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सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता- 'तुम धूल हो-पैरों से रौंदी हुई धूल'

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने पेचीदा बातों को कविता के माध्यम से बेहद सहज और साधारण ढंग से कहा है.

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने पेचीदा बातों को कविता के माध्यम से बेहद सहज और साधारण ढंग से कहा है.

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने हिंदी साहित्य की तमाम विधाओं- कविता, गीत, नाटक, उपन्यास, कहानी, पत्रकारिता या फिर कोई आलेख, ह ...अधिक पढ़ें

एक

तुम धूल हो—
पैरों से रौंदी हुई धूल।
बेचैन हवा के साथ उठो,
आंधी बन
उनकी आंखों में पड़ो
जिनके पैरों के नीचे हो।

ऐसी कोई जगह नहीं
जहां तुम पहुंच न सको,
ऐसा कोई नहीं
जो तुम्हें रोक ले।
तुम धूल हो
पैरों में रौंदी हुई धूल,
धूल से मिल जाओ।

दो

तुम धूल हो
जिंदगी की सीलन से
दीमक बनो।

रातों-रात
सदियों से बंद इन
दीवारों की
खिड़कियां
दरवाजे
और रोशनदान चाल दो।

तुम धूल हो
ज़िंदगी की सीलन से जन्म लो
दीमक बनो, आगे बढ़ो।

एक बार रास्ता पहचान लेने पर
तुम्हें कोई ख़त्म नहीं कर सकता।

Tags: Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature, Poet

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