपना बचपन भीषण गरीबी में बिताया. कुमार विश्वास बताते हैं कि नीरज जी ने घर चलाने के लिए सड़क के किनारे गुब्बारे बेचे, चूरन बेचा. हाई स्कूल में 65 प्रतिशत अंकों के साथ उन्होंने उत्तर प्रदेश बोर्ड में सोलहवां स्थान प्राप्त किया. लेकिन पैसों की तंगी के चलते आगे की पढ़ाई के लिए वे किसी स्कूल में दाखिला नहीं ले पाए. उन्होंने सिनेमाघर में नौकरी की. दिल्ली के सफाई विभाग में टाइपिंग का काम किया. इस दौरान प्राइवेट एग्जाम देते हुए उन्होंने एमए तक की शिक्षा हासिल की. वे हिंदी के साथ अंग्रेजी, ज्योतिष, फारसी और उर्दू के विद्वान थे.
मायानगरी का ऑफर
4 जनवरी, 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा में पैदा हुए नीरज को कविता लिखने की प्रेरणा कवि हरिवंश राय बच्चन से मिली. कवि सम्मेलनों में लोकप्रियता के चलते नीरज को मुंबई से फिल्मों में गीत लिखने का ऑफर मिला. गीतकार के रूप में ‘नई उमर की नई फसल’ (Nai Umar Ki Nai Fasal) के गीत लिखने का ऑफर मिला. पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे ‘कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे’ (karvan guzar gaya gubar dekhte rahe) बेहद लोकप्रिय हुआ. उन्होंने ‘मेरा नाम जोकर’, ‘शर्मीली’ और ‘प्रेम पुजारी’ (Prem Pujari) जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में गीत लिखे. मुंबई में उन्होंने अपने गीतों का लोहा मनवाया. लेकिन मायानगरी उन्हें ज्यादा रास नहीं आई. बाद में उन्होंने अलीगढ़ को अपनी कर्मस्थली बनाया.
कवि बनने के पीछे खुद नीरज कहते हैं- ‘आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य, मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य’.
कवि गोपाल दास नीरज को पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया. फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
.
कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन के हादसे के बाद की तस्वीरें, एक्सीडेंट इतना भयानक कि डिब्बे बुरी तरह हुए तबाह
शादी के 5 दिन बाद ही हुआ कुछ ऐसा कि नई नवेली दुल्हन को ससुराल की महिलाओं के आगे उतारने पड़ गए कपड़े, जानें पूरा मामला
PHOTOS: जॉर्डन के क्राउन प्रिंस हुसैन की शाही शादी, सऊदी की आर्किटेक्ट दुल्हन, दुनिया के मशहूर हस्तियों ने की शिरकत