रिपोर्ट: अरविंद शर्मा/ विजय प्रताप सिंह
भिंड/ग्वालियर: चंबल के बीहड़ जहां चालीस-चालीस कोस तक कोई कदम रखने का साहस नहीं करता था, आज वही बीहड़ अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. सैकड़ों वर्षों तक ये बीहड़ डकैतों का आशियाना रहे. समय के साथ सरकार के प्रयासों से डकैतों का तो सफाया हो गया, लेकिन अब बीहड़ भूमाफिया का कारण खत्म होने की ओर बढ़ रहा है.
मध्यप्रदेश में भिंड, मुरैना और श्योपुर चंबल के वे इलाके हैं, जहां कभी डकैतों का सबसे ज्यादा आतंक था. इसकी मुख्य वजह ये है कि चंबल के बीहड़ों में छिप जाने के बाद डाकुओं को ढूंढ पाना पुलिस के लिए आसान नहीं होता था. सैकड़ों किलोमीटर में फैले ये बीहड़ दरअसल मिट्टी के काफी ऊंचे-ऊंचे टीले हैं, जो भूल-भुलैया की तरह नजर आते हैं. अब इन्हीं बीहड़ों में भूमाफिया मिट्टी का अवैध खनन करने में लगे हुए हैं. कई जगह तो मिट्टी को समतल कर प्लॉट काटे जा रहे हैं.
पर्यावरण असंतुलन का बढ़ा खतरा
पर्यावरणविद् एचके शर्मा का कहना है चंबल में बीहड़ के कटाव होने से आने वाले समय में पर्यावरण पर बड़ा खतरा पड़ सकता है. चंबल में आने वाली बाढ़ को ये बीहड़ किसी हद तक रोकते हैं. इसके अलावा, चंबल में तमाम तरह की औषधियां पाई जाती हैं, जो मानव जीवन के लिए फायदेमंद हैं. भूमाफिया द्वारा बीहड़ों को समतल करने से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ सकता है. कुल मिलाकर यहां की जैव-विविधता के नष्ट होने का खतरा है.
बीहड़ न रहने से पर्यावरण पर पड़ेगा ये असर
1-चंबल में भूमाफिया द्वारा बीहड़ों को समतल करने से बाढ़ आपदा का खतरा बढ़ेगा.
2- बीहड़ों में पनपने वाले औषधीय पेड़-पौधे नष्ट हो जाएंगे, जिससे मानव जीवन के लिए संकट खड़ा हो सकता है.
3- बीहड़ों में रहने वाले जीव-जंतुओं के जीवन पर खतरा आ सकता है.
4- जैव विविधता के नष्ट होने का खतरा रहेगा.
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