संदीप मील एक संस्कृतिकर्मी के रूप में भी सक्रीय हैं. आप नियमित तौर पर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में शिरकत करते रहते हैं.
वह क्लर्क, अध्यापक, सिपाही या कोई भी मध्यमवर्ग का इंसान हो सकता है जिसने दफ्तर जाने के लिए तो एक बाइक खरीद रखी हो मगर बाकी के सारे काम पैदल ही करता है. बगल से दूध लाने से लेकर सब्जी लाने तक. या फिर ऐसा इंसान भी हो सकता है कि जिसके पास बाइक-साईकिल कुछ भी नहीं, सिवाय दो टांगों के. कोई भी हो सकता है मगर यह सड़क पर पैदल घूमता था. उस पदयात्री का घर एक बड़े-से शहर की व्यस्ततम सड़क के किनारे था. वह रोज घर से निकलता था तो एक ही चिंता जहन में होती कि शाम को सलामत वापस आएगा क्या!
हर दिन की तरह आज सुबह की सैर के लिए घर के दरवाजे से पहला कदम बाहर निकालने से पहले ही इस आदमी ने सड़क के दाईं और बाईं तरफ का जायजा लिया. सड़क बिल्कुल खाली थी. इसे बहुत गहरा संतोष हुआ और इस संतोष का नतीजा इसके मुंह पर दिखा. एक हल्की-सी मुस्कान थी. चूंकि सड़क खाली थी और मन भी प्रफुल्लित था तो कुछ गुनगुनाना लाजमी था. ऐसे माहौल में इंसान कोई खुशी का गीत ही अक्सर गुनगुनाता है. इस आदमी ने भी ऐसा ही किया. गांव में सुबह खेत की तरफ जाते वक्त किसान द्वारा गुनगुनाया जाने वाला एक लोकगीत इस वक्त उसकी जुबां पर था. अब यह तो आप समझ ही चूके होंगे कि यह आदमी कभी गांव में रहता था और किसानी से भी नाता था. हालांकि इस सुबह जिसकी मैं बात कर रहा हूं, उस समय के इस आदमी के पहनावे से आप उसके अतीत के बारे में कोई भी अंदाज़ नहीं लगा सकते हैं. हाफ पेंट और टी-शर्ट अब भी शायद उसके गांव में सुबह के वक्त कोई खेत में पहनकर नहीं जाता होगा.
वह आदमी जो लोकगीत गुनगुना रहा था उसी से उसके अतीत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. उस गीत के बोलों में वह इतना डूब चुका था कि यह भूल गया कि वह सड़क के किनारे चल रहा है. खाली ही सही लेकिन जब सड़क थी तो वाहन कभी भी आ सकते थे. हालांकि आज कोई वाहन नहीं आया, वह खुद ही चलकर डिवाइडर से टकरा गया. टकराहट इतनीभर थी कि दायें पैर की ठोकर लगी थी और चप्पल पहनने के कारण अंगूठे का नाखून छिल गया था. उसे अपने आप पर गुस्सा आया. गुस्से की दो वजहें थीं. पहली वजह तो यह थी कि खाली सड़क हुई तो क्या हुआ, इंसान को ध्यान से चलना चाहिए. दूसरी वजह यह थी कि उसे अचानक याद आया कि जब गांव में खेत में जाते वक्त यह लोकगीत गाते हैं तो चप्पल पहनकर नहीं जाते. जूती पहनकर जाते हैं. ठोकर तो वहां भी लगती है लेकिन अंगूठे नहीं छिलते.
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सुबह से पहली बार किसी वाहन ने उसे क्रॉस किया और वह ट्रक था. बड़ी आसानी से चला गया बगल से गुजरता हुआ. होर्न बजाने की जरूरत भी महसूस नहीं हुई. जबकि अन्य दिनों में तो ट्रक का पास से गुजरना मौत का बगल से निकलने जैसा अहसास देता था. अब उसे थोड़ी तस्सली हो गई थी. वह हल्की-सी दौड़ लगाने लगा जो शायद भागने और तेज चलने के बीच की स्थिति थी. इस दौड़ में वह लोकगीत वाली धुन छूट गई थी.
