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‘तुच्छ बंदर के पृथ्वी का शासक’ बनने की कहानी है 'सेपियन्स'

युवाल नोआ हरारी की ये पुस्तक न सिर्फ चर्चित है बल्कि अन्तराष्ट्रीय बेस्टसेलर कही जा सकने वाली कुछ किताबों में शुमार है. इसकी बेहद रोचक चित्रकथा हिंंदी में छपी है.

युवाल नोआ हरारी की ये पुस्तक न सिर्फ चर्चित है बल्कि अन्तराष्ट्रीय बेस्टसेलर कही जा सकने वाली कुछ किताबों में शुमार है. इसकी बेहद रोचक चित्रकथा हिंंदी में छपी है.

युवाल नोआ हरारी की किताब 'सेपियन्स भाग -1 मानव जाति का जन्म' दुनिया भर की चर्चित किताबों में से एक है. वैसे तो ये विषय ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

सहज चित्रकथा में पढ़ें, मानव जाति के जन्म और विकास की जटिल-यात्रा
युवाल नोआ हरारी ने सहजता के साथ अतीत के रहस्य को समझाया है
मानव मनोवृत्तियों का मूल खोजने की कोशिश में भी सफल हैं नोवा हरारी

मनुष्य ने हर क्षेत्र में बहुत तरक्की कर ली है. फिर भी एक सवाल पर सोचना-विचार करना हमेशा रोचक लगता है कि शुरुआत में पेड़ों पर, कंदराओं में बंदर जैसा जीवन बिताने वाला मनुष्य, वह सब कुछ कैसे हासिल कर सका जो आज उसके पास है. आखिर किस तरह दूसरे जानवरों से पूरी तरह अलग हो कर मनुष्य ने सबका नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया? चौपाया से, दो पैरों पर चलने वाला बना. हाथों की मांसपेशियां कमजोर हुईं, लेकिन दिमाग बढ़ गया. शिकारी संग्रहकर्ता के तौर पर घास के मैदान में घूमने वाली ये प्रजाति कैसे पूरे ग्रह का नियंता बन बैठी.

इस सवाल को इतिहासकार और दार्शनिक युवाल नोआ हरारी ने बड़े ही रोचक तरीके से देखा है. डेविड वाण्डरमाइलिन और डेनिएल कासानेव के साथ मिल कर उन्होंने आदिम मनुष्य की दुनिया की सबसे ताकवर प्रजाति में तब्दील होने की यात्रा को “सेपियन्स – मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास” नाम की किताब में लिखा है. वर्ष 2011 में मूलतः हिब्रू भाषा में लिखी गई ये किताब अब तक 60 भाषाओं में अनुदित हो कर छप चुकी है. लेखकों का दावा है कि इसकी डेढ़ करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं.

इस किताब को और बोधगम्य बनाने के लिए “सपियन्स भाग 1- मानव जाति का जन्म” नाम से चित्रकथा शैली में प्रकाशित किया गया है. वैसी ही चित्रकथा, जो टीवी और मोबाइल के आने से पहले बच्चों, किशोरों और नौजवानों के लिए सबसे रोचक मनोरंजन हुआ करती थी. बिल्कुल कॉमिक्स की शक्ल में. हालांकि किताब पढ़ने के बाद ये समझ में आता है कि इस तरह के गंभीर विषय पर चित्रकथा न सिर्फ बोधगम्य हो सकती है, बल्कि किसी टेलीविजन शो की तरह रोचक भी. पढ़ने से ही लगता है कि मूल पुस्तक को उसी तरह संवाद शैली में फिर से रचा गया है जैसे किसी किताब को फिल्म के लिए संवाद लिखने के आधार के तौर पर किया जाता है. हो सकता है कि मूल पुस्तक में बहुत विस्तार से बात की गई हो, लेकिन यहां संवाद तैयार करने में वैसा ही श्रम किया लगता है जैसे गागर में सागर भरने में करना होता है. हिंदी में ये प्रकाशन बीते अक्टूबर में किया गया.

