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Kavita: हर बात का एक मतलब होता है, यहां तक कि घास के हिलने का भी

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवि, नाटककार और पत्रकार थे.

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना आधुनिक हिंदी कविता के प्रमुख कवि, नाटककार और पत्रकार थे.

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना तीसरे सप्तक के प्रमुख कवियों में से एक थे. इनकी रचनाएं कई भाषाओं में प्रकाशित हुईं. आप 'आकाशवाणी ...अधिक पढ़ें

    अन्त में
    अब मैं कुछ कहना नहीं चाहता,
    सुनना चाहता हूं
    एक समर्थ सच्ची आवाज़
    यदि कहीं हो।
    अन्यथा
    इसके पूर्व कि
    मेरा हर कथन
    हर मंथन
    हर अभिव्यक्ति
    शून्य से टकराकर फिर वापस लौट आए,
    उस अनन्त मौन में समा जाना चाहता हूं
    जो मृत्यु है।
    ‘वह बिना कहे मर गया’
    यह अधिक गौरवशाली है
    यह कहे जाने से-
    ‘कि वह मरने के पहले
    कुछ कह रहा था
    जिसे किसी ने सुना नहीं।

    समर्पण
    घास की एक पत्ती के सम्मुख
    मैं झुक गया
    और मैंने पाया कि
    मैं आकाश छू रहा हूं।

    प्यार
    एक सफ़ेद चिड़िया
    आती है और चली जाती है
    बिना छोड़े कोई भी चिह्न संगीत का।
    क्षण भर को
    इस गहरे अन्धकार में
    पड़ जाती है दरार
    जो देखते ही देखते मिट जाती है।
    पर मेरी आत्मा में
    फिर-फिर वही प्रतीक्षा कौंध जाती है।
    एक सफ़ेद चिड़िया
    आती है और चली जाती है।

    तुम्हारा मौन
    तुम्हारे
    पतले होंठों के नीचे
    एक तिल है
    गोया ईश्वर की ओर से
    एक कील जड़ी हुई है,
    जो तुम्हारे
    हर मौन को
    अलौकिक बनाता है।

    तुम्हारे साथ रहकर
    अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
    कि दिशाएं पास आ गयी हैं,
    हर रास्ता छोटा हो गया है,
    दुनिया सिमटकर
    एक आंगन-सी बन गयी है
    जो खचाखच भरा है,
    कहीं भी एकान्त नहीं
    न बाहर, न भीतर।

    हर चीज़ का आकार घट गया है,
    पेड़ इतने छोटे हो गये हैं
    कि मैं उनके शीश पर हाथ रख
    आशीष दे सकता हूं,
    आकाश छाती से टकराता है,
    मैं जब चाहूं बादलों में मुंह छिपा सकता हूं।

    तुम्हारे साथ रहकर
    अक्सर मुझे महसूस हुआ है
    कि हर बात का एक मतलब होता है,
    यहाँ तक कि घास के हिलने का भी,
    हवा का खिड़की से आने का,
    और धूप का दीवार पर
    चढ़कर चले जाने का।

    तुम्हारे साथ रहकर
    अक्सर मुझे लगा है
    कि हम असमर्थताओं से नहीं
    सम्भावनाओं से घिरे हैं,
    हर दिवार में द्वार बन सकता है
    और हर द्वार से पूरा का पूरा
    पहाड़ गुज़र सकता है।

    शक्ति अगर सीमित है
    तो हर चीज़ अशक्त भी है,
    भुजाएं अगर छोटी हैं,
    तो सागर भी सिमटा हुआ है,
    सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है,
    जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है
    वह नियति की नहीं मेरी है।

    – सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (प्रतिनिधि कविताएं- राजकमल प्रकाशन) 

    Tags: Books

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