विमल कुमार की पुस्तक 'साहित्यकारों की पत्नियां' में नामचीन लेखकों की पत्नियों के रोचक किस्से पढ़ने को मिलेंगे.
हिंदी साहित्य जगत के नामचीन लेखकों की तमाम ऐसी रचनाएं हैं जिनमें उन्होंने प्रेम-प्रसंग, दूसरी शादी, शादी के बाद अफेयर या सुहागरात जैसे विषयों पर प्रमुखता से लिखा है और चर्चित भी हुए हैं. ऐसे किस्से-कहानियों में जब इस तरह का वाक्या उभकर आता है तो मुख्य पात्र की पत्नी पर पड़ने वाले प्रभाव या उसकी प्रतिक्रिया की केंद्र बिन्दु बनती है. हालांकि गाहे बगाहे साहित्यकारों के कुछ ऐसे ही किस्से साहित्यिक महफिलों की चर्चा रहे हैं, लेकिन इस पर किसी लेखक की पत्नी की प्रतिक्रिया या उनके एक्शन-रिएक्शन पर कभी चर्चा नहीं होती. अब जैसे यह किस्सा ही लें.
ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता लेखक नरेश मेहता की जब शादी हुई तो वह सुहागरात के दिन ही अपनी पत्नी के सामने रोने लगे. उनकी पत्नी यह देखकर बहुत घबराई और सोचने लगी कि आखिर क्या हुआ कि उनके पति इस तरह रो रहे हैं. उन्होंने सकुचाते हुए हुए अपने पति से पूछा आखिर क्या बात हो गई, आप क्यों रो रहे हैं? तब नरेश मेहता ने जवाब दिया कि उन्हें अपनी पूर्व प्रेमिका की बहुत याद आ रही है जिनसे वे बहुत गहरा पर करते थे. यह सुनकर उनकी पत्नी सकते में आ गई लेकिन उन्होंने अपनी परिपक्वता का परिचय देते हुए इस बात को सुनकर भुला दिया. यह वाकया खुद नरेश मेहता की पत्नी ने लिखा है.
साहित्यकारों के जीवन के किस्से
केवल नरेश मेहता ही नहीं तमाम साहित्यकारों के निजी जीवन में ऐसे ढेरों किस्से होते हैं जो पब्लिक के सामने नहीं आ पाते हैं. क्योंकि साहित्यकारों के बारे में तो चर्चा खूब होती है, उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में खूब पढ़ा और लिखा जाता है. लेकिन किसी साहित्यकार की घर में क्या भूमिका होती है, उसकी पत्नी अपने साहित्यकार पति के बारे में क्या सोचती है, या पत्नी के साहित्यकार पति के साथ कैसे अनुभव रहे हैं, ऐसे तमाम रोचक किस्सों को लेकर एक पुस्तक आ रही है ‘साहित्यकारों की पत्नियां’.
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हिंदी की अनूठी किताब ‘साहित्यकारों की पत्नियां’
‘साहित्यकारों की पत्नियां’ पुस्तक का संपादन किया है प्रसिद्ध कवि और पत्रकार विमल कुमार ने. यह पुस्तक ‘मेघा बुक्स’ से छपकर आ रही है. विमल कुमार बताते हैं कि भारतीय साहित्य में यह अपने-आप में पहली और अनूठी पुस्तक है जिसमें साहित्यकारों की पत्नियों का उल्लेख किया गया है. हिंदी के 47 साहित्यकारों की पत्नियों के बारे में पहली बार अपने देश में एक किताब आई है. विमल कुमार का यहां तक कहना है कि संभवत किसी भी भारतीय भाषा में ऐसी कोई किताब नहीं है जिससे उस भाषा के साहित्यकारों की पत्नियों के बारे में जाना जा सके. इस तरह के कई अन्य रोचक प्रसंग इस किताब में हैं.
एक प्रसंग यह भी है कि जब राजेन्द्र यादव शानी जी से मिलते थे तो वे उनकी पत्नी से हंसी-मजाक में कहते थे चलो हम लोग साथ भाग जाते हैं. लेकिन शानी जी की पत्नी भी काफी उन्मुक्त विचारों वाली थी और उन्होंने मजाक कभी बुरा नहीं माना.
एक-दो नहीं, तीन-तीन शादियां
इस किताब में महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पत्नी मनोहरा देवी पर लेख निराला के प्रपौत्र ने लिखा है. मनोहरा देवी ने निराला को भी प्रेरणा दी थी और वे उसे अच्छी हिंदी जानती थीं. पुस्तक में राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त, प्रसाद और शिवपूजन सहाय की पत्नियों पर लेख हैं. इन तीनों की समानता यह है कि तीनों की दो-दो पत्नियां बीमारी के कारण मर गईं और तीनों ने तीसरी शादी की तथा उनसे बाल बच्चे थे. सबसे दुखद जीवन तो गुप्त जी का रहा कि उनके सात-सात बच्चे मर गए और उनकी पत्नी ने इस संकट में भी अपने पति का साथ दिया. बच्चे एक एक कर मरते रहे लेकिन संतानोत्पत्ति जारी रही लेकिन उनकी पत्नी पर क्या बीत रही होगी किसी ने सोचा. सोचिए कि गुप्त जी की पत्नी ने कितना दुख झेला होगा.
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‘साहित्यकारों की पत्नियां’ में कई कहानियां
रामचंद्र शुक्ल की शादी कम उम्र में हो गई थी और उनकी पत्नी बहुत किशोर थी. इन पत्नियों ने घर को चलाने में बड़ी जिम्मेदारी का पालन किया है. अगर वे नहीं करती तो हिंदी के लेखक साहित्य रचना भी नहीं कर पाते. बाबा नागार्जुन का भी उदाहरण देखिए. बाबा तो हमेशा घर छोड़कर अपने मित्रों के यहां इधर-उधर जिंदगी भर जाते रहे और वहां महीनों रहते रहे लेकिन घर की सारी जिम्मेदारी उनकी पत्नी ने संभाली और बच्चों का पालन पोषण किया. फणीश्वरनाथ रेणु की भी पहली पत्नी मर गई थी तो उन्होंने दूसरी शादी की और दूसरी पत्नी के रहते हुए उन्होंने लतिका से तीसरी शादी की थी और पत्नी को बताया भी नहीं. लेकिन क्या कोई लेखक अपनी पत्नी को दूसरी शादी करने देगा. ऐसे ही तमाम रोचक किस्से इस किताब में भरे हुए हैं.
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