अचानक उसके बगल से तेज रफ्तार वाली एक कार निकली. वह इतनी तेज दौड़ रही थी कि यह आदमी इतना भी नहीं देख सका कि इसका चालक पुरूष था या स्त्री. कुछ देर तक तो वह एकदम सुन्न हो चुका था. उसके जहन के सारे अहसास जम गए थे. उसे यह भी नहीं समझ में आ रहा था कि वह पूरा जिंदा है या उसके जिस्म का कोई हिस्सा कार के साथ चिपककर चला गया है. जब धीरे-धीरे उसके दिल ने धड़कना शुरु किया और दिमाग ने सोचना शुरु किया तब उसे ख्याल आया कि उसके और कार के बीच मुश्किल से चार इंच का फासला रहा होगा. वह डर चुका था. अगर यह चार इंच का फासला ना होता तो! तो शायद वह मर ही जाता और अगर मर जाता तो उसके परिवार को कौन संभालने वाला था.
अब उसके पास इतना साहस नहीं था कि मुख्य सड़क पर चले. वह फुटपाथ पर चलने लगा. यह पैदल चलने वालों के लिए ही बनी है. इस पर कोई खतरा नहीं होगा. शायद सलामत घर पहुंच जाए. एक बार तो उसने यह भी सोच लिया था कि यह सुबह की सैर बंद कर दे. बेवजह कोई भी टक्कर मार जाएगा. तभी इस बात का भी अहसास हुआ कि सुबह नहीं तो दोपहर को या शाम को या रात को, क्या कभी भी घर से बाहर ना निकले. ये टक्कर मारने वाले तो हर समय सड़क पर मौजूद रहते हैं. घर में कैद होकर काम भी तो नहीं चल सकता उस जैसे सामान्य आदमी का. इतने में सामने से एक बाइक वाला आता दिखा हवा में कलाबाजियां दिखाते हुए. चूंकि इसे उस आदमी ने दूर से ही देख लिया था तो वह पहले से ही सतर्क होकर फुटपाथ के किनारे दीवार से चिपक गया था. बाइक वाले के निकलने के बाद उसने गहरी सांस ली और अपने आप को बचा पाने की छोटी-सी सफलता का अहसास भी हुआ उसे.
आगे एक मोड़ आया जिससे पहले एक बोर्ड लगा था-‘आगे खतरनाक मोड़ है.’ वैसे रोज यह बोर्ड यहीं रहता है लेकिन इस पदयात्री की निगाहों में आज ही आया था. वह कुछ क्षण रुककर बोर्ड और मोड़, दोनों को ध्यान से देखा. उसे मोड़ कम, बोर्ड ज्यादा खतरनाक लगा. फिर वह वापस चला और यह सोचते हुए चला कि असल में तो सारी सड़क ही खतरनाक है. इस बाबत भी कोई बोर्ड होना चाहिए. सामने से एक बुढ़िया आ रही थी जिसके सिर पर लकड़ियां थी. पदयात्री उसे जानता नहीं था लेकिन जब उससे निगाहें मिली तो ऐसा महसूस हुआ कि वह भी शायद इसी संकट से गुजर रही हो.
