ये लोग इंद्रदेव को यातना दे रहे हैं ताकि उनका दम घुटने लगे...

अच्छी बारिश के लिए इंद्रदेव को सज़ा
ये लोग तब तक इंद्रदेव को यातना देते हैं जब तक उनका दम ना घुट जाए
- News18 Madhya Pradesh
- Last Updated: July 22, 2019, 12:50 PM IST
बारिश नहीं होने पर लोग आम तौर पर इंद्रदेव को मनाते हैं. उनकी तरह तरह से पूजा करते हैं. टोना-टोटका भी किए जाते हैं. लेकिन मध्य प्रदेश के एक घनघोर आदिवासी इलाके में लोग इंद्रवेव को मनाते नहीं हैं, बल्कि सज़ा देते हैं. ये सज़ा कम और सही कहें तो यातना ज़्यादा होती है.
आदिवासी परंपरा
मध्य प्रदेश का बैतूल ज़िला वो इलाका है जहां बारिश के देवता इंद्रदेव को यातना दी जाती है. इस साल फिर यहां सूखे की मार है. सावन शुरू हुए 5 दिन बीत गए लेकिन बारिश का नाम-ओ-निशान नहीं है. ये इलाका आदिवासी बहुल है. इनकी अपनी परंपराएं और विश्वास है.
इंद्रदेव को सज़ाज़िले के असाढ़ी गांव के लोग बारिश ना होने पर ये नहीं मानते कि इंद्रवेदव उनसे खफा हैं. बल्कि उल्टा वो इंद्रदेव से नाराज़ हो जाते हैं. वो सज़ा के तौर पर इंद्रदेव को ही तब तक यातनाए देते हैं जब तक इंद्रदेव बारिश नहीं करवा देते.इंद्रदेव की प्रतिमा को गीली मिट्टी के लेप से ढंक देते हैं. आदिवासी लोग मानते हैं कि इससे इंद्रदेव का दम घुटने लगता है और वो बारिश करवा देते हैं. ये लेप बच्चों के हाथ से लगवाया जाता है. उसके बाद पूरे इळाके से आदिवासी मूर्ति पर मिट्टी पोतने आते हैं.
इस साल भी अब तक बारिश नहीं हुई तो यहां लगी मूर्ति को बच्चों के हाथों से मिट्टी का लेप लगवाकर पूरी तरह ढक दिया गया है. उसके ऊपर एक पत्थर रख दिया गया है. अब अगर बारिश हुई तो लेप और पत्थर हटा दिया जाएगा.
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आदिवासी परंपरा
मध्य प्रदेश का बैतूल ज़िला वो इलाका है जहां बारिश के देवता इंद्रदेव को यातना दी जाती है. इस साल फिर यहां सूखे की मार है. सावन शुरू हुए 5 दिन बीत गए लेकिन बारिश का नाम-ओ-निशान नहीं है. ये इलाका आदिवासी बहुल है. इनकी अपनी परंपराएं और विश्वास है.

इंद्रदेव को सज़ाज़िले के असाढ़ी गांव के लोग बारिश ना होने पर ये नहीं मानते कि इंद्रवेदव उनसे खफा हैं. बल्कि उल्टा वो इंद्रदेव से नाराज़ हो जाते हैं. वो सज़ा के तौर पर इंद्रदेव को ही तब तक यातनाए देते हैं जब तक इंद्रदेव बारिश नहीं करवा देते.इंद्रदेव की प्रतिमा को गीली मिट्टी के लेप से ढंक देते हैं. आदिवासी लोग मानते हैं कि इससे इंद्रदेव का दम घुटने लगता है और वो बारिश करवा देते हैं. ये लेप बच्चों के हाथ से लगवाया जाता है. उसके बाद पूरे इळाके से आदिवासी मूर्ति पर मिट्टी पोतने आते हैं.

इस साल भी अब तक बारिश नहीं हुई तो यहां लगी मूर्ति को बच्चों के हाथों से मिट्टी का लेप लगवाकर पूरी तरह ढक दिया गया है. उसके ऊपर एक पत्थर रख दिया गया है. अब अगर बारिश हुई तो लेप और पत्थर हटा दिया जाएगा.
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