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'सच' बोलना आप, 'सचाई' मजा किरकिरा कर देती है न, जबकि 'सच्चाई' का आनंद ही कुछ और है

सचाई शब्द सही है या सच्चाई, जानें शब्दानुरागी कॉलम में यह सच.

सचाई शब्द सही है या सच्चाई, जानें शब्दानुरागी कॉलम में यह सच.

Shabdanuragi: सवाल है कि अखबार और वेबसाइट के लोग क्या लिखें. इसका सरल जवाब है कि हर वेबसाइट, हर अखबार और हर पत्रिका की ...अधिक पढ़ें

यह वर्ष अब बीत चला है. नए वर्ष की तैयारी में आप मन ही मन जुटे होंगे. इस वाक्य को लिखते के साथ ही ‘जुटे होंगे’ पर अचानक ध्यान चला गया. सोचने लगा कि ‘जुटी होंगी’ मैंने क्यों नहीं लिखा? क्या कोई स्त्री अगर यही बात लिखती तो उसकी भी अभिव्यक्ति ‘जुटे होंगे’ ही होती या वह ‘जुटी होंगी’ लिखती? कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे अनजाने मन में जेंडर बायसनेस है, मैं लिंग पूर्वाग्रही हूं, या मेरा अचेतन लिंग के मुद्दे पर पक्षपाती है? ख्याल आया कि ऐसे वाक्यों में ‘जुटे होंगे/जुटी होंगी’ जैसा लिखा जाना चाहिए. फिर लगा कि इस तरह के प्रयोग से लेखन का प्रवाह बोझिल होगा. इस तरह के वाक्य पढ़ने की गति को कम करते हैं. यह सच है कि भारतीय समाज पुरुषवर्चस्व वाला है, जिसे हर हालत में खत्म किया जाना चाहिए. बराबरी होनी ही चाहिए.

लेकिन सवाल है कि भाषा में हम लैंगिक समानता कैसे लाएं? ‘लेखक/लेखिका’, ‘कवि/कवयित्री’ जैसे इस्तेमाल के बजाए ‘रचनाकार’ लिखना ज्यादा मुनासिब लगता है, ‘छात्र और छात्रा’ के लिए ‘विद्यार्थी’ लिखना ज्यादा तार्किक लगता है. रचनाकारों का एक वर्ग मानता है कि लिखने वाला लेखक कहा जाता है वह चाहे महिला हो या पुरुष, तो फिर भाषा में ‘लेखिका’ लिखकर उन्हें एक अलग वर्ग का बताने जैसा क्यों किया जाए. वैसे, यह बहस बहुत लंबी है और इस मुद्दे पर नई राह पर चलने का मेरा द्वंद्व बहुत गहरा, इसलिए इस मुद्दे पर फिर कभी चर्चा होगी. फिलहाल इस कॉलम के मूल मुद्दे पर आऊं कि ‘सच से सचाई’ बना है या ‘सच्चा से सच्चाई’.

सचाई का तर्क

ध्यान जाता है कि ‘सचाई’ शब्द ‘सच’ में ‘आई’ प्रत्यय जुड़ने से बना है, इसलिए शब्द ‘सचाई’ होगा. जैसे दिख से दिखाई बनता है, लिख से लिखाई, पढ़ से पढ़ाई. कालिका प्रसाद, राजवल्लभ सहाय और मुकुंदीलाल श्रीवास्तव द्वारा संपादित ज्ञानमंडल के ‘बृहत् हिन्दी कोश’ में ‘सचाई’ और ‘सच्चाई’ दोनों शब्द मिलते हैं. इस कोश में दोनों के अर्थ ‘सत्यता, ईमानदारी, वास्तविकता’ बताए गए हैं.

सच्चाई का पक्ष

‘सच्चाई’ के पक्ष में जो लोग खड़े दिखते हैं, उनका तर्क होता है कि यह शब्द ‘सच्चा’ से बना है. ‘सच्चा’ शब्द विशेषण है. इस ‘सच्चा’ विशेषण में जब ‘ई’ जोड़कर ‘सच्चाई’ शब्द बनाया जाता है तो भाववाचक संज्ञा है. मसलन, ‘सच से सच्चाई’, ‘अच्छा से अच्छाई’, ‘ढीठ से ढिठाई’, ‘बुरा से बुराई’, ‘दंगा से दंगाई’.

हमें क्या करना चाहिए

सवाल है कि अखबार और वेबसाइट के लोग क्या लिखें. इसका सरल जवाब है कि हर वेबसाइट, हर अखबार और हर पत्रिका की अपनी एक हाउस स्टाइल होती है. जाहिर है आप जहां नौकरी कर रहे हैं, वहां की हाउस स्टाइल का पालन करना आपकी पेशागत ईमानदारी होनी चाहिए. फिर लेखकों को क्या करना चाहिए – इस सवाल का जवाब तो लेखक ही अपनी भाषा से दे सकते हैं. रही बात हम जैसे पाठकों की, तो मुझे लगता है कि ‘सचाई’ बोलने में ‘गजब’ बोलने जैसा ही सपाटपन है, जबकि ‘गज्जब’ में जो उल्लास नजर आता है, कुछ वैसी ही ताकत ‘सच्चाई’ बोलने में आती है. और आखिरी सच तो यही है कि ‘सचाई’ बोलें या ‘सच्चाई’, उससे ‘सच’ का रूप कभी नहीं बदलेगा.

Tags: Hindi, Hindi Language, Language, Shabdanuragi

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