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अब आप यह तो जानते ही हैं कि सुबह के वक्त घूमते समय बड़े खूबसूरत विचार आते है दिमाग में. पदयात्री को दूर एक पहाड़ दिख रहा था जिधर से सूरज सिर निकालता है. उसने सोचा कि अगर यह पहाड़ इस जगह ना होता तो शहर में सुबह जल्दी हो जाती. अब फुटपाथ खत्म हो चुका था क्योंकि यहां से अमीरों की कॉलानी शुरु हो गई थी. ठीक इसी समय एक साइकिल वाला उसकी बगल से गुजरा जिसके घंटी नहीं थी. यह बात पदयात्री को बूरी लगी और उसने साईकिल वाले को मन में गाली दी. साईकिल वाले ने पीछे मुड़कर एक बार देखा जरूर था जैसे कि उसे गाली सुन गई हो. गाली सुनी नहीं थी लेकिन वह समझ गया था क्योंकि वह अभी-अभी पीछे एक बाइक वाले को मन में ऐसी ही गाली दी थी. बाइक वाले को भी गाली सुनी नहीं थी लेकिन वह समझ गया था क्योंकि कुछ देर पहले एक छोटी कार वाले को उसने भी वैसी ही गाली दी थी. छोटी कार वाले को भी गाली सुनी नहीं थी लेकिन वह भी समझ गया था क्योंकि उसने भी एक बड़ी कार वाले को वैसी ही गाली दी थी. बड़ी कार वाले ने ट्रक वाले को दी होगी. यह सोचते ही पदयात्री बड़ा खुश हुआ क्योंकि इस कड़ी में उसके नीचे कोई नहीं था जो उसको गाली देता हो. पहली बार उसे अपने पैदल चलने पर गर्व भी महसूस हुआ. अब तक तो वह पैदल चलने को मजबूरी ही समझता था.
सामने चार कुत्ते झगड़ते हुए आ रहे थे. पदयात्री ने इन्हें देखते ही बगल से एक पत्थर उठा लिया डराने के लिए. उसे कुत्तों से बहुत डर लगता है क्योंकि बचपन में किसी कुत्ते ने काट लिया था जिसकी वजह से उसे कई इंजेक्षन लगवाने पड़े थे. बहुत दर्द हुआ था. शायद कुत्तों का डर पदयात्री को ही होता है, गाड़ियों में बैठे लोगों को नहीं. चूंकि वह कुत्तों से तो आगे निकल गया था लेकिन पत्थर फेंकना भूल गया था. सामने से कुछ बच्चे स्कूल के लिए आ रहे थे. उन्होंने पदयात्री के हाथ में पत्थर देखा तो खिलखिलाकर हंसने लगे. पदयात्री के उनकी हंसी पर ध्यान दिया तब जाकर याद आया और उसने पत्थर फेंका.
अब सड़क पर वाहनों ही संख्या बड़ गई थी. लोग अपने दफ्तर जाने की जल्दी में फुटपाथ पर भी बाइकें चलाने लगे थे. पदयात्री सतर्क हो गया. अचानक सामने उसे भीड़ नजर आई. नजदीक जाने पर मालूम हुआ कि एक युवक को कोई कार वाला टक्कर मार गया था. युवक की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी. पदयात्री को ऐसा लगा कि उसके अंदर भी कुछ मर गया है. इसी समय वह भी यहां हो सकता था. एम्बुलेंस आई और मृत शरीर को ले गई. कुछ ही देर में भीड़ भी जा चुकी थी.
पदयात्री वहां अकेला खड़ा था. उस युवक के शरीर से निकले खून के धब्बे सड़क पर एक विचित्र किस्म का नक्शा बना रहे थे. इस नक्शे का देश पदयात्री ने न कभी ग्लोब पर देखा और ना ही कहीं सुना-पढ़ा था. फिर भी वह नक्शा उसे आकर्षित कर रहा था. वह खड़ा हुआ सोच रहा था कि यह नक्शा उस आदमी के गांव का या उसके घर का हो सकता है. तभी उसके दिमाग को झटका लगा और याद आया कि यह नक्शा तो उस युवक के शरीर का है. बिल्कुल वैसे का वैसा. जैसे कि किसी ने बनाया हो. तभी एक बाइक वाला उस नक्शे की टांगों के ऊपर से गुजरा. टायरों के चिपकी रेत ने नक्शे की टांगें काट दी. इस बार भी ऐसा हुआ कि पदयात्री को अपने घुटनों में असहनीय पीड़ा महसूस हुई. लेकिन जब देखा तो उसके पैर सलामत थे.