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चित्रकथा होने के बाद भी ये कोई पतली या छोटे साइज वाली किताब न हो कर ए-4 साइज से कुछ बड़ी और 250 पन्नों की है. रोचक ये है कि लेखक जहां किसी और शोध से कुछ तथ्य प्रणाम के तौर पर प्रस्तुत करना चाहता है वहां उसने गोष्ठियों सेमीनारों या बैठे चरित्रों को उस विषय पर डाक्यूमेंट्री दिखता है. फिर चित्रकथा में वो डाक्यूमेंट्री आ जाती है. चित्रकथा को और रोचक बनाया है इसके चरित्रों ने. लेखक नोआ हरारी इसमें खुद एक कैरेक्टर हैं तो आर्या सरस्वती के तौर पर एक जीवविज्ञानी को शामिल किया है. यहां याद दिलाना समीचीन होगा कि नोबल पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिक हरगोविंद खुराना भारतीय मूल के थे और जीन के खोजक्रम में उनका बड़ा योगदान है.

शिक्षित कर पाठक तैयार करना
इस रोचक विषय वस्तु की शुरूआत लेखक ने कुछ ऐसे की है कि वह ताश जैसे कार्ड बना कर मानव की छह प्रजातियों के नाम अपनी भतीजी को दिखाता है. फिर उसकी जिज्ञासा पर उसे लेकर वैज्ञानिक सरस्वती से मिलवाता है. सरस्वती प्राणियों के जीव वैज्ञानिक वर्गीकरण को बहुत सहजता से समझाती हैं. इस प्रकार लेखक ने अपने विषय के अनुरूप पाठक तैयार करने का भी काम किया है. क्योंकि हर कोई जीव वैज्ञानिक नाम और जीववैज्ञानिक जातियों के बारे जानता हो ये जरूरी नहीं है. होम सेपियन्स सेपियन्स मनुष्य प्रजाति का जीववैज्ञानिक नाम है.

किस्सों के उस्ताद
तमाम प्रजातियों के मनुष्य और उनके रहन-सहन को बताने के बाद जब लेखक आधुनिक मनुष्य प्रजाति सेपियन्स पर आता है तो उसकी मूल ताकत के बारे में विस्तार से बताता है. लेखक बताता है कि 70 हजार साल पहले इस प्रजाति ने भाषा की दक्षता हासिल कर गॉशिप करना शुरु कर दिया था. वे घंटों गपशप कर सकते हैं. इस गपशप के जरिए वे छोटे-छोटे समूहों को बहुत विस्तार दे पा रहे थे. इसी से उनकी ताकत बढ़ती गई. साथ ही लेखक ने ये भी तथ्य रखा है कि कितनी भी गाशिपिंग कर ली जाए लेकिन 150 से अधिक लोगों से अंतरंगता कायम नहीं की जा सकती. लेकिन इस तरह के 150 -150 लोगों के कई समूह अगर एक जैसा ही विश्वास रखते हों तो वे अनजान लोगों से सहयोग के लिए तैयार हो जाएंगे. ये विश्वास ही स्वर्ग – नर्क, देवी-देवता, पूजा पद्धतियां भी हो सकते हैं. चिंपैंजी को ये भरोसा दिला कर उससे एक केला नहीं लिया जा सकता कि ऐसा करने से स्वर्ग में उसे बहुत से केले मिलेंगे. जबकि मनुष्य ये कर सकता है. सिर्फ मजहब ही नहीं, राष्ट्र की सीमाएं, आर्थिक लाभ देने वाली कंपनियां भी समुदायों को जोड़ती हैं. यानी कुल मिला कर साझा विश्वास समूह को बहुत बड़ा कर सकता है.

