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अर्श से फर्श पर ले जाकर नजरंदाज किए जाने पर कटाक्ष है उर्दू नाटक 'आज़र का ख़्वाब'

उर्दू नाटक 'आज़र का ख़्वाब' का एक दृश्य.

उर्दू नाटक 'आज़र का ख़्वाब' का एक दृश्य.

हाल ही में उर्दू अकादमी दिल्ली द्वारा उर्दू नाट्योत्सव का आयोजन किया गया. इसमें कई नामचीन उर्दू नाटकों का मंचन हुआ. ...अधिक पढ़ें

    (संजय सिंह ‘सुसार्थक’)

    विगत सप्ताह उर्दू अकादमी दिल्ली के सलाना उर्दू नाट्योत्सव के अंतर्गत श्रीराम सेंटर में विभिन्न नाटकों का आयोजन किया गया. इन नाटकों में अशरफ अली के निर्देशन में हुआ नाटक ‘आज़र का ख़्वाब’ काफी चर्चित रहा है. जार्ज बर्नाड शॉ की मूल कहानी ‘पिग्मेलियन’ का उर्दू में नाट्य रूपातंरण किया है बेगम कुदसिया जैदी ने.

    ‘आज़र का ख़्वाब’ की कहानी कुछ इस तरह है. एक उर्दू के प्रोफेसर आज़र एक शर्तिया चुनौती स्वीकार करते हैं जिसमें दोस्त फरहत उन्हें शर्त जीतने पर नगदी पुरस्कार देने का वचन देते हैं. शर्त के अनुसार आज़र अमरूद बेचने वाली एक अनपढ़, असभ्य, झगड़ालू और कटुभाषी युवती हाजरा उर्फ़ हज्जो को छह महीने में उर्दू जबान तथा तहजीबी तौर-तरीकों में दक्ष कर सभ्य शिक्षित-सभ्रांत समाज के समकक्ष खड़ा कर देंगे.

    आगे की कहानी कर्कशा हज्जो के ‘शालीन बेगम हाजरा’ बनने के संघर्ष सफर और समस्याओं से दो-चार कराती है. कहानी में अन्ना बी आजर की मदद करती है. हज्जो के पिता खैराती फरहत से अपनी बच्ची को रखने की एवज में मुआवजा मांगते हैं. मुआवजा पाकर उनकी जीवन शैली और पहनाव में भी आमूल चूल परिवर्तन पाया जाता है. उधर, हज्जो की बस्ती का फरीद भी उस पर डोरे डालता है. खुर्शीद और अब्बासी भी हज्जो के बेगम बनने के सफर में शामिल होते हैं.

    यहां आज़र और फरहत अपने प्रयोग में तो सफल हो जाते हैं और जीत के मद में गौरवान्वित हो हाजरा के अस्तित्व की अनदेखी करते हैं. अब हज्जो तहजीबी आवरण लपेटे अमरूद बेचने की आवाज़ लगाने में असमर्थ है वहीं उच्च आलीशान समाज में अपनी गरीबी के चलते उस पहुंच से कोसों दूर है. ना उच्च शैली का समाज और ना ही उसके पिता की बस्ती ही उसे अपना पाएगी. बीच मझधार अंतर्द्वद्ध में फंसी हज्जो आज़र और फरहत के भावनाशून्य आचरण से आहत होती है जिन्होंने एक ‘गिन्नीपिग’ सा उस पर तजुरबा कर के उसे छोड़ दिया था.

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    अब आज़र अपने प्रयोग से तैयार सभ्य बेगम हाजरा को उच्च शिखर पर ला कर खुद को एहसास ए कमतरी के भंवर में फंसा पाता है. एक दिन हज्जो अपने प्रशिक्षकों के पाये सामानों को वहीं त्याग कर गायब हो जाती है. सबको हज्जो की चिंता सता ही रही थी कि हज्जो के पिता खैराती आकर हज्जो की गुमशुदगी का उलाहना तकाजा करते हैं. कहानी सुलझाव समाधान की ओर अग्रसित दृश्य दर्शाती है.

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    इस नाटक के मंचन में निर्देशक अशरफ अली ने लाइटिंग और पार्श्व संगीत की मदद से दृश्य के मूड़ को बनाने में अपने एक्सपैरिमैंटेड ट्रीटमेंट किए जो दर्शकों को खूब भाये. साथ ही रंगकर्मी मुश्ताक काक की सहायता से सेट डिजाइनिंग में नए प्रयोग किए. उन्होंने अभिनय प्रदर्शन में उर्दू जुबान के संवादों और परिधानों द्वारा विशेष कदीमी तहजीब के माहौल को पैदा किया.

    मुख्य पात्र हाजरा की भुमिका निभाती अभिनेत्री पूजा ध्यानी ने अपने चरित्र को बड़ी ही बारीकी से निभाया, जिसमें उन्होंने हज्जो और बेगम हाजरा के कंट्रास्ट शेड को बड़ी विश्वसनीयता से उभारा. उनका आवाज और बॉडी लैंग्वेज पर किया गया प्रयास हद तक सफल दिखा. विशेषकर कागजी जहाज उड़ाने और चप्पल फैंकने वाले दृश्य उल्लेखनीय हैं.

    हज्जो का बराबरी का साथ आज़र बने अभिनेता तरुण डांग ने दिया. एक-दो फंबल और तल्लफुज फिसलाहट को नजर अंदाज़ किया जाये तो बेहतरीन संवाद अदायगी और शारीरिक भंगिमाओं के प्रदर्शन से उन्होंने भी सभागार में तालियां पिटवाईं.

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    फरहत के रोल में अमर शाह ने अपनी भूमिका के साथ न्याय. हालांकि, कहीं कहीं उनका पात्र से विचलन और टाइमिंग लैप्स नोटिस में आया. खैराती का पात्र निभाते वरिष्ठ रंगकर्मी हनु यादव ने अपने अभिनय को यथार्थता के आस-पास खड़ा कर दिया. हालांकि उनका बार-बार यकसा हाथ चलाना और बीच-बीच में अटकना लोगों को चुभा. फूफी बनी करुणा कुमार और अन्ना बी बनी ममता करनाटक ने अपने अपने चरित्र के साथ न्याय किया है. मानिक शर्मा, अनन्या खट्टर और करण कुकरेजा ने अपनी सहयोगी तथा संक्षिप्त भूमिकाओं में भरपूर अभिनय करके पूरे नाटक को सफल किया.

    रितेश सिंह की प्रकाश व्यवस्था, अलंकृत की संगीत संगत, अभिषेक राणा की वेशभूषा, रितिक आशीष सिद्धार्थ की सामग्री व्यवस्था, पवन कुमार के मंच प्रबंधन से भरा योगदान समग्रता से इस मंचन की पसंदगी का कारक बना.

    अनुरागना थिएटर ग्रुप के बैनर तले निर्देशक अशरफ अली का यह नाटक सफल तो हुआ पर लाजवाब बनाने के स्तर में उनसे थोड़े अधिक श्रम की जरुरत अपेक्षित रहेगी. जहां समेकित भाव से स्क्रिप्ट में एडिटिंग कसाव, एक्टर ब्लाकिंग और संवाद अदायगी में सुधार की गुंजाइश वांछनीय है.

    Tags: Hindi Literature, Literature, Literature and Art

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