सड़क से कारों के काफिले शुरु हुए. शायद कोई बड़ा नेता जा रहा था. पहली ही कार ने उस नक्शे को पेट कुचला. पदयात्री ने अपना पेट देखा जो बाकायदा ठीक था. लेकिन दिमाग ने मान लिया था कि उसका पेट कुचला जा चुका है. पैर अलग हो गए हैं. असहनीय पीड़ा के कारण वह कराहने लगा. आसपास के कुछ लोग आकर कराहने के कारण जानने लगे. जब उसने बताया कि उसके पैरों के ऊपर से बाइक निकल गई है. पैर शरीर से अलग हो गए हैं. अभी कार वाला पेट के ऊपर से निकालकर ले गया है. उसकी सारी आंतड़ियां पिस गई हैं. वह सड़क के किनारे गिर चुका था. लोगों ने देखा कि पैर और पेट, सब सलामत तो हैं. तभी किसी एक ने उसे पागल बताया तो कुछ हंसकर वहां से विदा हो गए और कुछ हिकारत की नजर से देखकर चलते बने.
नेता जी के काफिले में कई गाड़ियां थीं. जब वह पूरा गुजर चुका था तब तक नक्शा भी मिट चुका था. खून का धब्बा भी नहीं था. सड़क का वह हिस्सा अब अलग से पहचाना नहीं जा सकता था. पदयात्री ने उस तरफ देखा तो उसे खुद के मरने का अहसास हुआ. अब उसे लगा कि वह शरीर नहीं, केवल संवेदना है जो बच गई है.
वह खड़ा हुआ और घर की तरफ चल दिया. वह सोच रहा था कि उसने ऐसा क्यों सोचा उस लड़के के बारे में. वह उसे जानता भी नहीं है. मानवीय स्तर पर एक सहानुभूति हो सकती है. वह अफसोस जता देता. आसपास के लोगों ने क्या सोचा होगा. हो सकता हो कोई उसके जान-पहचान के ने भी उसे इस हालत में देखा हो. कल को वह अन्य लोगों को मोहल्ले में कहेगा तो सब उसे पागल करार दे देंगे. लेकिन उसने जानबूझकर तो नहीं किया यह सब. अपने आप हो गया.
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पदयात्री ने घर आकर ऑफिस में फोन करके छुट्टी मांग ली. घर के लोग उससे किसी बारे में बात करते तो हर बात को वह घूमा-फिराकर वह अपने शरीर के अंगों पर ले आता. वह तस्दीक कर रहा था कि सच में उसका जिस्म इस धरती पर है या नहीं. साथ में, यह भी चाह रहा था कि किसी घर वाले को यह हादसा मालूम भी ना हो जाए. यही वजह थी कि वह घर के हर सामान को छूकर, सूंघकर, देखकर अपने आप का अस्तित्व तलाश रहा था. इसी तलाश में उसे पुराने स्कूटर को छूने के दौरान अपना बायां पैर मिला. स्कूटर एक बार स्टार्ट होकर बंद हो गया. शायद स्कूटर में तेल खत्म हो गया हो क्योंकि स्कूटर को जब उसने चलाना छोड़ा था उस समय यह स्थिति आ गई थी कि इसके चलाने के लिए तेल के पैसे उसकी जेब पर भारी पड़ रहे थे. उसने यह भी सोचा कि कल परसों तक अगर तनख्वाह आ जाए तो स्कूटर ठीक कराएगा क्योंकि अब यह तो तय हो गया था कि सड़क पर पैदल चलना कम से कम उसके लिए खतरे से खाली नहीं है. वैसे तनख्वाह भी वक्त पर कहां आती है! पिछले सालों के रिकॉर्ड से तो यही दिख रहा है. फिर तो मजबूरी में बाहर पैदल ही जाना पड़ेगा.