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इस धारणा को पुष्ट करने के लिए लेखक ने प्यूज़ो नाम की कार कंपनी की मिसाल को बहुत रोचक तरीके से पेश किया है. दरअसल, कोई भी कंपनी अपने आप में एक अलग पहचान होती है. जिसे व्यवहार और कानून, दोनों जगहों पर माना जाता है. कंपनी दिवालिया हो जाए तो ऐसा नहीं कि उसे शुरू करने वाला भी दिवालिया हो जाएगा. या फिर उसके किसी उत्पाद से किसी को नुकसान हो तो कंपनी चलाने वाला उसका हर्जना नहीं देता.

इस तरह धर्म, राष्ट्र के बारे में किस्से गढ़े जाते हैं. किस्से गढ़ने आसान नहीं होते. फिर उन किस्सों पर लोगों का विश्वास कायम कराना अधिक कठिन होता है. ये कल्पित वास्तविकता कहलाते हैं. अगर लोग सिर्फ नदियों, पेड़ों और जानवरों की ही बातें करते रहते तो फिर गिरजाघर, धर्म और राष्ट्र जैसी कल्पित वास्तविकताएं खड़ी न हो पातीं. इनके पास अपरिमित शक्तियां भी संचित होती हैं. साथ ही लेखक ये भी रोचक तरीके से स्थापित करता है कि कंपनियां उसी तरह से स्थापित होती हैं जैसे पुरोहित और ओझा देवों और दानवों की सृष्टि करते हैं. ये भी रोचक है कि कल्पित वास्तविकता और झूठ में अंतर है.

साझा विश्वास ही सेपियेन्स की वास्तविक ताकत बना. किताब के उत्तार्ध में लेखक ने ये भी साफ किया है कि किस तरह से उस समय के मनुष्यों ने अपनी समझ और एकजुटता से दुनिया के तमाम हिस्सों में अपना वर्चस्व कायम किया. कैसे मैमथ जैसे विशालकाय जीव उसके हाथों मारे गए. या कैसे दूसरी बहुत सारी प्रजातियों को मनुष्यों ने अपनी सुविधा के लिए खत्म किया.

आधुनिक दुनिया से कटे बिना पुराने का विवेचन
ऐसा नहीं है कि पहले सेपियेन्स या दूसरी जातियों के मनुष्यों का विवेचन नहीं हुआ है. विज्ञान की शाखाएं अलग-अलग तरीकों से इसका अध्ययन-अध्यापन करती हैं. ये रोचक तब बन जाता है जब नोआ हरारी जैसे लेखक उस दौर के मनुष्य प्रवृति की तुलना आज के मनुष्य के सीधे करते हैं और दोनों पूरी तरह एक जैसे दिखते हैं. जैसे 30 हजार साल पहले का मनुष्य, जिसे लेखक शिकारी संग्रहकर्ता कहता है, भी किसी पेड़ से मिलने वाले अखरोट को अपने खाने के लिए संग्रह करके रखता था. दूसरे जातियों के जीवों को भगा देता था. उसी तरह आज भी वो अपने भोजन को फ्रिज में सुरक्षित रखता है. आज भी अपने सामुहिक विश्वास को अधिक ताकत से फैलाना उसकी आदत में है. काल्पनिक वास्तविकता का निर्माण करना और उसी पर चलना हमारी आदत में शामिल हो गया है. लेखक ने एक जगह बहुत रोचक तथ्य लिखा है कि शायद हमारा डीएनए हमें ये संदेश देता है कि हम आज भी घास के मैदानों में रहने वाले वही शिकारी संग्रहकर्ता हैं जिन्हें बहुत ढेर सारे भोजन की आवश्यकता होती थी. आज भी हम फैट और चीनी अधिक मात्रा में खाना पसंद करते हैं.

