नई दिल्ली. हिंदी की वरिष्ठ लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ को इंटरनेशनल बुकर प्राइज 2022 के लिए चुन लिए जाने के बाद हिंदी पाठकों के मन में गीतांजलि श्री और उनके उपन्यास को लेकर उत्कंठा जग गई है. बता दें कि मूल रूप से हिंदी में लिखा गया यह उपन्यास स्त्री चेतना की कहानी तो है ही, इसमें सरहदों को लांघता हुआ कथानक भी है. कहा जा सकता है कि सरहदों के पार जाती कहानी इनसानी अंतर्द्वद्व, उसके संघर्ष की हदों को तोड़ती है और एक ऐसे आशावादी मुकाम पर पहुंचती है, जहां पात्रों की निराशा हवा हो जाती है.
बता दें कि गीतांजलि श्री के पति सुधीरचंद्र जाने-माने इतिहासकार हैं. गांधी दृष्टि पर किया गया उनका काम उल्लेखनीय है. इन दिनों लेखक और इतिहासकार की यह जोड़ी गुड़गांव में रहती है. वैसे उनका घर दिल्ली में भी है.
गीतांजलि श्री की ‘रेत समाधि’ उनका पांचवां उपन्यास है. इससे पहले उनके चार उपन्यास प्रकाशित हुए हैं, वे ‘माई’, ‘हमारा शहर उस बरस’, ‘तिरोहित’ और ‘खाली जगह’ हैं. गीतांजलि श्री ने एक दौर में कई कहानियां भी लिखी हैं. ये कहानियां ‘वैराग्य’ और ‘यहां हाथी रहते थे’ संग्रह में संकलित हैं. उनकी प्रतिनिधि कहानियों का एक संग्रह भी अलग से है. उनकी किस्सागोई में मार्मिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का जादू पसरा रहता है.
‘रेत समाधि’ में डिप्रेशन से जूझ रही एक आम भारतीय परिवार की स्त्री कैसे बॉर्डर पार कर पाकिस्तान जाना तय कर लेती है, कैसे वह अपने को इस डिप्रेशन से निकालती है – यह पढ़ना काफी रोमांचक है. अपने शिल्प में यह उपन्यास लेखन की कई बनी-बनाई सरहदें ध्वस्त करता चलता है, साथ ही अपने मिजाज में नए प्रतिमान भी गढ़ता है. सच तो यह है कि रिश्तों और संघर्ष के बारीक रेशों से बुने गए इस उपन्यास के बारे में चार लाइनों में बता पाना मुमकिन नहीं है. इसका लुत्फ पढ़कर ही उठाया जा सकता है. दरअसल, इस उपन्यास के हर पन्ने पर कई नए किरदार आपको मिलते हैं. कई बार घर में पड़ी निर्जीव चीजें भी जीवंत होकर अपना किस्सा सुनाने लगती हैं.
इस उपन्यास के केंद्र में 80 बरस की एक महिला हैं, जिनके पति की मौत हो चुकी है. इस मौत के बाद वृद्ध कथा नायिका डिप्रेशन की शिकार हो जाती हैं. यह डिप्रेशन इतना तीखा है कि वे अपने कमरे से भी निकलना नहीं चाहतीं. पूरा परिवार उनसे तरह-तरह से मनुहार कर रहा है. बेटा अपने ढंग से और बेटी अपने ढंग से मनुहार करती है कि वे कम से कम अपने कमरे से बाहर तो निकलें. लेकिन महिला ने खुद को ऐसे खोल में बंद कर रखा है कि वे बाहर आने से घबराती हैं. परिवार के साथ वृद्धा नायिका के संवादों में रिश्तों की परतें खुलती जाती हैं. पात्रों की मनोदशा के रेशे-रेशे आपको दिखने लगते हैं, संबंधों की बिल्कुल अजूबी दुनिया से आपका साक्षात्कार होता है. ऐसे ही समय में अचानक वृद्धा नायिका को पाकिस्तान जाने की सूझती है. वहां उन्हें किसी रोजी नाम की स्त्री का कोई सामान सौंपना है. इस उपन्यास से गुजरते हुए आप महसूस करेंगे कि कैसे यह सामान्य सी महिला की कथा भी है, कैसे सरहदों के आर-पार जाती कहानी भी है और कैसे मानव संबंधों की जटिलता का मनोवैज्ञानिक आख्यान भी है. इतिहास की कहानी तो है ही.
रिश्तों के ताने-बाने में बुना यह उपन्यास कई मुद्दों पर कटाक्ष भी करता चलता है. भारत से पाकिस्तान तक की यात्रा में समाज की वह उम्मीदें भी दिखने लग जाती हैं जो उसे पारंपरिक रूप से किसी स्त्री से होती हैं. मोरल पुलिसिंग की वजह से उपजने वाला टकराव, पितृसत्ता के खिलाफ बुलंद होती शालीन आवाज से लेकर राजनीति का दोहरापन, पर्यावरण की चिंता, सांप्रदायिकता से पसरता तना, पार्टीशन, प्रेम की आवाज के साथ-साथ इस उपन्यास में भारत-पाकिस्तान की राजनीति भी बेनकाब होती चलती है.
हिंदी की वरिष्ठ लेखिका गीतांजलि श्री के पास एक चमकती हुई भाषा है. बिल्कुल छोटे-छोटे वाक्य हैं. उपन्यास में अधूरे छोड़े गए वाक्य भी संदर्भों को पूरी तरह खोलकर रख देते हैं. ‘धम्म से आंसू गिरते हैं जैसे पत्थर. बरसात की बूंद.’ जैसे काव्यात्मक वाक्य इस उपन्यास को बिल्कुल नई छटा देते हैं. ‘रेत समाधि’ का ये अंश देखें :
इस उपन्यास में कई बार निर्जीव चीजें भी सजीव हो जाती हैं. गीतांजलि श्री ने कई बार उन्हें पात्रों की तरह पेश किया है. ये निर्जीव पात्र जब सजीव होते हैं और अपना अंतर्द्वद्व बयां करते हैं तो वह कभी पैबंद (पैच) की तरह नहीं लगते. बल्कि वह उपन्यास का सघन हिस्सा बन जाते हैं. उपन्यास का ऐसा ही एक हिस्सा गौरतलब है :
गीतांजलि श्री का लेखन जटिल बुनावटों वाला है. उनके लेखन में बाहर और भीतर की दुनिया एक साथ सधती है. अगर आप उनके लेखन से यह उम्मीद पालते हैं कि कुछ रोमांचक मिलेगा या कोई ऐसा तत्त्व जो आपके अचेतन में पैठे विलास को तुष्ट करेगा तो आपको घोर निराशा होगी. हां अगर आप किसी संवेदनशील विचार-लेखन की सैर करना चाहें, बाहर के शोर और भीतर के सन्नाटे को पहचानना चाहें, बदलावों-ठहरावों के बयार को बारीकी से समझने की मंशा हो, तो उनका लेखन शायद आपकी मदद कर सकता है.
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