पदयात्री को बैचेनी कुछ ज्यादा महसूस हुई. उसे लगा कि छत पर जाकर कुछ खुली हवा प्राप्त की जाए तो राहत मिले. वह अपने ही घर की उन सीढ़ियों पर चढ़ने लगा जिन पर किसी जमाने में दिन में दस बार चढ़ने पर भी छटांगभर थकान महसूस नहीं होती. आज सांसें फूल रही थीं. सीढ़ियों का बल्ब कई दिनों से फ्यूज़ था और किसी घर वाले को इतनी भी फुर्सत नहीं है कि बल्ब बदल दे. एकदम अंधेरा था. छत का दरवाजा भी बंद था तो रौशनी आने की कोई जगह ही नहीं थी. उसे चंद पलों के लिए तकरीबन सारे घर वालों पर गुस्सा आया और इसी गुस्से वाले पल में पता ही नहीं चला कि कब पैर पिसल गया. यह तो गनिमत थी कि दीवार पकड़ में आ गई अन्यथा तो आगे वाले दांत टूट ही जाते. नाक तो फिर भी छिल ही गई. हां, इस बहाने नाक, मुंह और दांतों का अस्तित्व पदयात्री को मालूम हुआ. अपने आप को संभालते हुए वह किसी तरह से छत पर पहुंच ही गया. नाक पर कुछ गिलापन जैसा महसूस हुआ. हाथ से छूकर देखा तो खून था. आज उसे अपने खून को देखक खुशी महसूस हुई क्योंकि वह सोच रहा था कि जब खून उसकी रगों में दौड़ रहा तो वह जिंदा है. इसी अहसास के कारण वह अपने हाथ पर लगे हुए खून को देखकर हंसने लगा.
अचानक उसे ना जाने क्या ख्याल आया कि हाथ को चाटने लगा. हां, वह अपने खून का स्वाद देख रहा था. बिल्कुल वैसा ही था जैसा बचपन में होता था. जब वह पत्थरों से लोहे के छोटे टुकड़ों को कूटकर उनसे गाड़ी के टायर बनाने का संघर्ष किया करता था तो अचानक से उसी का हाथ पिसल जाता और उसकी उंगुली से खून निकलने लगता. तुरंत वह अपनी उंगुली को मुंह में लेकर चूसने लगता. फिर इधर-उधर देखता कि किसी घर वाले ने देख तो नहीं लिया है. जब उसकी निगाहें निश्चित हो जातीं कि किसी ने नहीं देखा तो वह बड़े मज़े से उंगूली चूसता रहता. नमकीन जैसा स्वाद आता. आज भी वैसा ही स्वाद आया.
पदयात्री अपने ही घर की छत से शहर को देख रहा था. पूरा शहर उसे पहले जैसा ही नजर आ रहा था सिवाय सड़कों के. सड़कें इस समय तक व्यस्त हो गई थीं. वाहनों की लम्बी कतारें दिख रही थीं और पदयात्री को लगने लगा कि सड़क पर चलने वाला हर वाहन किसी इंसान को कुचल कर जा रहा है. खून के फंवारे छूट रहे हैं. उसका दिमाग चकराने लगा. वह उसी जगह बैठकर अपने बाल नोचने लगा. तभी उसे यह याद आया कि उसके शरीर पर बाल हैं जिन्हें नोचा जा सकता है. वह तेजी से सिढ़ियां उतरकर घर के अंदर आकर सो गया.
जब पदयात्री नींद से उठा तो वह बिल्कुल स्वस्थ था. उसका शरीर और दिमाग ठीक से काम कर रहा था. आजकल वह रोज घर के दरवाजे तक आता है और अपने शरीर के सारे अंगों को देखता है जो बिल्कुल सही हैं. फिर भी वह दरवाजे से बाहर सड़क पर नहीं आ पाता. पदयात्री को लगता है कि उस हादसे में उसकी कोई जरूरी चीज गायब हो गई है जो उसे सड़क पर ले जाती थी. शायद वह गायब हुई चीज पदयात्री का साहस हो सकती है.
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