उमा भारती ने अपने बयान में कहा-मुझे रंज है कि मैंने असंयत भाषा का इस्तेमाल किया जबकि मेरे भाव अच्छे थे
भोपाल. ब्यूरोक्रेसी (bureaucracy) को लेकर दिए विवादित बयान (controversial statement) के बाद उमा भारती (Uma Bharti) अब इस मुद्दे पर नॉन स्टॉप हो गई हैं. इस मुद्दे पर पहले उन्होंने दिग्विजय सिंह के सवालों का चिट्ठी लिखकर जवाब दिया और फिर उसके बाद एक के बाद एक ट्वीट किए. अपने ट्वीट्स में उमा भारती ने लिखा है कि अब वो शराबबंदी की तरह ही ब्यूरोक्रेसी को लेकर भी अभियान चलाएंगी.
हालांकि इन ट्वीट्स में कई बातें ऐसी भी हैं जिसमें उमा कहीं न कहीं अपनी ही पार्टी के नेताओं पर भी सवाल खड़े कर रही हैं. उमा ने अपने ट्वीट में लिखा है कि 8 सितंबर, 2021 को मेरे निवास पर हुई प्रेस कॉन्फ्रेन्स में मैंने 15 जनवरी, 2022 के बाद शराब बन्दी अभियान शुरू करने की घोषणा की थी. उसके बाद मैं आशंकित थी कि इस मुद्दे की शक्ति कम करने के लिये कुछ घट सकता है. मेरी आशंका सच्चाई में बदल गयी. ब्यूरोक्रेसी पर मेरे दिए गए बयान पर मीडिया ने कोई तोड़ मरोड़ नहीं किया. मीडिया तक बयान को प्रभावी रूप से पहुंचाने का समय 20 तारीख को चुना गया.
लक्ष्य से हटूंगी नहीं
उमा भारती ने लिखा मैं मध्य प्रदेश में शराबबंदी के अपने परम लक्ष्य से लोगों का ध्यान हटने ही नहीं दूंगी. इसलिए मैंने असंयत भाषा के प्रयोग को ज्यों का त्यों स्वीकार करते हुए अपना रंज व्यक्त किया. मैंने अपनी टिप्पणी में मेरी नहीं बल्कि हमारी यानि बहुवचन का प्रयोग किया है. मैं तो किसी को अपने पांव भी नहीं छूने देती तो किसी से मेरी चप्पल उठाने की बात कैसे कह सकती हूं. किन्तु ब्यूरोक्रेसी पर दिये गये बयान से एक सार्थक विचार-विमर्श निकल सकता है जो कि नए प्रशासनिक सेवा में भर्ती हुए युवाओं के काम आ सकता है. इसलिये अब मैं इस बहस को भी आगे चलाऊंगी.
उमा के अनुभव और सवाल
उमा भारती ने आगे लिखा है कि ब्यूरोक्रेसी के साथ मेरे अनुभवों के कुछ विवरण आपको देती हूं. 1990 में मध्यप्रदेश में जब पटवा जी की सरकार बनी एवं मैं खजुराहो से सांसद थी. मेरे मना करने पर भी कलेक्टर, एसपी मेरे घर ही आ जाते थे. जबकि मैं रेस्ट हाऊस में मिलने का सुझाव देती थी. 6 दिसंबर को अयोध्या की घटना के बाद हमारी सरकार के गिरते ही मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा फिर चुनाव हुआ और कांग्रेस की सरकार बन गयी. फिर तो अधिकारियों का बोलना, मिलना, चलना और सबका तरीक़ा ही बदल गया. मुझे इस पर आश्चर्य हुआ किन्तु परेशानी नहीं हुई क्योंकि मैं तो जनहित के काम, जनता की शक्ति की कृपा से ही करवा लेती थी.