आग को वश में करना
मनुष्य को सबसे बड़ा हथियार आग के तौर पर मिला. अगर आग उसके काबू में न आई होती तो विकासक्रम कुछ और ही होता. शरीर का स्वरूप भी आज जैसा न होता, क्योंकि पका हुआ खाने के कारण पेट और आंतों का आज जैसा रूप बन सका. आग को पालतू बनाने की आदमी की कोशिश को लेखक ने आने वाली घटनाओं का संकेत बताते हुए इसे परमाणु बम की दिशा में मनुष्य का पहला महत्वपूर्ण कदम बताया है. आखिरकार चकमक पत्थर से एक अकेला आदमी पूरे का पूरा जंगल जला सकता था.

दुनिया का पर्यावरण बदल देना
किताब के आखिरी हिस्से में एक जासूस चरित्र सेपियन्स के अपराधों की खोज करता है. जासूस उसके लिए प्रमाण जमा करता है. वो दिखाता है कि किस तरह से सेपियन्स ने अलग-अलग महाद्विपों की यात्रा करके वहां कब्जा किया. कैसे बड़े-बड़े जानवरों की प्रजातियों को समाप्त किया. इस पूरी प्रक्रिया को सामने लाने के बाद अपराधी सेपियन्स को अदालत में पेश किया जाता है. वहां सेपियन्स का बचाव करने वाले वकील ने बेहद नाटकीय तरीके से पकड़े गए अपराधियों को अदालत से बाहर भेज कर जज के सामने ये दलील रखा कि यहां मौजूद सभी सेपियन्स ही हैं. बात जज को जमती हैं और उसने सुनवाई सुप्रीम कोर्ट को रेफर कर दिया. जज कहता है कि जब हम सभी सेपियन्स हैं तो हम सभी दोषी हैं. फिर वो कैसे सुनवाई कर सकता है. वो भी तो दोषी है.

‘तुच्छ बंदर से पृथ्वी के शासक बनना’
किताब की शुरुआत में परिचय के तौर पर जो लाइनें हैं उनमें भी बताया गया है कि मनुष्य जाति का उद्विकास एक रियलिटी टीवी शो के तौर पर रचा गया है. सेपियन्स और निएण्डरथल की मुठभेड़ को आधुनिक कलाकृतियों के जरिए कहा गया है. जबकि मैमथ और घुमावदार दांतों वाले विशालकाय बाघों के विलुप्त होने की कहानी जासूसी मूवी के तौर पर रची गई है. बहरहाल, लेखक और चित्रकथा के सर्जक अपनी बात पहुंचाने में बेहद खूबसूरती से सफल हुए हैं. तथ्य सामने रख दिया है. उनका विश्लेषण भी किया है, लेकिन ज्यादातर स्थानों पर जजमेंटल होने से बचे हैं.

अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद मदन सोनी का है, जो इतना अच्छा है कि अनुवाद की जगह पर मूल रचना जैसा लगता है. हिंदी में इस पुस्तक का प्रकाशन ‘अनबाउंड स्क्रिप्ट’ ने किया है. ये राजकमल प्रकाशन से जुड़ी संस्था है. हालांकि इसका मूल्य 1099 रुपया है. जो हिंदी पाठकों को थोड़ा असहज करता है. लेकिन प्रकाशक अलिंद माहेश्वरी का कहना है कि इस किताब के लिए नोआ हरारी को लाइसेंस फीस देने के अतिरिक्त फोर कलर की छपाई और हार्ड-बाइंड का खर्च के कारण ये कीमत रखी गई है. उनके मुताबिक पुस्तक का दूसरा खंड जल्द ही लाया जाएगा. किताब के आखिरी पन्ने पर भी टीवी शो के प्रोमो जैसा छपा है – “सेपियन्स में जल्दी ही पढ़े ! इतिहास का सबसे बड़ा धोखा या गेंहू उपजाने वाले राक्षस ने सुपर सेपियन्स को किस तरह ठगा.”

पुस्तक- सेपियंस भाग 1 मानव जाति का जन्म
अनुवादक- मदन सोनी
प्रकाशक- अनबाउंड स्क्रिप्ट (राजकमल प्रकाशन समूह)
मूल्य- 1099 रुपये

Tags: Hindi Literature, Literature, New books

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