IAS अफसर को पीकदान उठाते देखा
उमा भारती ने लिखा है कि साल 2000 में मैं जब केंद्र में अटल जी के साथ पर्यटन मंत्री थी तब बिहार में वहां की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और उनके पति लालू यादव के साथ मेरा पटना से बोधगया हेलिकॉप्टर से जाना हुआ. हेलिकॉप्टर में हमारे सामने की सीट पर बिहार राज्य के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी भी बैठे हुए थे. लालू यादव ने मेरे ही सामने अपने पीकदान में ही थूका और उस वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के हाथ में थमा कर उसे खिड़की के बगल में नीचे रखने को कहा. उस अधिकारी ने ऐसा कर भी दिया. इसलिये 2005-06 में जब मुझे बिहार का प्रभारी बनाया गया और बिहार के पिछड़ेपन के साथ मैंने पीकदान को भी मुद्दा बनाया. पूरे बिहार के प्रशासनिक अधिकारियों से अपील की कि आज आप इनका पीकदान उठाते हो, कल हमारा भी उठाना पड़ेगा. अपनी गरिमा को ध्यान में रखो और पीकदान की जगह फ़ाइल और कलमदान से चलो. बिहार की सत्ता पलट गयी. मैं नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री पद की शपथ के बाद लौटी
एमपी में नहीं मिलता था रेस्ट हाउस
उमा ने आगे लिखा – मध्यप्रदेश में बाबूलाल जी गौर मुख्यमंत्री थे किन्तु मेरे घर पर लगभग सभी अधिकारियों की भीड़ लगी रहती थी. इससे मुझे शर्मिंदगी होती थी. बिहार से आते ही मुझे पार्टी से निकाल दिया गया. गौर जी भी हट गये. फिर तो मुझे मध्यप्रदेश में किसी रेस्ट हाउस में कमरा मिलना भी मुश्किल हो गया. प्रशासनिक अधिकारी तो मेरी छाया से भी भागने लगे. मेरे लिए तो यह हंसी एवं अचरज की बात थी. क्योंकि तिरंगे के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ते ही मैं पूर्व मुख्यमंत्री हो गयी थी. मेरे पार्टी से बाहर निकाले जाते ही अधिकारियों की रंगत ही बदल गयी. मुझे इससे भी कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि ईश्वर एवं पब्लिक की कृपा मुझ पर हमेशा रही है.
मैं तो हमेशा बादशाह हूं या फ़क़ीर
मैं तो हमेशा बादशाह हूं या हमेशा फ़क़ीर हूं. किन्तु ऐसी बातें लोकतंत्र के लिए घातक हैं क्योंकि प्रशासनिक सेवा के लोगों को नियम से बंधना है. जो जनता के वोट से चुनाव जीत के सत्ता में आया है उसकी नीतियों का क्रियान्वयन करना है. उसे सत्तारूढ़ दल की राजनीति साधने का कार्यकर्ता नहीं बनना है. यह निर्णय देश के, सभी राज्यों के ब्यूरोक्रेट्स को करना होगा कि वह शासन के अधिकारी, कर्मचारी एवं जनता के सेवक हैं. किसी राजनीतिक दल के घरेलू नौकर नही हैं. यह जुमला, “अफ़सरशाही देश नहीं चलने देती“, कई निक्कमे सत्तारूढ़ नेताओं के लिए रक्षा कवच का काम करता है.
उमा की अपील
उमा भारती ने अपने ट्वीट के आखिरी हिस्से में लिखा है कि वो देश के सभी पुराने और नए ब्यूरोक्रेट्स से अपील करना चाहती हैं कि आपको अपने पूर्वजों, माता पिता, ईश्वर की कृपा और अपनी योग्यता से यह स्थान मिला है. भ्रष्ट अफसर एवं निकम्मे सत्तारूढ़ नेताओं के गठजोड़ से हमेशा दूर रहिए. आप शासन के अधिकारी, कर्मचारी हैं. किसी राजनीतिक दल के घरेलू नौकर नहीं हैं. देश के विकास और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए और गरीब आदमी तक पहुंचने के लिये आप इस जगह पर बैठे हैं, इस का ध्यान रखिये.
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Tags: Bihar News, Bureaucracy in India, Digvijaya singh, Lalu Prasad Yadav, Uma bharti
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